पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जी के पिल्लई ने दावा किया है कि इशरत जहां और उसके साथियों के तार लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े होने के बाबत 2009 में गुजरात हाई कोर्ट में दाखिल किया गया हलफनामा ‘राजनीतिक स्तर’ पर बदलवाया गया था। गौरतलब है कि इशरत और उसके साथी 2004 में हुई एक कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए थे। टाइम्स नाउ चैनल से बातचीत के दौरान पूर्व गृह सचिव से जब पूछा गया कि क्या हलफनामा बदलवाया गया, इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं जानता, क्योंकि यह मेरे स्तर पर नहीं किया गया। मैं कहूंगा कि यह राजनीतिक स्तर पर किया गया।’ तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2009 में दो महीने के भीतर दो हलफनामे दाखिल किए थे। एक में कहा गया था कि कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए चार लोग आतंकवादी थे जबकि दूसरे में कहा गया था कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने लायक सबूत नहीं हैं।
पिल्लई ने कहा कि हो सकता है इशरत अनजाने में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के हाथों में खेल रही हो। उन्होंने इशरत के आतंकवादी रिश्तों के बारे में डेविड हेडली की ओर से दिए गए बयान की जांच कराने की भी वकालत की। पूर्व गृह सचिव ने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं कि गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के तार लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘वे लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे। वह (इशरत) जानती थी कि कुछ गलत है, वरना कोई बिनब्याही जवान मुस्लिम युवती दूसरे पुरुषों के साथ नहीं गई होती।’ यह पूछे जाने पर कि क्या यह फर्जी मुठभेड़ थी, इस पर पिल्लई ने कहा कि सीबीआई पहले ही इस मुद्दे की छानबीन कर चुकी है और आरोप-पत्र दाखिल कर चुकी है।
उन्होंने कहा, ‘असल मुद्दा यह है कि यह एक वास्तविक मुठभेड़ थी या फर्जी मुठभेड़ थी। सीबीआई ने इसकी जांच की थी।’ पूर्व नौकरशाह ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा ने इशरत का नाम अपनी वेबसाइट पर डालकर उसे शहीद करार दिया था और बाद में इसे हटा लिया गया था। उन्होंने कहा, ‘इसका कोई सीधा सबूत नहीं था, इस बात को छोड़कर कि लश्कर-ए-तैयबा ने वेबसाइट पर उसका नाम डाला था। इसलिए, मैं कहूंगा कि हो सकता है वह अनजाने में उनके हाथों में खेल रही हो।’
खुफिया ब्यूरो की तारीफ करते हुए पिल्लई ने कहा कि यह एक बहुत ही सफल अभियान था और खुफिया ब्यूरो पहले से ही जानता था कि लश्कर-ए-तैयबा के लोग आने वाले हैं। मुंबई की एक अदालत के समक्ष हेडली की ओर से 19 साल की इशरत को लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य बताए जाने पर उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है। उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि हेडली के बयान की और जांच होनी चाहिए।’ इशरत, जावेद शेख, अमजदअली अकबरअली राणा और जीशान जौहर 15 जून 2004 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस के साथ हुई एक मुठभेड़ में मारे गए थे। अहमदाबाद की अपराध शाखा ने उस वक्त कहा था कि वे लश्कर के आतंकवादी थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात आए थे।