“मैं सरकारी स्कूलों के बारे में बताना चाहती हूं। यहां (मेवात में) काफी गरीबी है और अगर सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ेंगे तो उन्हें सुविधा रहेगी, वे प्राइवेट में नहीं पढ़ सकते, उनके पास इतना पैसा नहीं है, लेकिन सरकार सरकारी स्कूलों पर ध्यान ही नहीं देती है। यहां टीचर ही नहीं हैं, जो हैं वो आते हैं और क्लास में सो जाते हैं।”— यह बात 12वीं कक्षा में पढ़ रही महविश ने जनसत्ता.कॉम के साथ बात करते हुए कही।
लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी यात्रा में हरियाणा के नूंह ज़िले में हमें मरोड़ा गांव में कुछ छात्राएं मिलीं। 12वीं क्लास में पढ़ रही महविश, समरीन, आरज़ू,लायबा, सफिया और फरजाना मेवात के अलग-अलग गांवों से आती हैं और यहां अल-जामिया मेवात कैंपस में पढ़ रही हैं, वह यहीं होस्टल में रहती हैं।
मेवात (नूह जिला) की 80 प्रातिशत आबादी मेव मुस्लिम है। शिक्षा के मामले में यह इलाका काफी पिछड़ा माना जाता है और खासकर महिला शिक्षा दर की स्थिति यहां काफी चिंताजनक है। डाउन टू अर्थ वेबसाइट के मुताबिक 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां औसत साक्षरता दर 54.08 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुषों का प्रतिशत 69.94 प्रतिशत और महिला मतदाताओं का प्रतिशत केवल 36.60 प्रतिशत था।
2001 की जनगणना के अनुसार मेवात में कुल साक्षरता दर 43.50 प्रतिशत थी। पुरुषों की साक्षरता दर 61.20 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर केवल 23.90 प्रतिशत थी।
इन दोनों आंकड़ों से यह तो पता चलता है कि मेवात में शिक्षा के मामले में सुधार हुआ है लेकिन कितना और कैसे ये जानने की कोशिश हमने इन छात्राओं से बात करते हुए की है।
‘मैं एक IPS ऑफिसर बनना चाहती हूं’
समरीन शिकरावा गांव से हैं और वह एक आईपीएस ऑफिसर बनने का ख्वाब रखती हैं, वह कहती हैं —“हां ये सही बात है कि लड़कियों की पढ़ाई में कई दिक्कतें हैं, लेकिन अब यहां माहौल बदल रहा है। लड़कियां पढ़ने लगी हैं, अपना एक लक्ष्य बनाने लगी हैं, बहुत सारी लड़कियां बहुत आगे चली गई हैं। जैसे मेरे गांव का उदाहरण लिया जा सकता है जहां बड़ी तादाद में लड़कियां पढ़ने लगी हैं। मैं खुद एक IPS ऑफिसर बनना चाहती हूं। मेरे माता-पिता मुझे काफी हौसला देते हैं। मैं एक दिन अपना ख्वाब पूरा करके दिखा दूंगी।”
मेवात में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता?
नूंह के जमालगढ़ गांव से हॉस्टल में पढ़ने आई आरजू इस सवाल के जवाब में कहती हैं,—“हमारे यहां लड़कियों को बहुत ज़्यादा पढ़ाया नहीं जाता लेकिन मैं इसे बदलना चाहती हूं, लड़कियों को हौसला देना चाहती हूं।”
फरीदाबाद के लधियापुर गांव की लायबा कहती हैं,—“मैं एक प्रोफेसर बनना चाहती हूं। ऐसा नहीं है कि बुराई सिर्फ हमारे यहां है, या लड़कियों को यहीं पढ़ने नहीं दिया जाता है, लड़कियों के साथ सब जगह ऐसा होता रहा है, लेकिन हम इसे बदलने की कोशिश करेंगे। अब माहौल बदलने भी लगा है, पहले की बहुत कम लड़कियां आपको पढ़ी लिखी नहीं मिलेंगी लेकिन अब हर घर की लड़की पढ़ रही है।”
मेवात में क्या बदलाव होना चाहिए?
इस सवाल के जवाब में महविश कहती है,”कुछ तो यहां लोग हैं जिन्हें बदलाव नहीं चाहिए। हमारे यहां जो मर्द हैं वो इसके कसूरवार हैं। दूसरी बात यह है कि यहां इतना विकास नहीं हुआ है जितना होना चाहिए था। सरकार हमारे ज़िले पर ध्यान नहीं देती है।
इस सवाल के जवाब में सफिया कहती हैं,”मैं हर घर जाकर शिक्षा का महत्व समझाने की कोशिश करूंगी और ये बताना चाहूंगी कि शिक्षा क्यों इतनी जरूरी है।”
लड़कियों को कमजोर समझने की धारणा पर क्या कहना है?
सवाल के जवाब में फरजाना कहती हैं,” समाज में तो यह समझा जाता है कि जो लड़का है वो वफादार है और लड़की की तो शादी करा दी जाती है, उसे इस लायक ही नहीं समझा जाता कि वो भी घर की मदद कर सकती है। इसलिए लड़कों को ज़्यादा पढ़ाते हैं और लड़कियों को कम पढ़ाया जाता है। ये बदल सकता है, अगर हम लड़कियों से बात करें और उन्हें समझें।”
यहां देखिए VIDEO रिपोर्ट
महविश ने आगे कहा,”एक तो समाज की और माता-पिता की ये धारणा बनी हुई है कि लड़कियां अगर घर से बाहर जाएंगी तो बिगड़ जाएंगी। ऐसा लड़कों के साथ भी तो हो सकता है। वो भी तो गलत हो सकते हैं।” समरीन कहती हैं,”माँ-बाप को अपनी बेटी पर भरोसा रखना चाहिए और बेटी को उनके भरोसे का ख्याल रखना चाहिए।”