अभिषेक कुमार सिंह
दुनिया भर के नौजवान इस समय बेरोजगारी से परेशान हैं। भारत जैसे आबादीबहुल देश में रोजगार का संकट कुछ अधिक है। कोविड के दौर में नौकरियों में कटौती का जो सिलसिला दो-ढाई साल पहले शुरू हुआ था, वह कृत्रिम मेधा (एआइ- आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के खतरे के मद्देनजर और गहरा गया है। ऐसे घटाटोप में उम्मीद की एक किरण ‘गिग अर्थव्यवस्था’ कहलाने वाली प्रणाली में नजर आती है, जिसमें लोग स्वतंत्र होकर काम करते और ठीकठाक आय अर्जित करते हैं। ऐसे श्रमिकों को गिग कहा जाता है, जो किसी कंपनी या संगठन से परोक्ष रूप से जुड़ते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी कर्मचारी जैसे लाभ हासिल नहीं होते। ऐसे श्रमिकों को स्वास्थ्य, दुर्घटना बीमा और सेवानिवृत्ति वाले कोई लाभ न मिलने के कारण पूरी दुनिया में चिंता फैली हुई है। इस पर विचार-विमर्श चल रहा है कि कैसे गिग श्रमिकों के हितों का संरक्षण किया जाए।
कर्नाटक और राजस्थान सरकारों ने कुछ पहल की है
हाल में हमारे देश में इस मुद्दे पर कुछ पहलकदमियां हुई हैं। कर्नाटक सरकार ने गिग कर्मचारियों को दो से चार लाख रुपए का स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा मुफ्त देने का ऐलान किया। इसी तरह राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जिसने ‘गिग श्रमिक विधेयक’ विधानसभा में पेश किया। इसमें गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देने का प्रयास किया गया है। अगर कोई इस अधिनियम के नियमों का पालन करने में नाकाम रहता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री की ओर से भी इस पर एक विचार आया है
भारत सरकार के स्तर पर भी एक विचार प्रधानमंत्री की ओर से आया है। उन्होंने दावा किया है कि देश की गिग प्रणाली वाली अर्थव्यवस्था में युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की अभूतपूर्व क्षमता है। उनका यह संदेश हाल में जी-20 देशों के श्रम और रोजगार मंत्रियों की इंदौर बैठक में दिया गया। उल्लेखनीय है कि जी-20 की इस बैठक में गिग श्रेणी के कर्मचारियों को पर्याप्त और टिकाऊ सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उचित रोजगार देने पर जोर दिया गया।
गिग अर्थव्यवस्था यों तो काफी समय से चर्चा में रही है, लेकिन इसकी ओर उल्लेखनीय ध्यान कोविड महामारी के दौर में गया, जब इस अर्थव्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों ने एक थमी हुई दुनिया को चलाए रखने का जिम्मा उठाया। हालांकि स्वतंत्र रूप से कुछ पेशे काफी पहले से अस्तित्व में हैं। इनमें लेखन से लेकर फोटोग्राफी आदि दर्जनों कामकाज ‘फ्रीलांसिंग’ शब्द के तहत आते हैं और इनके जरिए लोग काफी धन, सम्मान और सामाजिक सुरक्षा-प्रतिष्ठा आदि हासिल करते रहे हैं।
मगर गिग कर्मचारियों वाली रोजगार की यह अपेक्षाकृत एक नई व्यवस्था है, जो दुनिया में पिछले एक दशक के दौरान ज्यादा तेजी के साथ उभरी है। दरअसल, दुनिया भर के नियोक्ता एक नए व्यावसायिक माडल पर काम कर रहे हैं, जिसे ऐप आधारित कैब सेवा- उबर ने लोकप्रिय बनाया है। भारत में इससे संबंधित सरकारी आंकड़े को देखें तो देश के ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर एक साल के अंदर 28 करोड़ 62 लाख गिग कर्मियों ने पंजीकरण कराया है। इसका नतीजा यह निकलने को है कि अगले साल तक भारत के कुल कार्यबल का तकरीबन चार फीसद हिस्सा ‘गिग क्षेत्र’ में बदलने वाला है।
दस साल बाद घर बैठकर ही दफ्तर का काम करने होंगे
इससे यह सवाल पैदा होता है कि कार्यबल में हो रहे इस तेज बदलाव को सकारात्मक माना जाए या इसे नुकसान के खाते में डाला जाए। अगर गिग अर्थव्यवस्था के फायदों की बात की जाए, तो इसका एक आकलन सामने आ चुका है। 2017 में एक विश्लेषण में कहा गया था कि ‘गिग वर्किंग’ बढ़ने के कारण इसकी बहुत अधिक संभावना है कि दस साल बाद आप घर बैठकर ही दफ्तर का काम करेंगे और कामकाज का समय भी आपकी पसंद का होगा। विश्लेषण का अनुमान था कि देश में अगले एक दशक में रोजगार का पूरा परिदृश्य बदल सकता है। मगर यह बदलाव अनुमान के मुकाबले ज्यादा तेजी से हुआ। इसकी वजह कोरोना महामारी है।
वित्तीय सेवा देने वाले मंच ‘स्ट्राइडवन’ ने 2023 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारत में पक्की नौकरी के बजाय संविदा आधारित, फ्रीलांस और अंशकालिक सेवाओं वाले बाजार यानी गिग अर्थव्यवस्था ने साल 2020-21 में सिर्फ अस्सी लाख लोग कार्यरत थे। पर अब 2024 तक 2.35 करोड़ श्रमिकों को गिग अर्थव्यवस्था से संबंधित कामकाज मिलने का अनुमान है।
भारत में सबसे अधिक ‘गिग श्रमिक’ सेवा क्षेत्र में रखे जा रहे हैं। इसके बाद शिक्षा सेवा और मीडिया-मनोरंजन का स्थान है। इस सूची में पांचवां स्थान ‘ई-कामर्स’ और ‘स्टार्टअप’ का है। कंपनियां लागत में कमी के लिए भी गिग श्रमिकों को चुन रही हैं। हालांकि माना जा रहा है कि इनमें भी सबसे ज्यादा असर देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होगा। इसका एक कारण तो वैश्विक बाजार की अनिश्चितता है। इसमें सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी वाली कंपनियां ऐसी संभावनाएं तलाश रही हैं, जिसमें स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों का मिश्रण हो। सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में नियुक्त मानव संसाधन अधिकारी मानते हैं कि जिस तरह के काम अब कंपनियों के पास आ रहे हैं, उन्हें स्थायी कर्मचारियों के आधार पर तुरंत पूरा करना संभव नहीं होता है। नियोक्ता ऐसे काम अपने नियमित कर्मचारियों के बजाय मांग पर उपलब्ध होने वाले पेशेवरों को सौंपने लगे हैं।
इसमें संदेह नहीं कि तेज इंटरनेट सेवा और तकनीकी सुविधाओं के कारण घर से काम करना आसान हो गया है। साथ ही आजकल युवा घर से दूर स्थित दफ्तर आने-जाने में लगने वाले समय और मौसम तथा ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं से बचने और ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ वाले फलसफे को अपनाने के कारण गिग शैली वाले कामकाज को प्राथमिकता देने लगे हैं। पर इसमें कुछ पेच भी हैं। ऐसे वक्त में जब सरकार तक सेना में अस्थायी भर्ती कर उन्हें जल्दी सेवा मुक्त करने के पक्ष में हो, तब निजी कंपनियां तो पहले ही कर्मचारियों के प्रति अपने दायित्वों से मुक्त होना चाहेंगी। साथ ही, वे तकनीकी तरक्की का फायदा उठाकर कर्मचारियों की ‘हाईटेक निगरानी’ इतनी सख्त कर देती हैं कि स्थायी किस्म की नौकरी करने वाले कर्मचारियों को उससे परेशानी होने लगती है।
रोजगार क्षेत्र की भावी चुनौतियों और अवसरों का आकलन करने वाली संस्था रायल ‘सोसाइटी आफ आर्ट्स, मैन्युफैक्चरर्स ऐंड कामर्स’ (आरएसए) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि 2035 में दुनिया के ज्यादातर लोग स्थायी या लंबी अवधि के करार वाली नौकरी के बजाय अस्थायी या गिग शैली वाली नौकरी कर रहे होंगे, क्योंकि कंपनियां इंटरनेट से जुड़े उपकरणों के जरिए कर्मचारियों की हर हरकत पर नजर रख रही होंगी। अभी ये हालात हैं कि कर्मचारियों के अपनी सीट से उठने की भी सख्त निगरानी की जाती है। शिफ्ट शुरू होने और खत्म होने पर साफ्टवेयर के जरिए ‘लाग-इन’ और ‘लाग-आउट’ से हिसाब-किताब रखा जाता है, भले ही कामकाज घर बैठे आनलाइन संपन्न किया गया हो।
पर इसका एक पहलू यह है कि चूंकि पूरी दुनिया में स्थायी किस्म की नौकरियां घट रही हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों के कारण स्थायी नौकरियों पर और अधिक दबाव पैदा हो गया है। इसलिए बहुत से युवा स्थायी नौकरी को एक झंझट मान सकते हैं। इसके विपरीत युवाओं को फ्रीलांसिंग वाली अस्थायी नौकरियां देने वाली गिग अर्थव्यवस्था ज्यादा रास आ सकती है, क्योंकि इसमें काम, छुट्टी और वर्क-लाइफ बैलेंस का फैसला खुद उनके हाथ में होता है। इसके साथ जुड़ी अहम समस्या सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की है, जिसके बारे में जी-20 की बैठक में विचार किया गया। अगर गिग नौकरियों में सामाजिक सुरक्षा आदि लाभ मिलने लगेंगे, तो नियोक्ता और कर्मचारी- दोनों के लिए स्थिति सोने में सुहागे वाली होगी।