जयंतीलाल भंडारी

जेनेरिक दवाओं की अफ्रीका की कुल मांग का पचास प्रतिशत, अमेरिका की मांग का चालीस प्रतिशत तथा ब्रिटेन की कुल दवा मांग का पच्चीस प्रतिशत हिस्सा भारत से ही जाता है। दुनिया के कोई पचास फीसद से अधिक विभिन्न टीकों का उत्पादन भी भारत में होता है।

एक ऐसे समय में जब भारत का दवा उद्योग दुनिया की ‘नई फार्मेसी’ के रूप में रेखांकित हो रहा है, तब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा भारत की दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल और वैश्विक रूप से निगरानी बढ़ाया जाना इस उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने दवा बनाने वाले सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) से कहा कि भारत में बनी दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

नकली दवाएं बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि दवा क्षेत्र की एमएसएमई के लिए यह जरूरी है कि दवाओं की गुणवत्ता को लेकर जागरूक रहें और स्वनियमन के माध्यम से तेजी से बेहतर विनिर्माण गतिविधि (जीएमपी) की ओर कदम बढ़ाएं। सभी छोटे और मझोले दवा निर्माताओं के लिए चरणबद्ध तरीके से औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 की अनुसूची-एम को अनिवार्य बनाया जाएगा। यह अनुसूची भारत की दवा निर्माता इकाइयों की बेहतरीन निर्माण गतिविधियों से जुड़ी है।

गौरतलब है कि पिछले वर्ष भारतीय कंपनियों द्वारा तैयार कुछ दवाओं की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठे थे। खासकर जांबिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत को भारत में बनी खांसी की दवा से जोड़ा गया था। डब्लूएचओ ने जारी रिपोर्ट में कहा था कि भारत में बनी खांसी की दवा डाइथेलेन ग्लाइकोल और इथिलेन ग्लाइकोल इंसान के लिए जहर की तरह हैं।

यही कारण है कि भारत से अफ्रीकी देशों को होने वाला दवा निर्यात वित्तवर्ष 2022-23 में पांच फीसद घट गया। पिछले वित्तवर्ष में नाइजीरिया में निर्यात में 13.5 फीसद, इथियोपिया में 1.4 फीसद, यूगांडा में 22.7 फीसद और घाना में 17.4 फीसद कमी आई। ऐसे में देश में दवाई की गुणवत्ता और दवाई उद्योग से संबंधित विभिन्न चुनौतियां भारतीय दवा उद्योग को दुनिया की ऊंचाइयों तक पहुंचने में बाधक बन रही हैं।

इसी परिप्रेक्ष्य में सरकार द्वारा दवा बनाने वाली कंपनियों की जांच के लिए विशेष दस्ते का गठन किया गया। दवा उत्पादों की उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नियामक प्राधिकारियों ने जोखिम के आधार पर कंपनियों का लेखाजोखा जांचना शुरू किया। 137 कंपनियों की जांच की गई थी और 105 के खिलाफ कार्रवाई की गई। इकतीस का उत्पादन रोका गया और पचास के खिलाफ उत्पाद या जारी किए गए अनुभाग लाइसेंस रद्द करने और निलंबन की कार्रवाई की गई है। इसके साथ ही तिहत्तर को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और इक्कीस को चेतावनी जारी की गई।

उल्लेखनीय है कि भारतीय दवा की गुणवत्ता पर उठे सवालों ने भारतीय दवा उद्योग के समक्ष चिंता की रेखाएं खींच दी है। जो भारतीय दवा उद्योग कोई पांच दशक पहले केवल विदेशी कंपनियों और ब्रांड पर निर्भर था, वह अब अपनी दवा क्षेत्र की प्रतिभाओं के बल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जोरदार मुकाबला कर रहा है। देश में तीन हजार से अधिक दवा कंपनियां और दस हजार से अधिक क्रियाशील दवा उत्पादक इकाइयां हैं। भारत 185 से अधिक देशों को दवाओं का निर्यात करता है। यह दवा उत्पादन की मात्रा के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर और दवा मूल्य के मद्देनजर चौदहवें क्रम पर है।

इस समय दुनिया की करीब सत्तर प्रतिशत जेनेरिक दवाओं का उत्पादन भारत में ही होता है। जेनेरिक दवाओं की अफ्रीका की कुल मांग का पचास प्रतिशत, अमेरिका की मांग का चालीस प्रतिशत तथा ब्रिटेन की कुल दवा मांग का पच्चीस प्रतिशत हिस्सा भारत से ही जाता है। दुनिया के कोई पचास फीसद से अधिक विभिन्न टीकों का उत्पादन भी भारत में होता है।

साथ ही ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव’ (पीएलआइ) योजना और विभिन्न देशों के साथ हो रहे मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की बदौलत फार्मा क्षेत्र का कारोबार वर्तमान पचास अरब डालर के आकार से छलांग लगाकर अगले दो वर्षों में सत्तर अरब डालर तक पहुंच सकता है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिका के साथ दवा आपूर्ति शृंखला और टीके के लिए कच्चे माल को लेकर जो सहमति बनी है, उससे भारत का फार्मा उद्योग तेजी से आगे बढ़ेगा।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने दवा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने, अधिक कीमतों वाली दवाओं के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने और चीन से होने वाले कच्चे माल- एपीआई के भारत में ही उत्पादन हेतु कोई ढाई वर्ष पहले शुरू की गई पीएलआइ योजना को बड़ी सफलता मिली है। सरकार की पीएलआइ योजना की मदद से कई कच्चे माल का उत्पादन शुरू हो गया है और अब इस प्रकार के उत्पादन में लगातार बढ़ोतरी होने की संभावना है। भारत में ही दवा के कच्चे माल का उत्पादन शुरू होने से आयात कम होने के साथ कई भारतीय दवाओं की लागत भी कम हो रही है।

ऐसे में इस समय भारतीय दवाओं से संबंधित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर कई सुधारमूलक जरूरतें अनुभव की जा रही हैं। भारत द्वारा नकली दवाओं को कतई बर्दाश्त न करने की नीति के तहत लगातार व्यापक जोखिम आधारित विश्लेषण करना होगा। अब दवा उद्योग के लिए सरकार द्वारा शीघ्र स्व-नियामकीय संस्था को अमली जामा पहनाना होगा। यह संस्था निरंतर दवा उद्योग का आकलन कर सकेगी।

सरकार को जरूरी दवाओं की कीमतें कम कराने पर ध्यान देना होगा। अब सरकार को देश के करोड़ों लोगों की इस शिकायत पर भी ध्यान देना होगा कि दवा विक्रेता ग्राहकों को दस-पंद्रह टेबलेट या कैप्सूल वाला पूरा पत्ता खरीदने पर जोर देते हैं। हाल ही में दवा खरीद से संबंधित एक देशव्यापी सर्वे हुआ, जिसमें पता चला कि पूरे पत्ते की खरीदी के कारण बड़ी मात्रा में दवाएं बिना उपयोग के फेंक दी जाती हैं।

सर्वे में यह भी सामने आया कि लोगों द्वारा पिछले तीन सालों में खरीदी गई दवाओं में से सत्तर फीसद दवाएं बिना किसी उपयोग के फेंक दी गर्इं और ऐसा हर चार में से तीन घरों में पाया गया। ऐसे में सरकार को दवा ग्राहकों की न्यायसंगत मदद के लिए दवाई के पूरे पत्ते की जगह जरूरत के हिसाब से दवाई की बिक्री हेतु आदेश जारी करने होंगे। लोगों को ऐसी सुविधा दी जाए कि उन्हें दवा का पूरा पत्ता खरीदने को मजबूर न होना पड़े।

निस्संदेह अब देश में बड़े पैमाने पर दवा उत्पादन होने के कारण कई दवाइयों की लागत कम आ रही है। कई दवाओं के कच्चे माल का उत्पादन भी तेजी से बढ़ने से कई दवाओं की लागत कम हुई है। ऐसे में हाल ही में राष्ट्रीय औषधि मूल्य नियामक ‘नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथारिटी’ (एनपीपीए) द्वारा जिस तरह देश के करोड़ों लोगों के दैनिक जीवन में ‘ब्लड प्रेशर’ और ‘डायबिटीज’ जैसी अनेक बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल में आने वाली कई दवाइयों की खुदरा कीमतें नियंत्रित करके कम की गई हैं, उसी तरह आम लोगों के उपयोग से आने वाली अन्य कई और दवाओं की कीमतें भी कम करनी होगी।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार देश में दवा उत्पादन में गुणवत्ता मापदंडों के परिपालन के लिए कठोरता के साथ आगे बढ़ेगी। हमारी फार्मा कंपनियों और सरकार द्वारा फार्मा से संबंधित शोध और नियमन में नवाचार पर आधारित ऐसे बदलाव किए जाएंगे, जिससे हमारा फार्मा उद्योग गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के साथ दुनिया में और तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा। ऐसे में देश से दवाओं के निर्यात बढ़ेंगे और दवाइयों की कीमतें भी कम होंगी। इससे लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठेगा और इससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी।