कलाकार सुबोध केरकर ने बुधवार को कहा कि जिस देश में गौमांस रखने के लिए लोगों को पीट-पीट कर मार डाला जाता है और बुद्धिजीवियों को अपने विचार जाहिर करने पर मार दिया जाता है, उसे महात्मा गांधी को अपना राष्ट्रपिता नहीं कहना चाहिए। गांधी संग्रहालय के निदेशक केरकर गांधी जयंती पर सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित एक समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे ।
गांधी के शिक्षाओं के खिलाफ काम हो वहां के राष्ट्रपिता गांधी नहीं हो सकते: केरकर ने कहा जिस देश में गौमांस रखने के लिए लोगों को पीट पीट कर मार डाला जाता है और बुद्धिजीवियों को अपने विचार जाहिर करने पर मार दिया जाता है, उसे महात्मा गांधी को अपना राष्ट्रपिता नहीं कहना चाहिए। केरकर ने इसके साथ ही कटाक्ष करते हुए कहा कि गांधी उस देश के राष्ट्रपिता कैसे हो सकते हैं जो उनकी शिक्षाओं के खिलाफ काम कर रहा है। सड़क पर शौच करने के कारण पिछले दिनों मध्य प्रदेश में दो दलित बच्चों की पीट-पीट कर हत्या किए जाने की घटना का जिक्र करते हुए केरकर ने कहा गांधी के लिए सामाजिक स्वास्थ्य, निजी स्वास्थ्य जितना महत्वपूर्ण है।आज हमारा सामाजिक स्वास्थ्य बिगड़ गया है।
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यंग इंडिया में छपा गांधी का लेख: गौरतलब है कि गांधी ने 1921 में अपने अखबार ‘यंग इंडिया’ में एक लेख लिखा था कि ‘हिंदू धर्म के नाम पर ऐसे बहुत-से काम किए जाते हैं जो मुझे मंजूर नहीं। अगर मैं वैसा नहीं हूं तो मुझे खुद को सनातनी हिंदू कहलवाने की कोई ख्वाहिश नहीं।’ छुआछूत के खिलाफ महात्मा गांधी की लड़ाई में असम के जोरहाट का खास स्थान है। 1934 में यहां उन्होंने एक ब्राह्मण परिवार के नामघर के दरवाजे दलितों के लिए खोले थे। यह उनकी इस लड़ाई में एक लैंडमार्क माना जाता है। जाहिर है कि आज के समय में धर्म के नाम पर लोगों को मार दिया जी रहा है। और ऐसे लोग गांधी को अपना राष्ट्रपिता मानते है तो वह गांधी जी के साथ न्याय नहीं है।