बिहार में विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बीच वहां बने गठबंधनों के राष्ट्रीय राजनीति पर असर को लेकर चर्चा सरगर्म है। साफ है कि सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और विपक्षी महागठबंधन के बीच दो ध्रुवीय मुकाबले के बीच राष्ट्रीय स्तर के नए समीकरण की नींव पड़ गई है।
सियासी समीकरण को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ-साथ राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए अहम माना जा रहा है। मध्य बिहार की सीटों पर मंगलवार को वोट पड़े, जिसमें तिरहुत, मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र शामिल हैं। 17 जिलों की 94 सीटों में कई पटना और नालंदा जिले के कुछ क्षेत्रों में भी हैं।
इस बार नीतीश कुमार के महागठबंधन से बाहर होने और राजग के साथ होने के चलते समीकरण बदल गए हैं। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही भाजपा दूसरे चरण में जमीन बचाए रखने में जुटी है। विपक्षी महागठबंधन ने सेंध लगाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
वर्ष 2015 में जब राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (एकीकृत) ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था, तब इन 94 सीटों में से 70 सीटें हासिल की थीं। तब राजद ने 33, जद (एकी) ने 30 और कांग्रेस ने सात सीटें हासिल की थीं। इस बार नीतीश कुमार के महागठबंधन से बाहर होने के चलते समीकरण बदल गए हैं।
दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान हुआ है, 2015 में भाजपा ने इनमें से 20 सीटें जीती थीं। पहले चरण की 71 सीटों में से भाजपा ने 29 पर चुनाव लड़ा है, जबकि जद (एकी) 35 पर। साफ है कि पहले चरण का चुनाव भाजपा से ज्यादा नीतीश कुमार के लिए अहम था। दूसरे चरण में 46 पर भाजपा चुनाव लड़ रही है।
इसी चरण में भाजपा के पास सबसे ज्यादा सीटें हैं। भाजपा की सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) इस चरण में पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे चरण के लिए सात जनसभाओं को संबोधित किया, जो कि राज्य के तीनों चरण के चुनावों में सबसे ज्यादा है।
पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सीवान, छपरा, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, नालंदा और पटना की सीटों पर मतदान हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी, महराजगंज, मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, पटना, पूर्वी चंपारण, छपरा, शिवहर सीटों पर एकमात्र विजेता साबित हुई थी। जिन 17 जिलों में दूसरे चरण का मतदान होना है, उनमें से ये दस जिले हैं, जहां भाजपा लोकसभा जीत चुकी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और जद (एकी) में गठजोड़ होने के बावजूद भाजपा ने चंपारण की 21 में से 13 सीटें जीती थी।
इन क्षेत्रों में उच्च जाति और अति पिछड़ी जाति (ईबीसी) के वोटों की अच्छी खासी संख्या है। भागलपुर, खगड़िया और वैशाली जैसे जिलों में ईबीसी आबादी निर्णायक स्थिति में है। ईबीसी जातियां बिहार में ‘पचपनिया’ (55 जातियों/उप-जातियों का समूह) के रूप में जानी जाती हैं। इनमें मल्लाह (निषाद), लोहार, कुम्हार, सुनार, तेली, कहार और केवट शामिल हैं। इनमें निषाद की दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया और मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में बहुत महत्त्वपूर्ण संख्या है।
मिथिलांचल और तिरहुत क्षेत्र में ब्राह्मण जातियां स्थानीय राजनीति पर हावी रही हैं। इसी तरह छपरा और तिरहुत क्षेत्र में राजपूतों का दबदबा रहा है। बिहार में पिछले दो दशकों से सवर्ण जातियां भाजपा का समर्थन करती आई हैं। दूसरी ओर, राजद के पास सारण और मिथिलांचल क्षेत्रों की सीटों पर मुसलिम-यादव गठजोड़ का मजबूत आधार है। पहले चरण की तुलना में, दूसरे चरण के निर्वाचन क्षेत्रों में मुसलिम आबादी ज्यादा है। इसका लाभ विपक्षी गठबंधन को मिलने के आसार हैं। जहां तक प्रवासी आबादी की बात है, इसका एक बड़ा हिस्सा दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया और चंपारण जैसी सीटों से आता है।
ऐसे में जो समीकरण आकार ले रहे हैं, उनमें बिहार में नई सरकार के गठन के बाद नतीजों का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ना तय माना जा रहा है। वर्ष 2015 में जिस तरह से भाजपा के विजय रथ को बिहार रोका गया था और देश की सियासत में बदलाव देखने को मिला था। उसी तरह विधानसभा का यह चुनाव अहम है। इससे भाजपा विरोध और विपक्ष की राजनीति की भविष्य की तसवीर आकार लेगी।
बिहार चुनाव में सिर्फ नीतीश कुमार या राजग की एकजुटता ही नहीं, बल्कि विपक्षी गठबंधन का भी शक्ति परीक्षण होना है। कांग्रेस, वामपंथी दलों और समाजवादी (राष्ट्रीय जनता दल) एक साथ चुनाव मैदान में हैं। इन दलों का एक साथ आना राष्ट्रीय समीकरण के लिहाज से अहम माना जा रहा है। देश के कई राज्यों में कांग्रेस मजबूत है तो कुछ राज्यों में वामपंथी दलों के भी कैडर प्रभावी भूमिका में हैं।
समाजवादी कुनबा (राजद-जद (एकी)-बसपा-सपा-लोजपा जैसी पार्टियां) बिखरा हुआ है। इस कुनबे कई घटक भाजपा के साथ भी हैं। बिहार चुनाव के बाद काफी कुछ बदल सकता है और अगर इनके पक्ष में परिणाम रहे तो इस कुनबे में एकता की सुगबुगाहट होगी। साथ ही, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, और वामपंथी दलों का महागठबंधन बढ़त लेगा तो पूरे देश में भाजपा विरोधी दलों की मोर्चेबंदी आकार लेगी।
वार-पलटवार
भाजपा को इस बार भी फिर एनडीए की सरकार बनने के बारे में कोई शक नहीं है। बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में भारी बहुमत के साथ सरकार बनने जा रही है। अभी तक सभी ओपिनियन पोल नीतीश की सत्ता में लगातार चौथी बार वापसी के संकेत दे रहे हैं। इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को और चोट पहुंचेगी।
– संजय मयूख, भाजपा नेता
जनता में नीतीश सरकार के विरुद्ध जो रोष है, वह तेजस्वी की सभाओं में साफ दिख रहा है। लोगों का सरकार के खिलाफ आक्रोश नीतीश की सभाओं में भी दिख रहा है। हाल के दिनों में वहां कई बार तेजस्वी जिंदाबाद के नारे गूंजे हैं। इसके बाद राष्ट्रीय राजनीति में बिहार की बड़ी भूमिका होगी।
– मृत्युंजय तिवारी, राजद नेता

