दीप्तिमान तिवारी
Dattatreya Hosabale: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने शुक्रवार को औपनिवेशिक विचारधारा को लेकर बड़ा बयान दिया। होसबोले ने कहा कि भारतीयों ने 1,000 वर्षों तक मुगल शासन से लड़ाई लड़ी, लेकिन खुद को छोटा महसूस नहीं किया, लेकिन ब्रिटिश शासन के केवल 150 साल में भारतीयों को हीन भावना महसूस होने लगी।
होसबोले पूर्व सांसद बलबीर पुंज की किताब ‘नैरेटिव का मायाजाल’ की लॉन्चिंग के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा, ‘क्या दुनिया में हमारी कोई हैसियत है? क्या हम एक पराजित और हारे हुए लोग हैं जिन्होंने दुनिया को कुछ नहीं दिया? या हम वो हैं जिन्होंने दुनिया को अनेक विचार दिए? होसबले ने आगे कहा, ‘हमने 1,000 वर्षों तक संघर्ष किया। हमने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, कई बार हार का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उस समय के शिक्षित और बौद्धिक वर्ग ने कभी यह नहीं सोचा कि ये बाहरी लोग हमसे बेहतर थे या अधिक सभ्य या नस्लीय रूप से श्रेष्ठ थे।’
‘अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए लेकिन औपनिवेशिक विचारों से छुटकारा नहीं मिला’
संघ के सरकार्यवाह ने हैरानी जताते हुए कहा कि दुर्भाग्य से 150 वर्षों के ब्रिटिश शासन के दौरान भारत का बौद्धिक वर्ग यह मानने लगा कि हम छोटे, हीन, असभ्य और बहुत कुछ हैं, जिन्होंने दुनिया में कुछ भी योगदान नहीं दिया है। दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, ‘अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए, लेकिन उनके एजेंटों, शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों और राय निर्माताओं ने देश को औपनिवेशिक विचारों से छुटकारा नहीं मिलने दिया।’ उन्होंने कहा कि मुगलों से लड़ने वाले भारतीयों को कभी इतना हीन महसूस नहीं हुआ, जितना वे ब्रिटिश शासन के तहत महसूस करने लगे थे।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी कार्यक्रम में हुए शामिल
होसबोले ने पुस्तक ‘नैरेटिव का मायाजाल’ की प्रस्तावना लिखी है, जिसमें चर्चा की गई है कि कथाएं सभ्यताओं की पहचान को कैसे आकार दे सकती हैं। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ताओं में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और वकील और स्तंभकार जे साई दीपक भी थे। होसबले ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि भारतीयों ने अंग्रेजों की गुलामी के कारण अपना अपमान स्वीकार किया, तो आजादी के बाद इसे ठीक किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्यों कि हम और अधिक गुलाम मानसिकता प्रदर्शित करने की होड़ में लग गए।
‘नैरेटिव से बाहर आने की जरूरत’
होसबोले ने कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद इस सोच से बाहर आना चाहिए था, लेकिन एक विशेष सोच से प्रभावित लोगों ने अपनी संस्कृति को कमजोर करके दिखाया जिससे हमें नुकसान हुआ।’ आरएसएस के सरकार्यवाह ने कहा, ‘यही एक नैरेटिव था, जिसमें भारतीय संस्कृति की हर बात को अवैज्ञानिक बताया जाने लगा। नई शिक्षा पद्धति से पढ़े लिखे कई वैज्ञानिक, शिक्षक, पत्रकार, न्यायमूर्ति और अन्य पढ़े लिखे लोगों ने इस नैरेटिव को स्वीकार कर लिया। अब इस नैरेटिव से बाहर आने की जरूरत है।’
‘हमें गुलामी से बाहर आना होगा’
संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने नागरिकता के विचार पर सवाल उठाया जैसा कि आधुनिक दुनिया में समझा जाता है। उन्होंने कहा, ‘क्या नागरिकता और राष्ट्रीयता एक ही चीज़ हैं? होसबोले ने कहा कि नागरिकता एक राजनीतिक-कानूनी स्थिति है, जबकि राष्ट्रीयता एक सामाजिक-सांस्कृतिक अवधारणा है। क्या इस पर बहस नहीं होनी चाहिए? हमने यूरो-केंद्रित विचारों को अपने जीवन, अपने शिक्षा पाठ्यक्रम, शासन, बौद्धिक प्रवचन, मीडिया बहस और अपने समाज के प्रति अपने दृष्टिकोण में शामिल कर लिया है। हमें इस गुलामी से बाहर आना होगा। हमें यह समझने के लिए अपने दिमाग को उपनिवेश से मुक्त करना होगा कि हम कौन हैं।’
‘भारत को समझने के लिए संस्कृत को समझना जरूरी’
होसबोले ने यह भी कहा कि भारत को समझने के लिए संस्कृत को समझना होगा, लेकिन कोई भी इसका अध्ययन नहीं करना चाहता। लोग कहते हैं कि यह मृत भाषा है, ब्राह्मणों की भाषा है, शोषण की भाषा है। ऐसी बातें पिछले 150 वर्षों से, विशेषकर पिछले 75 वर्षों से कही जाती रही हैं। इसलिए, संस्कृत को हटा दिया गया और भारतीय विचार को भी हटा दिया गया।’
पुंज की किताब के बारे में बात करते हुए होसबोले ने कहा, ‘अगर कोई भारतीयों से भारत के बारे में बात करना चाहता है तो उसे भारतीय भाषा में बात करनी होगी। उन्होंने ने कहा कि हमारे देश में यदि आप अंग्रेजी में लिखते हैं, तो किताब खान मार्केट में बेची जाएगी और आपको बुद्धिजीवी माना जाएगा। हमें इस नैरेटिव को तोड़ना होगा। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि लोग हिंदी में लिखें।’