पिछले महीने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Congress leader Rahul Gandhi) को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया। सूरत कोर्ट ने उन्हें मानहानि मामले में 2 साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उन्हें अयोग्य घोषित किया गया। वर्ष 1988 से अब तक 42 सदस्यों को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया है। सबसे ज्यादा 19 सदस्यों को 14 लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया था।

1985 में दलबदल विरोधी कानून लागू होने के बाद लोकसभा सदस्य की पहली अयोग्यता कांग्रेस सदस्य लालदुहोमा (Lalduhoma) की थी। उन्होंने मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए मिजो नेशनल यूनियन (Mizo National Union) के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था।

नौवीं लोकसभा, जब जनता दल के तत्कालीन नेता वीपी सिंह (Janata Dal leader V P Singh) ने एक गठबंधन सरकार बनाई, तब लोकसभा के 9 सदस्यों को दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन करते देखा गया, जिसके कारण उनको अयोग्य घोषित किया गया था।

14वीं लोकसभा में सबसे अधिक 19 सांसदों को अपनी सदस्यता खोनी पड़ी थी। 14वीं लोकसभा में 10 सदस्यों को लोकसभा में प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत लेने के मामले में सदस्यता खोनी पड़ी थी। जबकि यूपीए 1 सरकार के खिलाफ आए विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान क्रॉस वोटिंग के लिए 9 सदस्यों की सदस्यता चली गई थी।

2005 में भाजपा के 6 सदस्यों, बसपा के 2 और कांग्रेस और राजद के 1-1 सदस्य को ‘cash for query’ घोटाले को लेकर लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। बसपा के एक राज्यसभा सदस्य को भी सदन से निष्कासित कर दिया गया।

10वीं लोकसभा में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, तब चार सदस्यों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। दलबदल विरोधी कानून के तहत राज्यसभा से भी अयोग्यता हुई है। मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989), सत्यपाल मलिक (1989), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया था।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और समाजवादी पार्टी की सदस्य जया बच्चन को क्रमशः 2001 और 2006 में लाभ का पद धारण करने के लिए राज्यसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। शिबू सोरेन जहां झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे, वहीं जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थीं।