आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा की फिर से अकाली दल में वापसी हुई है। आगामी चुनाव को लेकर भाजपा और अकाली दल (संयुक्त) के बीच होने वाले गठबंधन को लेकर उनका सुखदेव सिंह ढींढसा से टकराव हो गया था। 

कभी “माझे दा जरनैल” (पंजाब के माझा क्षेत्र के जनरल) के रूप में पहचाने जाने वाले रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा एक बार सांसद और चार बार के विधायक रह चुके हैं। लेकिन साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को मिली करारी हार के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के रूप में सुखबीर बादल के कामकाज पर सवाल उठाते हुए और चुनाव हारने के लिए उन्हें दोषी ठहराते हुए पार्टी छोड़ दी थी। 2017 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल का सफाया हो गया था, यहां तक ​​कि प्रमुख विपक्षी पार्टी का दर्जा भी खो दिया था।

कभी प्रकाश सिंह बादल के करीबी नेताओं में शामिल रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने अकाली दल से अलग होने के बाद अकाली दल (टकसाली) का गठन किया। हालांकि बाद में उन्होंने शिरोमणि अकाली दल संयुक्त में इसका विलय कर दिया था।

अकाली दल अपने नए गठबंधन सहयोगी बहुजन समाज पार्टी के साथ चौतरफा चुनावी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शामिल है। भाजपा ने आगामी चुनाव के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की लोक पंजाब कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। इसी को देखते हुए अकाली दल ने सभी बागी नेताओं से पार्टी में वापस आने की अपील की है।

रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा का अकाली दल में दोबारा शामिल होना काफी अहम माना जा रहा है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गुरुवार को प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल खुद ब्रह्मपुरा के चंडीगढ़ स्थित आवास पर गए। रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा की तारीफ करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि अगर उन्हें पांच बार पंजाब का सीएम बनने का मौका मिला, तो इसमें ब्रह्मपुरा की बड़ी भूमिका थी। ब्रह्मपुरा साहब अकाली हैं और हमेशा अकाली रहेंगे। मैं बहुत खुश हूं कि दो भाइयों ने फिर हाथ मिलाया है। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि मैं अन्य अकाली नेताओं से भी लौटने की अपील करता हूं जिन्होंने ब्रह्मपुरा द्वारा चुने गए रास्ते पर चलने के लिए पार्टी छोड़ दी।

इस अवसर पर रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि मैं कुछ समय के लिए अपनी पार्टी से छुट्टी पर था, ठीक उसी तरह जैसे एक फौजी अपनी बटालियन में शामिल होने से पहले कुछ समय के लिए छुट्टी पर जाता है। उन्होंने कहा कि अकाली दल ने सिख समुदाय और पंजाब के लिए सबसे अधिक बलिदान दिया है और अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पार्टी को मजबूत करें। प्रकाश सिंह बादल ने सुखबीर बादल को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि ब्रह्मपुरा की चिंताओं का ध्यान रखा जाए। बाद में अकाली मुखिया और ब्रह्मपुरा पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में भी शामिल हुए।

अगले साल की शुरुआत में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले अकाली दल को कई झटके लगे हैं। माझा क्षेत्र के प्रमुख नेता और सुखबीर सिंह बादल के साले बिक्रम सिंह मजीठिया पर पंजाब पुलिस ने ड्रग्स मामले में केस दर्ज किया है। हाल ही में अकाली दल को उस समय गहरा झटका लगा जब सुखबीर के करीबी और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख मनजिंदर सिंह सिरसा ने पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए।

केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा के साथ अपने गठबंधन को तोड़ने के बाद अकाली दल ने राज्य में दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए मायावती के नेतृत्व वाली बसपा के साथ हाथ मिलाया है। पंजाब की कुल 117 विधानसभा सीटों में अकाली दल 97 और बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।