फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंक्वा ओलांद ने अपने इंटरव्यू में कहा कि फ्रांस ने किसी भी तरह से भारतीय कारोबारी अनिल अंबानी की कंपनी को साझेदारी के लिए नहीं चुना है। राफेल फाइटर जेट डील के बारे में कोई भी टिप्पणी सिर्फ दसॉल्ट कंपनी ही कर सकती है।

ये पूछने पर कि क्या भारत ने रिलायंस और दसॉल्ट पर साथ काम करने के लिए दबाव डाला था? ओलांद ने कहा कि वह इससे अनभिज्ञ हैं और सिर्फ दसॉल्ट ही इस पर टिप्पणी कर सकती है। ये बातें ओलांद ने फ्रांस की न्यूज एजेंसी एएफपी से कही हैं। ओलांद ने ये बातें फ्रेंच न्यूज एजेंसी से उस वक्त कहीं जब वे कनाडा में आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने यह भी कहा कि इसीलिए इस ग्रुप (रिलायंस) को किसी भी चीज के लिए मेरा शुक्रिया अदा करने की कोई जरूरत नहीं है।

वैसे बता दें कि शुक्रवार (21 सितंबर) को ​मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में ओलांद ने कहा था कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे में दसॉल्ट एविएशन को साझेदारी के लिए अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस के अलावा कोई विकल्प नहीं दिया गया था।

फ्रांस के जर्नल मीडियापार्ट में प्रकाशित लेख में ओलांद का बयान प्रकाशित किया गया है। ओलांद से सवाल किया गया था कि रिलायंस को बतौर साझीदार किसने चुना और क्यों चुना? उन्होंन जवाब दिया था कि ये भारत सरकार थी जिसने रिलायंस के नाम का प्रस्ताव किया था और दसॉल्ट के पास रिलायंस से साझेदारी के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

ओलांद ने कहा,”हमारे पास इसमें कहने के लिए कुछ नहीं है। भारत सरकार ने सर्विस ग्रुप का प्रस्ताव दिया था और दसॉल्ट ने अंबानी के साथ मोलभाव किया था। हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। हमने उसी से बातचीत की, जिसे हमें दिया गया।” ये इंटरव्यू फ्रेंच भाषा में अखबार लेमांड में प्रकाशित किया गया। जबकि इसे लेमांड की पत्रकार जूलियन बोइस्सू ने ट्वीट किया था।

ओलांद का ये बयान भारत सरकार के उस दावे से मेल नहीं खाता है जिसमें ये कहा गया था कि करार दसॉल्ट और रिलायंस के बीच हुआ है। ये पूरी तरह से वाणिज्यिक करार है जो दो निजी पक्षों के बीच किया गया है और सरकार का इससे कोई लेना—देना नहीं है।