Former Delhi High Court Judge Muralidhar: दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस मुलरलीधर अब वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में सामने आ चुके हैं। सीनियर अधिवक्ता के रूप में मुरलीधर ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि 2006 के लोकल ट्रेन सीरियल ब्लास्ट मामले में दो दोषी ‘निर्दोष’ हैं और बिना पर्याप्त सबूतों के 18 साल से जेल में बंद हैं। मुरलीधर दिल्ली हाईकोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जज और उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं।
लेकिन मुरलीधर एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में वापस आ गए हैं। अब वो दो दोषियों- मुज़म्मिल शेख और ज़मीर शेख की पैरवी कर रहे हैं। जिन्हें 2015 में सीरियल बम विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
बता दें, 11 जुलाई, 2006 को पश्चिमी उपनगरीय ट्रेनों के सात डिब्बों में सिलसिलेवार बम विस्फोट हुए, जिसमें 189 यात्री मारे गए और 824 घायल हो गए। आठ साल से अधिक समय तक चली सुनवाई के बाद, अक्टूबर 2015 में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक स्पेशल कोर्ट ने पांच दोषियों को मौत की सज़ा और सात अन्य को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। बॉम्बे हाई कोर्ट की एक विशेष पीठ राज्य सरकार द्वारा मौत की पुष्टि की याचिकाओं और मामले में दोषियों पर लगाए गए आजीवन कारावास के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई कर रही है।
बॉम्बे हाई कोर्ट में दो दोषियों का प्रतिनिधित्व करते हुए नागरिक अधिकारों पर अपने फैसलों के लिए मशहूर मुरलीधर ने महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) की जांच में ‘पक्षपात’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में सालों बाद आरोपी सबूतों के अभाव में जेल से रिहा हो जाते हैं और उनके जीवन के उन अहम हिस्सों को फिर से नहीं लौटाया जा सकता।
मुरलीधर ने आगे आरोप लगाया कि सार्वजनिक आक्रोश वाले मामलों में जांच एजेंसी यह मानकर उनसे संपर्क करती है कि आरोपी दोषी हैं, और ऐसे कई आतंकवाद-संबंधी मामलों में अधिकारी हमें बुरी तरह से निराश कर चुके हैं।
जानकारी के लिए यह भी बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने वकील की पोशाक पहनकर किसी अन्य हाई कोर्ट में बहस की है, जहां उन्होंने काम नहीं किया है। संविधान के अनुच्छेद 220 में स्थायी न्यायाधीश बनने के बाद प्रैक्टिस पर ‘प्रतिबंध’ लगाया गया है और कहा गया है कि एक पूर्व उच्च न्यायालय न्यायाधीश केवल सर्वोच्च न्यायालय या उन उच्च न्यायालयों में ही अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर सकता है, जहां उन्होंने न्यायाधीश के रूप में काम नहीं किया है।
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7 अगस्त 2023 को उड़ीसा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने के दो महीने बाद, 16 अक्टूबर 2023 को मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
नवंबर 2023 में, वह मद्रास हाई कोर्ट द्वारा उनके खिलाफ जारी की गई प्रतिकूल टिप्पणियों के संबंध में एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हुए। पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट ने मुरलीधर को इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था, ताकि यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए जा सकें कि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) याचिकाओं में गलत बयान न दें।
8 अगस्त 1961 को जन्मे मुरलीधर सितंबर 1984 में एक वकील के रूप में पंजीकृत हुए। उन्होंने चेन्नई में कानून की प्रैक्टिस की और बाद में दिल्ली चले गए। उन्हें मई 2006 में दिल्ली हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया और मार्च 2020 में उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
फरवरी 2020 में जिस दिन केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उनके तबादले की अधिसूचना जारी की, उसी दिन जस्टिस मुरलीधर की अगुवाई वाली बेंच ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा पर “दुख” व्यक्त किया। दिल्ली पुलिस के आचरण पर सवाल उठाते हुए उन्होंने उन्हें नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया।
जस्टिस मुरलीधर 2009 में नाज़ फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाई कोर्ट की दो न्यायाधीशों वाली पीठ के फैसले का भी हिस्सा थे, जिसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। मई 2024 में सेवानिवृत्त होने वाले न्यायमूर्ति प्रकाश डी नाइक, नवंबर 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले न्यायमूर्ति आरके देशपांडे और अगस्त 2021 में व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा देने वाले न्यायमूर्ति दामा शेषाद्रि नायडू सहित बॉम्बे उच्च न्यायालय के कई पूर्व न्यायाधीश हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में शामिल हैं।
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(इंडियन एक्सप्रेस के लिए ओमकार गोखले की रिपोर्ट)