Centre vs States: विदेशी और कूटनीतिक मामलों को लेकर सारा जिम्मा केंद्र सरकार का है और उसके वर्किंग स्पेस में दखल देने को लेकर केंद्र सरकार ने नाराजगी जताई है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने राज्यों को इस तरह के दखल न देने की सलाह देते हुए इसे संविधान विरोधी तक बताया है। केंद्र सरकार ने केरल में विदेशी सहयोग सचिव की नियुक्ति की तीखी आलोचना भी की है। केंद्र की इस सलाह में न केवल केरल बल्कि पश्चिम बंगाल सरकार को भी निशाने पर लिया गया है।
केंद्र ने राज्यों से कहा है कि वे अपने संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर के मामलों में हस्तक्षेप न करें। केंद्र सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में पश्चिम बंगाल को चेतावनी दी थी कि शरणार्थियों के मुद्दे पर उसका कोई अधिकारी नहीं है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक रैली के दौरान यह तक कह दिया था कि हिंसाग्रस्त बांग्लादेश में हिंसा न रुकी, तो राज्य सरकार भागकर आए लोगों को बंगाल में शरण देगी।
केंद्र ने याद दिलाया संविधान
विदेश मंत्रालय ने इस विषय को लेकर कहा है कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-1 (संघ) के आइटम-10 में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया गया है। विदेश मामले और सभी मामले जो संघ के किसी अन्य देश के साथ संबंध से जुड़े हैं, पर केंद्र सरकार का एकमात्र विशेषाधिकार है। यह समवर्ती या राज्य का विषय नहीं है। हमारी स्थिति यह है कि राज्य सरकारों को उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जो उनके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
कनाडा को लेकर दी सफाई
वहीं कनाडा में प्रधानमंत्री एवं अन्य नेताओं को सोशल मीडिया के जरिए हत्या की धमकी देने के मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी को लेकर विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस बारे में रिपोर्ट देखी हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रनधीर जायसवाल ने कहा है कि साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा कि जब कोई लोकतंत्र, कानून के शासन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मापने या लागू करने के लिए अलग-अलग पैमाने अपनाता है, तो यह केवल उसके अपने दोहरे मानदंड को उजागर करता है।
बता दें कि ममता बनर्जी के बयान पर बांग्लादेश सरकार ने नाराजगी जताई थी और कहा था कि ममता का बयान भड़काऊ और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है। बांग्लादेश सरकार समझती है कि जब हालात सामान्य हो रहे हैं तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का इस तरह का बयान स्थिति को बिगाड़ सकती है।
