सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुख्यमंत्री और मुकेश अग्निहोत्री ने उपमुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। मंत्रिमंडल में अभी दस और मंत्री शामिल होने हैं जिन्हें लेकर कांग्रेस में माथापच्ची चल रही है। रोचक कहें यह फिर हिमाचल की आधी आबादी जो मतदाताओं के लिहाज से पुरुषों से कहीं आगे हैं, का दुर्भाग्य, इस बार प्रदेश मंत्रिमंडल में कोई भी महिला देखने को नहीं मिलेगी। कारण यही है कि कांग्रेस की ओर से एक भी महिला विधायक जीत कर नहीं आई है। पूरे 68 विधायकों में एक महिला जिला सिरमौर के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से रीना कश्यप जीती हैं जो भाजपा से हैं। कांग्रेस की कोई भी महिला उम्मीदवार जीत कर नहीं आ सकी हैं।
कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका डलहौजी से लगा है जहां मंत्री ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री पद की दावेदार आशा कुमारी चुनाव हार गर्इं। वे कई बार वीरभद्र मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुकी हैं। अगर मुख्यमंत्री बनने से रह भी जातीं तो वे वरिष्ठ मंत्री जरूर बनतीं। मंडी की सांसद व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने अपने लिए पूरा जोर लगाया। दबाव भी बनाया।
समर्थकों से प्रदर्शन भी करवाया और पर्यवेक्षकों को भी घेरा मगर आलाकमान टस से मस नहीं हुर्इं। सांसद को मुख्यमंत्री बनाकर आलाकमान कुछ ही दिनों में फिर से मंडी लोकसभा के लिए उपचुनाव में जाने का इच्छुक नहीं दिखा और किसी तरह इस बार कांग्रेस सत्ता का संतुलन भी वीरभद्र परिवार से बाहर करके बिठाना चाहता था जो उसने किया और प्रतिभा सिंह की मंशा पर पानी फेर दिया।
प्रतिभा के पिछड़ने, आशा कुमारी व अन्य कांग्रेस उम्मीदवारों की हार के बाद अब हिमाचल के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा प्रदेश मंत्रिमंडल में कोई भी महिला शामिल नहीं हो पाएगी। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने तीन महिलाओं को उम्मीदवार के तौर पर उतारा था जिनमें आशा कुमारी डलहौजी से, दयाल प्यारी पच्छाद से और चंपा ठाकुर मंडी सदर से उम्मीदवार थीं मगर किसी को जीत नहीं मिल सकीं।
भाजपा ने भी पांच महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था मगर एक ही रीना कश्यप जीत पार्इं। भाजपा ने अपनी सरकार में शाहपुर से कई बार जीत कर मंत्री बनने वाली सरवीण चौधरी को मंत्री बनाया था। उससे पहले कांग्रेस की सरकार में आशा कुमारी मंत्री रही थीं। हर सरकार में एक महिला मंत्री जरूर रहती आई हैं मगर इस बार कोई नहीं जबकि प्रदेश के 55 लाख मतदाताओं में 28 लाख महिलाएं हैं। आबादी की बात करें तो 70 लाख की आबादी में 35 लाख से अधिक महिलाएं हैं।
सरकार ने पंचायती राज संगठनों से लेकर नगर निकायों तक महिलाओं के लिए विशेष आरक्षण जो 50 फीसद तक है मगर विधानसभा व लोकसभा में ऐसी व्यवस्था न होने के कारण महिलाओं को बहुत कम टिकट दिए जाते हैं जिससे यह स्थिति पैदा हो रही है। ऐसे में आधी आबादी अपने प्रतिनिधित्व से वंचित हो जाएगी।
देखना यह होगा कि हिमाचल के नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अब मंत्रिमंडल के अलावा और दूसरे अदारों में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में कितना सफल होते हैं। बहरहाल तो पहली बार प्रदेश कांग्रेस की सरकार में कोई भी महिला मंत्री नहीं होगी जो अपने आप में इस वर्ग के लिए एक अभिशाप से कम नहीं माना जा सकता।
सुक्खू सरकार के सामने कई चुनौतियां
हिमाचल में रिवाज नहीं बदला और पांच साल बाद फिर से सरकार बदल गई। प्रदेश में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में नई सरकार ने कामकाज संभाल लिया। पत्रकार से राजनेता बने मुकेश अग्निहोत्री हिमाचल के पहले उपमुख्यमंत्री बने हैं। इससे पहले प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की परंपरा नहीं रही है।
70 हजार करोड़ से भी अधिक के कर्जे में डूबे हिमाचल प्रदेश में जिला हमीरपुर के नादौन विधानसभा हल्के से चौथी बार जीते अठावन साल के सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कांटों से भरे ताज से कम नहीं हैं। सुक्खू को प्रदेश में सबसे ज्यादा छह बार मुख्यमंत्री रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह का विरोधी नेता माना जाता है।
कांग्रेस ने प्रदेश में 55 साल राज किया मगर मुख्यमंत्री बनाने के लिए मामले में उसने कभी शिमला संसदीय क्षेत्र से बाहर नहीं झांका। पहली बार कांग्रेस राज में प्रदेश के निचले हिस्से को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के साथ साथ उना के हरोली से जीते मुकेश अग्निहोत्री के रूप में उपमुख्यमंत्री मिला है जिसे एक साहसिक पहल का नाम दिया जा रहा है।
सुक्खू के लिए इस पहाड़ी प्रदेश जहां पर संसाधन कम और खर्चे ज्यादा हैं, जिसे हर मदद के लिए केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है और केंद्र में इस समय भाजपा नीत सरकार है ऐसे में एक बड़ी चुनौती सामने है। ऊपर से कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र, जिसे प्रतिज्ञापत्र व दस गारंटियों के साथ जारी किया गया है, में इतने लुभावने वादे किए हैं जिन्हें पूरा करने के लिए हर महीने करोड़ों रुपए की जरूरत रहेगी।
सालाना बजट में इन गारंटियों को पूरा करने के लिए एक बड़ी रकम की जरूरत होगी। इनमें सबसे बड़ा पुरानी पेंशन की बहाली का है जिसे देश के कई बड़े बड़े व संपन्न राज्य नहीं कर पा रहे हैं उसे बहाल करने का सबसे बड़ा वादा पहली ही कैबिनेट बैठक में पूरा करने का एलान पार्टी का है।
इसी तरह से 18 से 60 साल की आयु वाली महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए देने का एलान है। एक लाख नौकरियां हर साल देने की बात कही गई है। सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों के लिए दस-दस करोड़ यानी कुल 680 करोड़ का स्टार्टअप फंड देने जैसे वादे भी हैं। ऐसे में पहले ही उधारी पर चल रहे प्रदेश में किसी भी मुख्यमंत्री के लिए यह सब तब तक आसान नहीं रहेगा जब तक केंद्र खुल कर मदद न करें।
सुक्खू सरकार ने पहले ही दिन कुछ नई नियुक्तियां भी कर दी है। एक डीसी जो उनके कांग्रेसी विधायक के साथ पहले से फिट नहीं बैठ रहा था को स्थानानतरित कर दिया है। पहले ही दिन बेहद कडेÞ, सख्त और चौंकाने वाले फैसले लेकर सुक्खू सरकार ने यह संकेत दे दिया है कि वे जय राम सरकार के शराफत वाले तगमे को लेकर आगे नहीं बढ़ेगी बल्कि अपनी तेज तर्रार छवि बनाएगी और अफसरशाही पर भी पूरी नुकेल कसेगी।
अब देखना यह होगा कि कांटों के इस ताज को लेकर कुर्सी पर बैठे सुखविंदर सिंह सुक्खू जिनके पास पहले कभी मंत्री बनने का अनुभव नहीं है, जो विधायक से सीधे मुख्यमंत्री ही बने हैं, पार्टी की गुटबाजी, हालीलाज के दबाव, तेजतर्रार उपमुख्यमंत्री, बेतहाशा कर्जा और सीमित आय के साथ अपनी इस लय को कितना और कब तक बरकरार रख पाते हैं।
यूं पहले दिन लिए गए सख्त फैसलों को लेकर मुख्यमंत्री व सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने इस फैसलों को लेकर सख्त टिप्पणी की है। उन्होंने इसे बदले की भावना करार दिया है तथा सभी निर्णयों को जनविरोधी, विकास विरोधी व प्रदेश के विरोध में बताया है।