कोयले और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाने से भारत और पाकिस्तान में हाल के दिनों में लू की लपट महसूस की जा रही है। झुलसाने वाली तपिश में भारत और पाकिस्तान में कम से कम 90 लोगों की मौत दर्ज की गई है। जलवायु वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय समूह- वर्ल्ड वेदर एट्रीब्युशन (डब्लूडब्लूए) की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर इंसानी दखल नहीं होता तो तापमान एक डिग्री सेल्सियस कम होता और इसकी आशंका 30 गुना कम होती। पिछले सप्ताह, ब्रिटेन के मौसम विभाग से जारी एक आकलन के मुताबिक इंसानी दखल ने बेतहाशा गर्मी की आशंका को सौ गुना बढ़ा दिया है।
इन विश्लेषणों में इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि कार्बन प्रदूषण पहले ही समाज पर अपना कहर बरपा रहा है। भीषण गर्मी से भारत में जंगल जल उठे हैं, ग्लेशियर पिघलने लगे हैं, जिसके चलते पाकिस्तान में आकस्मिक बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं और दोनों देशों में बिजली गुल होने लगी है। फसलों की पैदावार पर भी असर पड़ा है।
आइआइटी दिल्ली में वैज्ञानिक और डब्लूडब्लूए शोध के सहलेखक कृष्णा अच्युताकाव के मुताबिक, ‘भविष्य में वैश्विक तापमान के लिहाज से जाहिर है इस किस्म की लू आम और ज्यादा तीव्र हो जाएंगी।’ विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि फसल पर पड़ने वाला असर विशेष तौर पर चिंताजनक है। मौसमी परिघटनाओं के अध्ययन से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की एजंसी- विश्व मौसम संगठन की पिछले बुधवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन संघर्ष, जलवायु, कोविड और अर्थव्यवस्था के संकटों की कड़ियां, खाद्य सुरक्षा के लिहाज से दशकों के विकास को पहले ही कमतर कर चुकी थी।
आधा पेट भोजन करने वाले लोगों की संख्या में दशकों तक जारी गिरावट के बाद, 2010 के दशक में सपाट हो गई थी, लेकिन 2020 में उसमें भारी वृद्धि का अनुमान है। यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया के दो सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों से अनाज के निर्यात को बाधित कर दिया है। इस महीने के शुरू में, चीन के बाद गेहूं के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश भारत ने गर्मी से झुलस चुके खेतों और बर्बाद हुई फसलों को देखते हुए निर्यात पर रोक लगा दी है।
डब्लूडब्लूए अध्ययन में शामिल, अंतरराष्ट्रीय रेड क्रास – रेड क्रेसेंट क्लाइमेट सेंटर में रिस्क मैनेजमेंट की विशेषज्ञ अदिति कपूर का कहना है कि फसल जब पक कर तैयार होने को थी तभी गेहूं पर तीखी गर्मी की मार पड़ी। अनुमान है कि भारत के 10 से 30 फीसद गेहूं पर इसका असर हुआ। पहले तो किसान प्रभावित हुए, और जब कीमतों में उछाल आया तो खाना खरीदने वाले गरीब लोगों पर असर पड़ा।
पिछले साल एनर्जी रिसर्च एंड सोशल साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि वर्ष 1965 और 2018 के बीच, धरती को गर्म करने वाले एक तिहाई जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन और सीमेंट उत् पादन के लिए, 20 कंपनियां जिम्मेदार थीं। इसमें उन जीवाश्म ईंधनों का प्रदूषण भी शामिल था जो इन कंपनियों ने तीसरी पार्टी को बेचा था।
चार सबसे बड़ी, निवेशकों के स्वामित्व वाली जीवाश्म ईंधन कं पनियां- शेवरान, एक्सानमोबिल, बीपी और शेल, 11 फीसद उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार थीं। वैश्विक जलवायु में लू का अप्रत्यक्ष असर हो सकता है। यह ग्लेशियर को गला सकती हैं, आकस्मिक बाढ़ भी ला सकती हैं। ऐसी ही एक बाढ़ ने मई में पाकिस्तान में भयंकर तबाही मचाई थी और पुल बह गए थे। अपेक्षाकृत गर्म हवा ज्यादा नमी सहन कर लेती है, जिसके चलते ज्यादा भारी बारिश आती है। जबकि दूसरे जलवायु कारक दूसरे ढंग से काम कर सकते हैं।
पिछले सप्ताह असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर के राज्य भारी बारिश और गर्मी की दोहरी तबाही में फंस गए थे। औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से लोग धरती को करीब 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म पहले ही कर चुके हैं। वर्ष 2015 में विश्व नेताओं ने एक समझौते पर दस्तखत कर, वैश्विक तापमान में कटौती के लिए उसे इस शताब्दी के आखिर तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश पर सहमति बनी थी।
हालांकि हो ये रहा है कि कई देश ऐसी नीतियों पर आमादा हैं जो उपरोक्त ऊपरी सीमा से करीब दोगुना हैं। अगर वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा तक पहुंचता है, तो डब्लूडब्लूए की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान पर हाल में बरपा, लू के कहर का खतरा आज के मुकाबले दो से 20 गुना ज्यादा होगा और तापमान 0.5 से 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होगी।