सीवर साफ करने के दौरान कर्मचारियों की मौत पर राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) ने चौंकाने वाली रिपोर्ट दी है। इसके मुताबिक साल 2019 के शुरुआती 6 महीनों के भीतर सीवर सफाई के दौरान पचास कर्मचारियों की मौत हो गई। हालांकि NCSK ने कहा कि डेटा सिर्फ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु सहित कुल आठ राज्यों का है। इसमें सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया गया। NCSK के मुताबिक इस आठ राज्यों में कई में मृतकों की संख्या कम बताई गई है।
उदारहण के लिए इंडियन एक्सप्रेस को मिले आयोग के आधिकारिक डेटा के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक जनवरी से 20 जून तक तीन सफाईकर्मियों की मृत्यु दर्ज की गई, मगर इस दौरान कई सफाईकर्मियों की मौत की खबर मिली। जून में दिल्ली जल बोर्ड के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में मरम्मत करने के लिए लगाए गए तीन श्रमिकों की मृत्यु की पुष्टि राज्य द्वारा नहीं की गई है। इसलिए एनसीएसके द्वारा ये मौत आधिकारिक तौर पर दर्ज नहीं की गई है। NCSK देश की एकमात्र एजेंसी है जो सफाईकर्मियों की मौत का डेटा रखती है।
आयोग, जिसने केवल दो साल पहले सफाईकर्मी हताहतों की संख्या पर कम करना शुरू किया, ने बताया कि साल 1993 के बाद से 817 सीवर में काम कर रहे लोगों की मौत हो चुकी है। खास बात है कि यह डेटा केवल 20 राज्यों का है वो भी इसी साल के 30 जून तक। इसके बाद ऐसे में मामलों में कोई रिपोर्टिंग नहीं हुई।
राज्यवार बात करें तो तमिलनाडु में सीवर में काम के दौरान सबसे अधिक 210 लोगों की मौत हो गई। इसी तरह गुजरात में 156, उत्तर प्रदेश में 77 और हरियाणा में 70 लोगों की मौत इसी तरह हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक सीवेज सफाई के दौरान हुई मौते पर मुआवजा देने के मामले में तमिलनाडु का औसत सबसे अच्छा रहा। प्रदेश सरकार में ऐसे मामले में 75 फीसदी मृतकों के परिवारों को जरुरी 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया। इसके उलट गुजरात महज तीस फीसदी मृतकों के परिवार मुआवजा पा सके।