तीन कृषि कानूनों के विरोध में हो रहे किसान आंदोलन को दो महीने होने को हैं। दिल्ली की सीमाओं पर किसान इस कड़ाके की ठंड में भी डटे हुए हैं। इस आंदोलन में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। रोटी बनाती हुई बुजुर्ग महिला से जब पूछा गया कि 55 दिन के बाद भी हौसला कैसे बुलंद है और वह ठंड में क्यों सड़कों पर हैं तो उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें ठंड में रहने को मजबूर कर दिया है।
एक बुजुर्ग महिला ने कहा, ‘जो कानून इन्होंने बनाए हैं, ये तुरंत रद्द होने चाहिए। हम इसी तरह मोर्चे पर डटे रहेंगे। हम घर से बाहर नहीं निकलते। उन्होंने हमें सड़कों पर रोला है। जब हमें ये कानून नहीं चाहिए तो क्यों थोपे जा रहे हैं। जब बैठकें करते हैं तो इससे कोई नतीजा क्यों नहीं निकलता।’
आंदोलन में आए एक अन्य किसान ने कहा, ‘पंजाब में 12 हजार गांव हैं और रिपब्लिक डे पर हर गांव से कम से कम 50 ट्रैक्टर आएंगे। हमारी तो यही अपील है कि कानून को वापस ले लें। कुछ अफवाहें भी हैं कि किसान तिरंगा फहराएंगे। सरकार सोचती है कि मीटिंग पर मीटिंग करते रहेंगे लेकिन बात नहीं सुनेंगे।’ उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन पर कोई रोक नहीं है। बैरिकेटिंग इसलिए की गई है ताकि किसानों को भड़काया जा सके।
एक अन्य किसान ने कहा, ‘किसान मोर्चा में कुछ मतभेद हो गया था जो कि अब ठीक हो गया है। 26 जनवरी की परेड होकर रहेगी।इसके लिए दिल्ली पुलिस से मीटिंग की जाएगी। चाहे कितनी भी सुरक्षा बढ़ा दी जाए, हमने ठान लिया है कि आगे जाना है तो जाना है। बस चुनौती है कि कोई हिंसा न हो। 23 जनवरी को सुभाष जयंती पर किसानों को सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी दी जाएगी।’
बता दें कि किसानों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने सरकार को भी फटकार लगाई थी और तीनों कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने एक कमिटी बना दी जिससे की स्थिति और स्पष्ट हो सके और किसानों से बातचीत का माहौल बनाया जा सके। आज कमिटी की पहली बैठक हुई। बैठक के बाद एक सदस्य अनिल घटवट ने कहा कि समिति के सदस्य जब सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट भेजेंगे तो अपने निजी विचारों को कएक तरफ रख देंगे। उन्होंने कहा कि आज कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा हुई है।