किसान आंदोलन के दौरान लगभग 60 किसानों की जान जा चुकी है। कुछ की बीमारी या ठंड की वजह से मौत हो गई तो वहीं कई लोगों ने खुदकुशी कर ली। मंगलवार को भी ऐसी ही घटना सामने आई। एक किसान ने खुद को गोली मार ली। मौके पर ही उसकी मौत हो गई। बाद में मृतक की पहचान फिरोजपुर के एक गांव महिमा के ग्रंथी नसीब सिंह मान के तौर पर हुई।
ग्रंथी किसान ने अपने सूइसाइड नोट में लिखा कि उसपर कोई कर्जा नहीं है लेकिन काले कानूनों की वजह से किसानों के दयनीय हालात देखकर दुखी हूं। ‘मेरी मौत के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है। सारा पंथ बसे, पंजाब बसे। मुझे मरने का कोई शौक नहीं था।’ आंदोलन के दौरान आंत्महत्या की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहेल ग्रंथी राम सिंह ने भी खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली थी।
हरियाणा के सोनीपत जिले में भी धरनास्थल पर ही एक किसान ने ज़हर खा लिया था। उसे पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन जान नहीं बचाई जा सकी। किसान की पहचान सरथला के रहने वाले लाभ सिंह के रूप में हुई। वह लगभग 40 साल के थे। कई दिनों से वह धरना दे रहे थे।
इसके अलावा दिल्ली के धरने से लौटे बरनाला के एक किसान ने भी घर पहुंचकर आत्महत्या कर ली। वह गांव से राशन लेकर दिल्ली जाता था। इसी तरह कई बुजुर्ग किसानों की भी बीमारी की वजह से जान चली गई। बताया जा रहा है कि अब तक 60 किसानों की जान जा चुकी है। उधर आज सुप्रीम कोर्ट में भी किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सदस्यों की एक कमिटी भी बनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले का हल निकालना बहुत जरूरी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी और कहा कि वह मसले को सुलझाने में सक्षम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनों पर रोक लगाने से बातचीत का रास्ता आसान हो जाएगा और तस्वीर और ज्यादा साफ होगी।
