तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन के बीच ‘भारतीय किसान यूनियन (भानु)’ ने इन कानूनों की संवैधानिक वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिए आवेदन दायर किया है। कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 17 दिसंबर का सुनवाई होने की संभावना है।
भारतीय किसान यूनियन (भानु) के मथुरा निवासी अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने द्रमुक सांसद तिरूचि शिवा की याचिका में पक्षकार बनने के लिए यह आवेदन दायर किया है। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन के पीठ ने 12 अक्तूबर को तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली राजद सांसद मनोज झा, द्रमुक सांसद तिरूचि शिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव की याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किए थे। केंद्र को चार सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना था।
अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उसी समय पीठ से कहा कि इन सभी याचिकाओं पर केंद्र एक समेकित जवाब दाखिल करेगा। न्यायालय में मामलों की स्थिति दर्शाने वाले विवरण के अनुसार इसके 17 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है।
संसद के मानसून सत्र में तीन विधेयक- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किए गए थे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी मिलने के बाद तीनों विधेयकों को कानून का दर्जा मिल गया था और ये 27 सितंबर से प्रभावी हो गए थे।
इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि संसद द्वारा पारित कृषि कानून किसानों को कृषि उत्पादों का उचित मूल्य सुनिश्चित कराने के लिए बनाई गई कृषि उपज मंडी समिति व्यवस्था को खत्म कर देंगे। वैष्णव ने दलील दी कि ये कानून राज्य के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं और ऐसी स्थिति में शीर्ष अदालत को इन पर विचार करना चाहिए।
अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से याचिका दायर करने वाले मनोज झा ने कहा कि इन कानून से सीमांत किसानों का बड़े व्यापारिक घरानों द्वारा शोषण की संभावना बढ़ जाएगी। याचिका में कहा गया है कि व्यापारिक के साथ किसानों की कृषि समझौते पर बातचीत की स्थिति असमानता वाली है और इससे कृषि क्षेत्र पर बड़े घरानों का एकाधिकार हो जाएगा।
द्रमुक नेता तिरूचि शिवा ने अपनी याचिका में कहा है कि ये नए कानून पहली नजर में ही असंवैधानिक, गैरकानूनी और मनमाने हैं। उन्होंने दलील दी है कि ये कानून किसान और कृषि विरोधी हैं। याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान बनाए गए इन कानूनों का एकमात्र मकसद सत्ता से नजदीकी रखने वाले कुछ व्यापारिक घरानों को लाभ पहुंचाना है।
इस याचिका में कहा गया है कि ये कानून कृषि उपज के लिए गुटबंदी और व्यवसायीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगे। उन्होंने कहा कि अगर यह कानून लागू हुआ तो देश बर्बाद हो जाएगा क्योंकि बगैर किसी नियम के ये कॉरपोरेट एक ही झटके में हमारी कृषि उपज का निर्यात कर सकते हैं। केरल से कांग्रेस के एक सांसद टीएन प्रतापन ने भी नए किसान कानून के तमाम प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है।