पिछले 72 दिनों से दिल्ली से लगे सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसान आंदोलन चल रहा है। इसी बीच राकेश टिकैत से मिलने उनकी पत्नी गाजीपुर बॉर्डर पर भी आईं लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी से अकेले में बात नहीं की। इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत किस्सा सुनाकर बोलने लगे कि जब आंदोलन में हूँ तो घर से क्या मतलब।
किसान नेता राकेश टिकैत से जब न्यूज 24 संवाददाता ने पूछा कि इतने दिनों से आप आंदोलन में हैं तो आपको घर और बच्चों की याद नहीं आती है। इसपर जवाब देते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि मेरा उनसे क्या मतलब है, जब आंदोलन में हो गए तो फिर घर से क्या मतलब है। आगे टिकैत ने कहा कि वे भी तो बच्चे हैं जो जेलों में चले गए और मर गए। लोग आंदोलन में मारे जायेंगे और आप घर परिवार में उलझे रहोगे तो कैसे होगा।
आगे टिकैत ने कहा कि मेरी पत्नी जब मुझसे मिलने आई थी तो दो लोग मेरे साथ बैठे हुए थे। जिसके बाद वे दोनों लोग जाने लगे तो मैंने कहा कि आप कहाँ जाने लगे। उन्होंने कहा कि अगर पत्नी को भी कुछ बात करनी है तो सामने करनी पड़ेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि लोग मेरे घर की बातों के भी गवाह बने रहेंगे। इसके अलावा टिकैत ने कहा कि यहाँ जो भी मौजूद हैं वे सभी उनके बच्चे हैं।
छब्बीस जनवरी के घटनाक्रम के बाद प्रशासन ने 28 जनवरी की रात को किसान आंदोलनकारियों को गाजीपुर बॉर्डर को खाली करने का आदेश जारी किया था। बिजली-पानी बंद कर दिया गया और तंबू उखड़ने लगे। वहां मौजूद किसान बेहद मायूसी में वापसी का मन बना रहे थे। सरकार से हर कीमत पर टकराने और अपनी मांगें डंके की चोट पर मनवाने की बात कहने वाले राकेश टिकैत अचानक बेहद बेबसी के आलम में मंच पर बैठ गए और फफक-फफक रोने लगे। उन्हें इस स्थिति में देखकर घर वापसी के लिए उठे कदम वापस लौट आए।
राकेश टिकैत महेन्द्र सिंह टिकैत के चार बेटों में दूसरे नंबर के बेटे हैं। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से एम.ए. तक पढ़ाई की है। वह 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के तौर पर भर्ती हो हुए थे। इस दौरान उनके पिता कई किसान आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे थे और उनका संगठन उत्तर प्रदेश तथा उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अपना असर दिखा रहा था। लिहाजा 1993 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने पिता के नेतृत्व में लालकिले पर चल रहे किसान आंदोलन का हिस्सा बनने का फैसला किया।