तीन कृषि कानूनों का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्य और शेतकारी संगठन से जुड़े अनिल घनवट ने कहा है कि पैनल को निरस्त कानूनों के समर्थन में अधिकांश प्रस्तुतियां मिलीं हैं। हालांकि, उन्होंने संकेत दिया कि इसकी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
सोमवार को जारी एक बयान के मुताबिक, घनवट ने कहा, ”मैं पॉलिसी बनाने वालों और किसानों को बताने के लिए उचित समय पर रिपोर्ट को सार्वजनिक करूंगा क्योंकि, पैनल को मिलीं अधिकांश प्रस्तुतियां कृषि कानूनों (अब निरस्त कानूनों) के समर्थन में थीं।” घनवट ने कहा कि मार्च 2021 में सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट पर न तो शीर्ष अदालत और न ही केंद्र ने कोई फैसला लिया है।
हालांकि, उन्होंने संकेत दिया कि रिपोर्ट उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद जारी की जा सकती है। समिति की रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। घनवट ने पहले भी सुप्रीम कोर्ट और सरकार से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना से आग्रह किया था कि कृषि कानूनों पर समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए, इस पर सार्वजनिक रूप से बहस हो।
जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में संसद द्वारा पारित विवादास्पद कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कानूनों का अध्ययन करने के लिए समिति नियुक्त की थी। कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, प्रमोद जोशी और भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान अन्य सदस्य थे। मान ने बाद में समिति से अपना नाम वापस ले लिया था।
इस रिपोर्ट का भविष्य अधर में है क्योंकि केंद्र सरकार ने पिछले साल नवबंर में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया था। एक साल से अधिक समय तक किसान दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों (अब निरस्त) के विरोध में प्रदर्शन करते रहे और इन कानूनों के निरस्त होने के कुछ दिनों बाद किसानों ने अपने आंदोलन को स्थगित करने का ऐलान किया था।
