सोनम लववंशी

यह सच है कि स्मार्ट फोन के आने से हमारी जिंदगी बहुत आसान हो गई है। दुनिया की हर खबर हमारी अंगुलियों के इशारे पर सामने आ जाती है, लेकिन इसका एक कड़वा सच यह भी है कि रोजाना दुनिया से जुड़े रहने के नाम पर हम अपनों से ही दूर हो रहे हैं। घर-परिवार में संवाद की कड़ियां कमजोर हो रही हैं। आभासी जुड़ाव के चक्कर में पारिवारिक रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं। एक कमरे में मौजूद होकर भी अपनों का दुख-दर्द बांटने का समय नहीं रहा है।

बावजूद इसके, इंटरनेट की बढ़ती उपयोगिता और इसके विस्तार को नकारा नहीं जा सकता। मगर वर्तमान दौर में देखा जाए तो युवा पीढ़ी को इंटरनेट का एक अलग ही नशा लग गया है। जिस उम्र में युवाओं को अपना भविष्य बनाना चाहिए, उस उम्र में ‘रील्स’ के मोह में फंसकर युवा न केवल अपना समय बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि बिन बुलाई मौत को भी दावत दे रहे हैं। आए दिन रोजाना न जाने कितने युवा ‘सेल्फी’ और ‘रील्स’ बनाने के चक्कर में अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। सोशल मीडिया पर सस्ती लोकप्रियता का नशा युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है।

वर्तमान दौर में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी ‘रील्स’ के दीवाने हैं। इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया मंचों पर ‘रील्स’ देखने में घंटों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक देश की आबादी के 61 फीसद से अधिक लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। यह आंकड़ा 2025 में बढ़कर 67 फीसद तक पहुंचने का अनुमान है। सोचने वाली बात यह है कि 2015 में जहां मात्र 19 फीसद लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय थे, यह आंकड़ा पिछले आठ वर्षों में तीन गुना बढ़ गया है।

सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल हर आदमी अपनी सहूलियत से कर रहा है। व्यावसायिक कंपनियां इसे अपने लिए लाभ का अवसर मान रही हैं, तो वहीं राजनीतिक दल अपने प्रचार के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। बहुत से लोगों ने इसे अपने रोजगार का जरिया बना लिया है, तो कुछ लोग इसका उपयोग ज्ञान बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। मगर अधिकतर युवा ‘रील्स’ देखने में अपना समय खर्च कर रहे हैं।

भारत सरकार ने जून 2020 में चीनी ऐप ‘टिकटाक’ को सुरक्षा कारणों के चलते देश में प्रतिबंधित कर दिया। मगर उसके एक महीने बाद ही मार्क जुकरबर्ग की ‘मेटा’ स्वामित्व वाले ‘इंस्टाग्राम’ ने टिकटाक से मिलता-जुलता मंच शुरू कर दिया, जिसके जरिए उपयोगकर्ता 30 सेकंड का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल और पैसे भी कमा सकते हैं। देखते ही देखते लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ने लगी।

कुछ ही समय में ‘इंस्टाग्राम रील्स’ बनाने वाले उपयोगकर्ताओं की बाढ़ आ गई। पिछले करीब चार वर्ष में इंस्टाग्राम देश के चौबीस करोड़ लोगों तक पहुंच गया है। यह देश की कुल आबादी का करीब सत्रह फीसद है। आज कई सुपरिचित युवा ‘रील्स’ बनाकर अच्छा-खासा पैसा कमा रहे हैं। मगर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि ‘रील्स’ बनाने के चक्कर में युवा अपनी जान तक जोखिम में डाल रहे हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक महिला को जब उसके पति ने ‘रील्स’ बनाने से रोका तो उसने पति की हत्या कर दी। सोचिए, ‘रील्स’ की दीवानगी किस कदर बढ़ गई है।

‘कलारी कैपिटल’ के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में आठ करोड़ पेशेवर ‘कंटेंट क्रिएटर’ सामग्री तैयार करने वाले हैं, जो ‘रील्स’ को अपना करियर और कमाई का जरिया बनाना चाहते हैं। मगर हकीकत में देखें, तो करीब डेढ़ लाख लोग ही ‘रील्स’ से कमाई कर पाते हैं। ‘आनलाइन कंटेंट क्रिएटर’ की कमाई का बड़ा हिस्सा उन लोगों को ही मिलता है, जिनके ‘फालोअर्स’ दस लाख से ज्यादा हैं।

‘रेडसीर स्टडी’ की रपट बताती है कि देश में स्मार्टफोन उपभोक्ता औसतन ढाई घंटे मनोरंजन के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें चालीस मिनट से ज्यादा समय ‘रील’ देखने में खर्च करते हैं। ‘रील्स’ की दीवानगी इस हद तक बढ़ गई है कि छोटे बच्चे भी इसके मोहजाल में फंस गए हैं और अपनी भूख प्यास, सुख-चैन सब कुर्बान कर दिया है। छोटे बच्चों की बाहरी गतिविधियां कम होने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

‘सोशल इनसाइडर’ के अनुसार ‘रील्स’ किसी अन्य सामग्री की तुलना में दोगुनी रफ्तार से लोगों तक पहुंचती है और रील्स की औसत पहुंच दर जहां 30.81 फीसद है, तो वहीं चित्र पोस्ट की दर 14.45 फीसद है। जबकि एक समय में ‘सेल्फी’ का नशा युवाओं के सिर चढ़ कर बोलता था। ‘डिमांड्सएज’ वेबसाइट के मुताबिक तीस फीसद इंस्टाग्राम उपयोगकर्ता के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन गया है, जबकि अमेरिका दूसरे स्थान पर है।

‘रील्स’ के कारण अनचाही मौतों के मामले भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। इनमें ज्यादातर स्कूल-कालेज जाने वाले युवा हैं। अपनी ‘रील्स’ को आकर्षक दिखाने के चक्कर में कई बार युवा चलती ट्रेन की चपेट में आ जाते हैं, तो कभी फांसी के फंदे पर झूल जाते हैं। ‘रील’ का वास्तविक जीवन से कुछ लेना-देना नहीं होता, लेकिन लत है कि छूटने का नाम नहीं लेती। तकनीक का बेजा इस्तेमाल इस कदर बढ़ गया है कि किसी भी बड़ी शख्सियत की फर्जी ‘रील्स’ बना कर अश्लीलता की सभी हदें पार की जा रही हैं।

इंस्टाग्राम कूड़े का वह ढेर बनता जा रहा है, जहां अश्लीलता और नग्नता का अंबार लग चुका है। चंद पैसों या लोकप्रियता के लिए निर्माता नग्नता पर उतारू हो जाते हैं, जिसका समाज पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। ये युवा अपने साथ-साथ दूसरे व्यक्तियों की भी जान जोखिम में डालने में कोई परहेज नहीं करते हैं।

वर्तमान दौर में सोशल मीडिया के सभी मंचों पर ‘रील्स’ बनाने का चलन जोरों पर है। राजस्थान के पाली में बीते दिनों एक युवक को माता-पिता ने ‘रील्स’ बनाने से रोका तो गुस्से में आकर उसने उनकी ही हत्या कर दी। समझना मुश्किल नहीं कि ‘रील्स’ का नशा इस कदर उस युवक के सिर चढ़ गया कि वह अपने मा-बाप की ही जान का प्यासा बन गया।

यह घटना हर माता-पिता के लिए यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इस समस्या को कैसे रोका जाए? यह कोई मर्ज तो है नहीं कि कोई दवा खिलाने से ठीक हो जाएगी। अभिभावकों को भी अब यह डर सताने लगा है कि उनके डांटने से कहीं उनका बच्चा कोई गलत कदम न उठा ले। यहां तक कि मनोचिकित्सक भी ‘सेल्फी’ और ‘रील’ से संबंधित घटनाओं से परेशान हैं, क्योंकि इसमें परामर्श की भी ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं। फिर भी वक्त का तकाजा यही है कि यह डिजिटल बीमारी, महामारी बन जाए, इससे पहले सामूहिक रूप से इससे निजात पाने का कोई रास्ता ढूंढ़ना होगा।