तमिलनाडु की राजनीति में गुरुवार को उस समय बड़ा घटनाक्रम हुआ, जब पीएमके के संस्थापक एस. रामदास ने गुरुवार को अपने बेटे अंबुमणि रामदास को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उन्होंने अंबुमणि पर “अभूतपूर्व पार्टी विरोधी गतिविधियों” का आरोप लगाया और उन्हें ‘खरपतवार’ कहा।

एस रामदास ने यह फैसला कई महीनों तक पर्दे के पीछे बातचीत, भावनात्मक अपीलों के बाद लिया। कहा जा रहा है कि बीजेपी नेताओं, आरएसएस पदाधिकारियों व वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के चांसलर तक की मध्यस्थता के बावजूद यह पारिवारिक विवाद सुलझ नहीं पाया।

अंबुमणि को बाहर करने का समय PMK की राजनीति पर असर डाल सकता है। हाल के सालों में कमजोर होने के बावजूद, पीएमके अब भी तमिलनाडु की कुछ गिनी-चुनी जाति आधारित पार्टियों में से है। इसके पास अच्छा वोट बैंक और संगठित कैडर है। पीएमके के जनाधार खासकर उत्तरी जिलों में वन्नियार समुदाय के बीच माना जाता है। अब पार्टी का आधिकारिक विभाजन होने से, तमिलनाडु में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के पास केवल एआईएडीएमके ही बड़ी जनाधार वाली सहयोगी पार्टी बची है।

तमिलनाडु: एनडीए में किनती पार्टियां बचीं?

अब एनडीए में बची हुई बाकी पार्टियां – तमिल माणिला कांग्रेस (जी.के. वासन के नेतृत्व में), इंडिया जननायगा कच्ची (एसआरएम ग्रुप द्वारा संचालित) और न्यू जस्टिस पार्टी (ए.सी. शन्मुगम की अगुवाई में) – ज़मीनी स्तर पर बहुत कम ताकत रखती हैं। इसी बीच कभी एनडीए का हिस्सा रही ‘पुथिया तमिझगम’ पार्टी अब अभिनेता विजय के राजनीतिक मोर्चे में शामिल हो गई है, जिससे गठबंधन और कमजोर हो गया है।

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भले ही बीजेपी यह दावा करती रही है कि वह 2026 के विधानसभा चुनावों में मजबूत मोर्चा बनाएगी, लेकिन पीएमके के टूटने से यह दावा कमजोर नजर आ रहा है। पीएमके का विभाजन एनडीए के ओबीसी वोटों को एकजुट करने की उम्मीदों को भी नुकसान पहुंंचाएगा, क्योंकि वन्नियार समुदाय राज्य का सबसे बड़ा ओबीसी समूह है।

अंबुमणि पर क्या हैं आरोप?

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, अंबुमणि पर लगाए गए आरोपों में बिना अनुमति राजनीतिक कदम उठाना, समानांतर पार्टी ढांचा खड़ा करने की कोशिश करना, पार्टी नेतृत्व की अवहेलना करना और सबसे गंभीर आरोप – रामदास सीनियर की कुर्सी पर जासूसी उपकरण लगवाना शामिल है। इस मामले की पुलिस जांच चल रही है।

रामदास ने गुरुवार को इसी बात का जिक्र करते हुए कहा, “मेरी जासूसी करने के लिए उपकरण तक लगाए गए… अब वह अपनी पार्टी शुरू कर ले। यह पार्टी मैंने बनाई है, और इसे हड़पने का हक किसी को नहीं है – यहां तक कि मेरे बेटे को भी नहीं।”

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स्पष्ट रूप से भावुक दिख रहे रामदास ने कहा कि यह फैसला अचानक नहीं लिया गया, बल्कि वह पिछले तीन साल से चेतावनी दे रहे थे। उन्होंने कहा, “मैंने अंबुमणि को पाला-पोसा, उस पर भरोसा किया और पार्टी में आगे बढ़ने के मौके दिए। लेकिन उसकी हरकतों ने गंभीर नुकसान पहुंचाया है… उसमें नेता बनने की योग्यता नहीं है। उसकी गतिविधियों से पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को दुख पहुंचा है।”

हालांकि गौर करने वाली बात यह है कि रामदास ने उन नेताओं को वापस लेने की पेशकश भी की जो अंबुमणि के साथ चले गए थे। उन्होंने कहा, “मेरे अपने राजनीतिक शिष्य, जिन्हें मैंने तैयार किया, उन्होंने उसके साथ मिलकर अलग गुट बनाने की कोशिश की। मुझे उन पर दुख है, लेकिन मैं उन्हें माफ करने के लिए तैयार हूं।” इसी दौरान रामदास ने पीएमके नेताओं को चेतावनी दी कि वे अंबुमणि से किसी भी तरह का संपर्क न रखें, वरना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

अंबुमणि समर्थक बालू ने रामदास के फैसले पर उठाए सवाल

सीनियर पीएमके नेता के. बालू (जिन्हें अंबुमणि का करीबी माना जाता है) ने रामदास की कार्रवाई पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि अंबुमणि का नेतृत्व चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त है और 2026 तक वैध रहेगा, इसलिए इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। बालू ने कहा, “सीनियर रामदास पिछले कई महीनों से अलग-अलग बयान दे रहे हैं, लेकिन उनका कोई असर नहीं है क्योंकि अंबुमणि को आधिकारिक रूप से पार्टी के नेता मान्यता मिली हुई है। भविष्य क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन मैं पूरे अधिकार के साथ साफ कर रहा हूं कि अंबुमणि अब भी पीएमके अध्यक्ष हैं।”

किस – किस ने की विवाद सुलझाने की कोशिश?

इस विवाद को सुलझाने की कोशिश करने वालों में पीएमके के सहयोगी बीजेपी और आरएसएस विचारक एस. गुरु मूर्ति भी शामिल थे। बाद में, अंबुमणि के ससुर के अनुरोध पर वीआईटी विश्वविद्यालय के चांसलर और परिवार के पुराने मित्र जी. विश्वनाथन भी मध्यस्थता के लिए आगे आए। एक समय ऐसा भी लगा कि सुलह होने वाली है। जुलाई के मध्य में एक पीएमके सूत्र ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “मुद्दा अहंकार या उत्तराधिकार का नहीं है। असली ध्यान परिवार और पार्टी को अपूरणीय नुकसान से बचाने पर है।”

ये बातचीत तब नाकाम हो गई, जब अंबुमणि ने अपने पिता के विरोध के बावजूद पदयात्रा शुरू कर दी। रामदास ने पुलिस से यात्रा रोकने की गुहार लगाई और इसे “कानून-व्यवस्था के लिए खतरा” बताया। इसके बाद तमिलनाडु पुलिस ने अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे अंबुमणि पार्टी के भीतर और भी अलग-थलग पड़ गए।

रामदास ने गुरुवार को कहा कि यह विभाजन पीएमके के लिए किसी झटके जैसा नहीं है। उन्होंने कहा, “खेती में हम खेत को घास-फूस की वजह से नहीं छोड़ते, बल्कि उन्हें उखाड़कर आगे बढ़ते हैं। यही यहां भी हुआ है।” अंबुमणि ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनका अगला कदम तमिलनाडु की वन्नियार राजनीति का भविष्य तय कर सकता है। वह नई पार्टी बनाएंगे या अपने निष्कासन को अदालत में चुनौती देंगे, यह अभी देखना बाकी है।

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