दिवाली में अब कुछ ही दिन बचे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि वह दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर लगे प्रतिबंध को हटा सकता है। ग्रीन क्रैकर्स के इस्तेमाल पर मंथन चल रहा है।
पिछले कई सालों से जैसे ही दिवाली का त्योहार करीब आता है, राजधानी में प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा बन जाता है। यह मामला हर साल सर्वोच्च अदालत तक पहुंचता है। सवाल साफ हवा के अधिकार का है। अदालत ने अपने स्तर पर कई बार हस्तक्षेप किया है, लेकिन पटाखों पर लगाए गए तमाम प्रतिबंधों का असर बहुत सीमित दिखाई दिया है।
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भी पटाखे फोड़े गए हैं और इसकी वजह से हवा की गुणवत्ता काफी खराब हुई है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने एक बयान में कहा था कि करोड़ों लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए सरकार चाहती है कि कोर्ट सर्टिफाइड ग्रीन क्रैकर्स के इस्तेमाल को मंजूरी दे दे।
2015 में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की मैन्युफैक्चरिंग और बिक्री पर रोक लगाई थी। केवल काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) द्वारा बनाए गए ग्रीन क्रैकर्स को मंजूरी दी गई थी। साथ ही पटाखे फोड़ने की समय सीमा भी तय की गई थी।
लेकिन इसके बाद से हर साल दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) दिवाली से कुछ महीने पहले ही नोटिफिकेशन जारी कर पटाखों पर प्रतिबंध लगा देती है। पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूरे साल के लिए पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया था। हालांकि अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केवल दिवाली के समय कुछ महीनों के प्रतिबंध से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, और ग्रीन क्रैकर्स पर राहत नहीं दी जा सकती क्योंकि अभी इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि उनका पर्यावरण पर कितना असर पड़ता है।
इस साल 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख में थोड़ा बदलाव देखने को मिला। एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि ग्रीन क्रैकर्स की मैन्युफैक्चरिंग इस शर्त पर की जा सकती है कि सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश तक दिल्ली-एनसीआर में उनकी बिक्री नहीं होगी।
एक सवाल यह भी उठता है कि ग्रीन क्रैकर्स की शुरुआत कहां से हुई थी और यह आइडिया कैसे आया। दरअसल, 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद CSIR को कहा गया था कि वह कम प्रदूषण करने वाले ग्रीन क्रैकर्स पर रिसर्च करे। बाद में इन ग्रीन क्रैकर्स की मान्यता पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव्स सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (PESO) ने दी थी।
जानकारों के मुताबिक, ग्रीन क्रैकर्स का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि जहरीले गैसों और पार्टिकुलेट मैटर को 30 से 40 प्रतिशत तक कम किया जा सके, और शोर का स्तर 120 डेसीबल से कम रखा जाए।
लेकिन दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) के सीनियर रिसर्चर डॉ. राजीव कुमार मिश्रा ने 2022 में IIT रुड़की के साथ एक स्टडी की थी, जिसमें पाया गया कि ग्रीन क्रैकर्स भी बड़ी मात्रा में अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स रिलीज करते हैं। यह पार्टिकल इंसानों के फेफड़ों में काफी अंदर तक जा सकते हैं। डॉ. राजीव के मुताबिक, ग्रीन क्रैकर्स पर और अधिक रिसर्च की जरूरत है।
रिसर्चर जहां ग्रीन क्रैकर्स पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं पिछले कुछ सालों में पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर एक दूसरी बहस भी छिड़ चुकी है। इसका राजनीतिकरण हो गया है। कुछ नेताओं ने पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध को हिंदू परंपरा से जोड़ दिया है। दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा पहले भी पटाखों पर प्रतिबंध को “इलॉजिकल” करार दे चुके हैं।
पटाखों पर लगाए जा रहे प्रतिबंध का असर कितना है, इसके कई उदाहरण मिलते हैं। इसी महीने की शुरुआत में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने द्वारका, रोहिणी, उत्तम नगर, शास्त्री नगर और मुकुंदपुर से 1645 किलो प्रतिबंधित पटाखे बरामद किए थे। छह लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था।
पिछले कुछ सालों के आंकड़े बताते हैं कि दिवाली के तुरंत बाद अगले दिन ही वायु गुणवत्ता (AQI) में भारी गिरावट आती है और प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के अनुसार, दिवाली के दिन AQI “वेरी पुअर” श्रेणी से नीचे शायद ही कभी गया हो।
दिवाली के बाद वायु प्रदूषण बढ़ने का सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों पर पड़ता है। उनके फेफड़े और दिमाग अभी विकसित हो रहे होते हैं, और उनका इम्यून सिस्टम भी कमजोर होता है। इसी कारण उनमें रेस्पिरेटरी इंफेक्शन का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।
2024 में The Lancet Planetary Health की एक स्टडी में पाया गया कि 2008 से 2019 के बीच भारत के 10 शहरों में लगभग 33,000 मौतें पीएम 2.5 प्रदूषण से जुड़ी थीं। इनमें दिल्ली सबसे ऊपर रही, जहां हर साल करीब 12,000 लोगों की मौत प्रदूषण के कारण होती है। पर्यावरणविद् भवरीन कंधारी पूछती हैं — “यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि जो पटाखे फोड़े जा रहे हैं, वे वास्तव में ग्रीन हैं भी या नहीं?”
जब भी पटाखों पर प्रतिबंध की बात आती है, तो एक सवाल उन लोगों की आजीविका से भी जुड़ता है जो इसी कारोबार पर निर्भर हैं। कुछ आंकड़ों के अनुसार, भारत की पटाखा इंडस्ट्री करीब 4800 करोड़ रुपये की है, जिसमें 9 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं।
फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (उत्तर भारत) के अध्यक्ष राजीव कुमार जैन कहते हैं — “पटाखों की मैन्युफैक्चरिंग और बिक्री पर रोक लगाने से एक पूरे समुदाय को बेरोजगार कर दिया गया है। हम तो कोर्ट के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने एनसीआर में पटाखों की मैन्युफैक्चरिंग को मंजूरी दी है।”
जानकारों का कहना है कि अगर पटाखा कारोबारियों को राहत मिल भी जाती है, तो भी लाइसेंस मिलने में कम से कम छह महीने लग सकते हैं। ऐसे में इस दिवाली तक वे कारोबारी पूरी तरह काम नहीं कर पाएंगे।
पटाखों पर प्रतिबंध इसलिए भी ज्यादा असरदार नहीं हो पाया है क्योंकि जनता का इसमें पर्याप्त सहयोग नहीं मिल पाया। दिवाली के समय राजधानी में रहने वाले लोग पहले से ही पटाखों का स्टॉक कर लेते हैं।
नजफगढ़ के निवासी राकेश बताते हैं कि वे बहादुरगढ़ और रोहतक से पटाखे लेकर आते हैं। उनका कहना है कि वे यह पटाखे अपने बच्चों के लिए लाते हैं। वहीं, सदर बाजार स्थित गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति बताती हैं — “बच्चे तो दशहरा से पहले ही पटाखे फोड़ना शुरू कर देते हैं। हम उन्हें स्कूल में रोक सकते हैं, लेकिन बाहर कैसे रोकें?”