भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को ट्वीट कर साउथ ब्लॉक के अपने पुराने दिनों को याद किया। विदेश मंत्री ने अपनी एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, आज से 43 साल पहले जब मैं पहली बार साउथ ब्लॉक में पहुंचा था। समय तेजी से निकलता गया, दुनिया बदल गई, इससे जुड़ाव मजबूत होता गया और यह सफर अभी जारी है।

मालूम हो कि नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद एस जयशंकर को अपने मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री के रूप में शामिल किया था। जयशंकर को चीन एवं अमेरिका मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। एस जयशंकर देश के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से एक  के. सुब्रमण्यम के बेटे हैं।

जयशंकर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत करने वाली भारतीय टीम के एक प्रमुख सदस्य रह चुके हैं। इस समझौते के संबंध में बातचीत की शुरुआत 2005 में हुई थी। साल 2007 में मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। यूपीए सरकार के दौरान जयशंकर संयुक्त सचिव (अमेरिका) भी रह चुके हैं।

जयशंकर अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत के पदों पर भी काम कर चुके हैं। 1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी जयशंकर लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं।

65 वर्षीय जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे हैं। माना जाता है कि सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी एस. जयशंकर से काफी प्रभावित हुए थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की थी।

मोदी ने न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया था। इस संबोधन के बाद मोदी को एक वैश्विक पहचान मिली थी। 1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी रहे जयशंकर लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।

वह सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातक जयशंकर ने राजनीति विज्ञान में मास्टर्स किया है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल और पीएचडी की डिग्री ली है।

2018 में सेवानिवृत्त होने तक उनके पास बतौर नौकरशाह तीन दशक का लंबा अनुभव था। उन्होंने अपनी पहचान एक कुशल वार्ताकार के रूप में बना ली थी