ईवीएम मशीनों को लेकर भारत में पिछले कुछ सालों से लगातार चर्चाएं होती रहती हैं। लेकिन रविवार को अचानक इसको लेकर बहस तेज हो गई जब माइक्रो ब्लॉगिंग साइट X के मालिक एलन मस्क ने पोस्ट कर कहा कि ईवीएम हैक हो सकती है। उसके बाद राहुल गांधी ने भी ईवीएम मशीनों को लेकर सवाल खड़े कर दिए। हालांकि चुनाव आयोग ने इसका जवाब दिया और कहा कि ऐसा कुछ नहीं हो सकता।
EVM क्या होता है?
ईवीएम के अंदर दो यूनिट (कंट्रोल और बैलट) होती है। एक यूनिट जिस पर मतदाता अपना बटन दबाकर वोट देते हैं और दूसरी यूनिट उस वोट को स्टोर करने के काम आती है। कंट्रोल यूनिट बूथ के मतदान अधिकारी के पास होती हैं जबकि दूसरी यूनिट से लोग वोट डालते हैं। ईवीएम के पहले यूनिट पर पार्टियों के चिन्ह और उम्मीदवारों के नाम होते हैं। उम्मीदवारों की फोटो भी होती है और एक नीली बटन होती है। इस बटन को दबाकर आप अपना वोट देते हैं। जब मतदान केंद्र पर आखिरी वोट पड़ जाता है तब पोलिंग अफसर कंट्रोल यूनिट पर लगे क्लोज बटन को दबा देता है। क्लोज बटन को दबाने के बाद ईवीएम पर कोई वोट नहीं डाला जा सकता। वहीं रिजल्ट के लिए कंट्रोल यूनिट पर रिजल्ट बटन दबाना होता है और वोटों की गिनती सामने आ जाती है।
ईवीएम के अंदर क्या होता है?
ईवीएम के अंदर एक माइक्रोप्रोसेसर होता है और इसे सिर्फ एक ही बार प्रोग्राम किया जा सकता है। यानी इसके प्रोग्राम में जो एक बार लिखा जा चुका होता है, उसमें बदलाव नहीं कर सकते। इसमें कोई दूसरा सॉफ्टवेयर नहीं डाला जा सकता। ईवीएम के इस्तेमाल के लिए इलेक्ट्रिक की आवश्यकता नहीं है। ईवीएम के साथ अल्कलाइन पावर पैक बैटरी आती है, जिसकी सप्लाई भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड करती है।
कौन सी कंपनियां बनाती हैं EVM?
ईवीएम का निर्माण दो कंपनियां करती हैं। इसे इलेक्शन कमीशन, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस (बेंगलुरु) और इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद मिलकर तैयार करते हैं।
एक ईवीएम में कितने वोट पड़ सकते?
ईवीएम के पुराने मॉडल में 3840 वोट डाले जा सकते थे। लेकिन इसके नए मॉडल में केवल 2000 वोट ही स्टोर होते हैं। ईवीएम का डाटा 10 साल से अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। एक ईवीएम यूनिट को तैयार करने में करीब 8700 रुपये का खर्च आता है।