जयप्रकाश त्रिपाठी

हमारे देश में मानव अपशिष्ट की सफाई एक गंभीर समस्या है। वर्ष 2013 में एक कानून के जरिए हाथ से मैला उठाने को प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन वह आज भी बदस्तूर जारी है। इस कानून का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दो साल की सजा का प्रावधान है। कानूनी निर्देश हैं कि कोई भी व्यक्ति, प्राधिकरण या एजंसी ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन और शुष्क शौचालय निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993’ के तहत ऐसा काम नहीं करा सकती है।

फिर भी हजारों लोग सफाई के लिए आज भी सीवर, सेप्टिक टैंक में उतरने को विवश होते हैं। कानूनी निर्देशों के बावजूद सफाई एजंसियां ऐसे कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण तक देने से प्राय: बचती हैं। सफाई के लिए मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद कर्मियों को टैंकों में उतार दिया जाता है। हैरानी है कि सीवर सफाई करने वालों का कोई विश्वसनीय आंकड़ा तक उपलब्ध नहीं है।

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, विश्व में 7.8 अरब लोगों का अपशिष्ट मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है। अपशिष्ट जल हर साल तटीय जल में लगभग 62 लाख टन नाइट्रोजन और दवा अपशिष्ट से लेकर माइक्रोप्लास्टिक्स तक अज्ञात मात्रा में अन्य प्रदूषक भी शामिल करता है। इसका जलवायु परिवर्तन पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा हालात ये हैं कि पूरे विश्व में लगभग दस में से छह लोगों की उचित स्वच्छता तक पहुंच नहीं है। ऐसी सेवाओं के बिना, लोग हानिकारक बैक्टीरिया और बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

विचित्र है कि हमारे देश में उपग्रह प्रक्षेपण की तकनीक है, लेकिन जमीन में सिर्फ बीस फुट गहरे सेप्टिक टैंकों और सीवरों को साफ करने की कोई आधुनिक तकनीक अमल में लाने की जरूरत महसूस नहीं की जा रही है। उल्लेखनीय है कि हैदराबाद महानगर जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड की जेटिंग मशीनों, बंदीकूट की लांचिंग, तिरुवनंतपुरम के इंजीनियरों द्वारा निर्मित रोबोटिक मशीनों, हैदराबाद के वैज्ञानिकों के सीवर क्राक आदि को अब तक किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिल सका है।

राज्यसभा में सीवर सफाई के दौरान सफाई कर्मियों की मौत के संदर्भ में समाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के राज्यमंत्री ने 5 अप्रैल, 2023 को एक लिखित जवाब में बताया था कि बीते पांच वर्षों में सीवर साफ करते हुए 308 कर्मचारियों की जान चली गई। ऐसी सर्वाधिक मौत तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में हुई हैं।

हाथ से मैला उठाने की प्रथा कानूनन खत्म हो चुकी है, लेकिन लिखित जवाब में बताया गया कि 2013 और 2018 के दो सर्वेक्षणों के मुताबिक 58,098 लोग आज भी इस अमानवीय पेशे में इस्तेमाल हो रहे हैं। सवाल है कि ऐसे में प्रतिषेध पुनर्वास अधिनियम 2013 की भला सार्थकता क्या रह जाती है? सफाई कार्यों के मशीनीकरण के सवाल पर हर कोई मौन हो जाता है।

पिछले पांच वर्षों में जिन 308 लोगों की सीवर में मौत का खुलासा किया गया, उनमें से सिर्फ 240 को पूरा मुआवजा मिला है। मौत के लिए जिम्मेदार जिन आरोपियों के खिलाफ 205 एफआइआर दर्ज हुई थीं, उनमें से किसी एक को भी आज तक सजा नहीं हुई है। अक्तूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश जारी करते हुए कहा था कि सीवर की सफाई के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को तीस लाख रुपए और स्थायी विकलांगता के शिकार व्यक्तियों को न्यूनतम बीस लाख रुपए मुआवजा देना होगा। अगर कोई सफाईकर्मी किसी अन्य तरह की विकलांगता से पीड़ित होता है तो उसे दस लाख रुपए का मुआवजा देना पड़ेगा। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के मुताबिक, वर्ष 1993 से 31 मार्च 2023 के बीच ऐसे 1,081 मृतक आश्रितों में से सिर्फ 925 को मुआवजे मिले हैं।

देश भर में नियमित और ठेके के आधार पर कुल कितने सफाईकर्मी काम कर रहे हैं, इसकी भी जानकारी राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के पास नहीं है। सीवर सफाई कर्मचारी संघ के अध्यक्ष बताते हैं, सीवर कर्मचारियों की स्थिति बहुत खराब है। उनकी तनख्वाह से लेकर सुविधाओं तक में कटौती हो जाती है। अगर किसी विषम परिस्थति में सीवर के अंदर किसी को उतरना पड़े तो इसके लिए सताईस तरह के नियमों का पालन करना होता है।

इन नियमों का खुला उल्लंघन किया जाता है। कागजों में तो बताया जाता है कि सफाईकर्मी को आक्सीजन सिलेंडर, मास्क, विशेष सूट और न जाने क्या क्या दिया जाएगा, लेकिन असल में उसे कुछ नहीं दिया जाता है। ऐसे कर्मचारियों को सांस और चर्म रोग जैसी बीमारियां हो जाती हैं। दावे तो यहां तक हैं कि देश में रोजाना ‘मैनहोल’ में दो-तीन कर्मियों की मौत हो जाती है।

समय रहते भविष्य की उन मुश्किलों के समाधान के लिए आज भारत के शहरों को नए सिरे से डिजाइन करने की जरूरत है, ताकि टिकाऊ जल और अपशिष्ट जल प्रबंधन हो सके। अपशिष्ट जल प्रदूषण से निपटने के लिए विकेंद्रीकृत प्रणालियां आवश्यक हैं। पारंपरिक प्रणालियों, यानी अपशिष्ट जल उपचार के साथ समस्या यह है कि वे आमतौर पर बहुत महंगी, अत्यधिक केंद्रीकृत और बदलते शहरी विकास परिपाटी से निपटने में असमर्थ साबित हो रही हैं। योजनाकारों, विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों की पुनर्कल्पना के लिए इस दिशा में प्रकृति-आधारित समाधान कहीं अधिक सुलभ और किफायती विकल्प हो सकता है।

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए संशोधित पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, निरंतर प्रबंधन और पुनर्स्थापित करने की कार्रवाइयों के रूप में पहले ही परिभाषित किया जा चुका है। चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने और जैव विविधता से लाभान्वित होने के लिए हरित बुनियादी ढांचा, निर्मित आर्द्रभूमियों, पड़ोस के हरे स्थानों, वर्षा उद्यानों, छत के बगीचों आदि के माध्यम से शहरी नियोजन और डिजाइन में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। साथ ही, बारिश के कुंडों के साथ-साथ तूफानी जल प्रवाह को अवशोषित करने, संग्रहीत करने और पुन: उपयोग करने के लिए पारगम्य फुटपाथ भी नए प्रयोगों में शामिल हो सकते हैं।

ये विकेंद्रीकृत प्रकृति-आधारित समाधान अपशिष्ट जल प्रदूषण को काफी कम कर सकते हैं। एक अनुमान है कि पचासी फीसद अपशिष्ट जल अनुपचारित समुद्र में बह जाता है। ऐसे में इस दिशा में प्रशिक्षण और जागरूकता बढ़ाना, योजना और डिजाइन में सुधार करना, वैज्ञानिक विश्लेषण और निगरानी में अधिक संसाधनों का निवेश करना, कानूनी और नियामक कार्यों को बढ़ाना और जल स्वास्थ्य के लिए समर्पित वित्त पोषण विकसित करना आवश्यक होगा।

योजनाकारों और विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण की समस्या से वास्तव में स्थायी रूप से निपटने का केवल एक ही तरीका है, सारे कचरे का पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग करना और इसे एक मूल्यवान संसाधन में बदलना। मसलन, नाइट्रोजन और फास्फोरस मानव अपशिष्ट में निहित प्रमुख तत्त्व हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित मानव मल की मात्रा, जो अब अक्सर जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रदूषित कर रही है, सिंथेटिक उर्वरकों के रूप में कृषि भूमि को उर्वर बनाने के लिए वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले पच्चीस फीसद नाइट्रोजन और पर्याप्त पानी के साथ पंद्रह फीसद फास्फोरस को प्रतिस्थापित कर सकती है।

अमेरिका में एक स्टार्टअप ने न केवल नाइट्रोजन और फास्फोरस को हटाने, बल्कि अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग लायक बनाने के लिए एक प्रणाली विकसित की है। उसके माध्यम से अब नाइट्रोजन और फास्फोरस को पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल रखा जा सकता है। हालांकि यह प्रणाली सभी नाइट्रोजन और फास्फोरस को हटा नहीं सकती, लेकिन इसे निम्न स्तर तक कम कर सकती है।