विभाजन के बाद बहुत सारे लोग अपनी जमीन-जायदाद छोड़ कर पाकिस्तान चले गए थे। उन्हें शत्रु संपत्ति कहा गया। मगर सरकार ने उनके मालिकाना हक तय करने के लिए कोई व्यावहारिक कानून नहीं बनाया, जिसका लाभ उठा कर बहुत सारे लोगों ने फर्जी दावे पेश कर उन पर कब्जा जमा लिया। भूमाफिया ने बहुत सारी शत्रु संपत्ति पर अवैध रूप से इमारतें खड़ी कर लीं। अब सरकार ने देश भर में फैली ऐेसी जमीन-जायदाद को चिह्नित कर कब्जे में लेने की पहल शुरू की है। बता रहे हैं अंशुमान शुक्ल।
देश में इस वक्त करीब एक लाख करोड़ रुपए की शत्रु संपत्तियां ऐसी हैं, जिनका कोई लेनदार नहीं है। इनमें सर्वाधिक 5936 शत्रु संपत्तियां उत्तर प्रदेश में हैं। अगर केवल राजधानी लखनऊ की बात करें, तो वहां के संभ्रांत इलाके हजरतगंज में हजारों करोड़ रुपए की विवादित संपत्तियां हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जनवरी 2020 में केंद्रीय गृहमंत्री के नेतृत्व में गठित मंत्रिसमूह को देश की करीब 9400 संपत्तियों का निपटारा करना था। मगर कोरोना की वजह से इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी है।
विभाजन के वक्त लाखों लोग भारत छोड़ कर पाकिस्तान चले गए। उन्होंने अपना घर-बार सब छोड़ दिया। ऐसे लोगों की हवेलियां और जमीन-ज्यादाद अभी तक वैसी ही पड़ी हैं। इनमें से अधिकांश पर कब्जा हो चुका है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत सरकार ने ‘एनिमी प्रापटी एक्ट 1968’ पारित कर भारत छोड़ कर गए नवाबों, जागीरदारों और अन्य लोगों की जमीनें, लाकर्स, सेफ, डिपाजिट, कंपनियों में शेयर आदि को अपने कब्जे में लेकर कस्टोडियन नियुक्त कर दिया। तबसे ये कस्टोडियन इन सभी इमारतों की देखरेख कर रहे हैं। जनवरी 2020 में लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार भारत में कुल 12,426 संपत्तियां इस कानून के तहत थीं, जिनकी कीमत एक लाख करोड़ रुपए आंकी गई थी।
संपत्तियों का मालिकाना हक
कुछ साल पहले शत्रु संपत्ति अध्यादेश 2016 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। उसके बाद से करीब 2050 संपत्तियों का मालिकाना हक भारत सरकार के पास आ गया है। इन पर काबिज लोग न तो इसे बेच पाएंगे न ही किसी को दे पाएंगे। संशोधित अध्यादेश के तहत मालिकाना हक 1968 से माना जाएगा, जब यह कानून बना था।
देश में शत्रु संपत्ति का सबसे ज्यादा हिस्सा उत्तर प्रदेश में सीतापुर के राजा महमूदाबाद का था। इनके पिता मोहम्मद आमिर अहमद खान 1947 में भारत छोड़ कर इराक चले गए थे। बाद में उन्होंने 1957 में पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी। उनकी संपत्तियों में लखनऊ के हजरतगंज में बटलर पैलेस, महमूदाबाद हवेली, लारी बिल्डिंग और कोर्ट आदि शामिल हैं। यह संपत्ति करीब दो लाख वर्ग फुट में फैली है। नए अध्यादेश के बाद राजा महमूदाबाद की लखनऊ, सीतापुर और नैनीताल स्थित करोड़ों की संपत्ति पर एक बार फिर मालिकाना हक कस्टोडियन का हो गया। इसके बाद महमूदाबाद के वर्तमान राजा मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान ने अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी। ये भारत छोड़ कर नहीं गए थे। लंबी लड़ाई के बाद उनके वंशज सुप्रीम कोर्ट से जीत गए। हालांकि, अभी तक उन्हें किसी भी संपत्ति का कब्जा नहीं मिला है।
लखनऊ में बटलर पैलेस, जहां राज्य संपत्ति विभाग ने कालोनी बना दी है। इस क्षेत्र में एक पैलेस और विशालकाय झील है। महमूदाबाद हाउस और हजरतगंज में कई दुकानें। सीतापुर में जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और मुख्य विकास अधिकारी आवास उनकी संपत्ति पर हैं। ऐसी संपत्तियों की कुल संख्या 936 है, जिसकी कीमत तकरीबन पचास हजार करोड़ आंकी जा रही है।
उदासीन रवैया
उत्तर प्रदेश में शत्रु संपत्तियों को लेकर शुरू से प्रदेश सरकारों का रवैया उदासीन रहा है। हजारों करोड़ रुपए की ऐसी संपत्तियां जिनसे प्रदेश सरकार को अरबों रुपए का राजस्व मिल सकता था, पर वह हाथ पर हाथ धरी बैठी हैं। सरकार की इसी उदासीनता का नतीजा है कि ऐसी संपत्तियों पर अवैध कब्जेदार काबिज हैं और सरकार इन्हें मुक्त कराने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है। प्रदेश के बाईस जिलों में शत्रु संपत्ति को लेकर कई विवाद चल रहे हैं।
इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपदों में हालत अधिक खराब है। यहां करीब पांच सौ करोड़ की संपत्ति कहां गई, इसकी किसी को न फिक्र है और न परवाह। बहुत तेजी से गायब होती शत्रु संपत्ति के संरक्षण को लेकर अब केंद्र और प्रदेश ने सभी जिलों से रिपोर्ट तलब की है। उत्तर प्रदेश के बाईस जिलों में शत्रु संपत्तियों में हुई भारी गड़बड़ी को देखते हुए केंद्र सरकार ने ऐसी शत्रु संपत्तियों की वर्तमान स्थिति के संबंध में समीक्षा की। साथ ही संपत्तियों की पहचान, वेस्टिंग नियंत्रण, संरक्षण, प्रबंधन और चल रहे विवादों के निस्तारण को लेकर निर्देश जारी किए हैं। मेरठ में छत्तीस शत्रु संपत्तियां सरकारी रिकार्ड में दर्ज हैं। इसमें पांच संपत्तियों का वैधानिक तरीके से निस्तारण हो चुका है। इकतीस संपत्तियों पर अब भी कब्जा है। मेरठ के बाद गाजियाबाद, सहारनपुर, बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, मुरादाबाद, अमरोहा शत्रु संपत्ति के मामले में सबसे आगे हैं।
नई पहल
संसद ने शत्रु संपत्ति कानून संशोधन विधेयक 2017 को मंजूरी दी। जिसमें युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन पलायन कर गए लोगों ने जो संपत्तियां छोड़ीं, उन पर उत्तराधिकार के दावों को रोकने के प्रावधान किए गए हैं। यह विधेयक इस संबंध में सरकार द्वारा जारी किए गए अध्यादेश का स्थान लेगा। निचले सदन ने इस बारे में आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन द्वारा रखे गए शत्रु संपत्ति संशोधन और विधिमान्यकरण पांचवां अध्यादेश 2016 का निरनुमोदन करने वाले संकल्प को अस्वीकार कर दिया। इस बारे में हुई चर्चा का जवाब देते हुए तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि किसी सरकार को अपने शत्रु राष्ट्र या उसके नागरिकों को संपत्ति रखने या व्यावसायिक हितों के लिए उपयोग की मंजूरी नहीं देनी चाहिए। शत्रु संपत्ति का अधिकार सरकार के पास होना चाहिए, न कि शत्रु देशों के नागरिकों के उत्तराधिकारियों के पास।
उन्होंने तब कहा था कि जब किसी देश के साथ युद्ध होता है तो उसे शत्रु माना जाता है। शत्रु संपत्ति संशोधन एवं विधिमान्यकरण विधेयक 2017 को 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए। उपरोक्त युद्धों की पृष्ठभूमि में अपनी पुश्तैनी संपत्ति को छोड़ कर शत्रु देश में चले जाने वाले पाकिस्तानी और चीनी नागरिकों के संबंध में लाए गए इस विधेयक के संबंध में राजनाथ सिंह ने कहा कि इस विधेयक को पारित कराना इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसा नहीं होने से लाखों करोड़ों रुपए की संपत्ति का नुकसान होगा।
इस विधेयक में कुछ शब्दों को प्रतिस्थापित किया गया है, जिसमें सड़सठवें के स्थान पर अड़सठवें, 2016 के स्थान पर 2017 तथा किसी विधि के स्थान पर किन्हीं विधियों आदि को प्रतिस्थापित किया गया है। विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि शत्रु संपत्ति संशोधन और विधिमान्यकरण अधिनियम 2017 द्वारा यथासंशोधित इस अधिनियम के तहत किसी संपत्ति के संबंध में या इस बाबत केंद्र सरकार या अभिरक्षक द्वारा की गई किसी कार्रवाई के संबंध में किसी वाद या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार नहीं होगा।
विधेयक के प्रावधानों के अनुसार शत्रु संपत्ति के मालिक का कोई उत्तराधिकारी भी अगर भारत लौटता है, तो उसका इस संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा। एक बार कस्टोडियन के अधिकार में जाने के बाद शत्रु संपत्ति पर उत्तराधिकारी का कोई अधिकार नहीं होगा।
तुष्टीकरण की राजनीति
भारत सरकार ने 1968 तक इवैक्यू संपत्तियों के विषय में कोई ठोस कानून ही नहीं बनाया था। अगर राजा महमूदाबाद की संपत्तियों का चर्चित विवाद सामने न आया होता, तो आज भी इस संबंध में कोई कानून नहीं होता। भारत विभाजन में मुख्य भूमिका निभाने वाले लखनऊ के तत्कालीन ताल्लुकेदार राजा महमूदाबाद आमिर मुहम्मद खान भारत विभाजन के बाद 1957 में पाकिस्तान चले गए। इनका 1973 में लंदन में निधन हुआ। आमिर मुहम्मद के कथित रूप से भारत में अपनी मां के साथ रहे पुत्र आमिर मुहम्मद इस काल में कैंब्रिज में अध्ययन कर रहे थे।
इन्होंने भारत लौटने के बाद पिता की संपत्तियों पर अपनी दावेदारी की। इस दावेदारी के बाद लचर इवैक्यू और शत्रु संपत्ति अधिनियम के चलते जब सिविल कोर्ट ने इन्हें इन संपत्तियों का उत्तराधिकारी स्वीकार किया, तो भारत सरकार नींद से जागी। पर इसके बाद भी 1981 की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने किसी सबल कानून का निर्माण करने के स्थान पर इनसे इनकी जब्त संपत्ति का पच्चीस प्रतिशत भाग लौटा देने की शर्त पर समझौते का प्रयास किया। यह समझौता परवान नहीं चढ़ा। अफसोस इस बात का है कि शत्रु संपत्ति को जब्त करने के लिए बनाए गए इन लचर कानूनों के चलते न्यायालय ने भी इन्हें इन संपत्तियों का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
आज भी उत्तर प्रदेश में शत्रु संपत्तियों का पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं। अब तक सरकारों ने जो भी इस दिशा में कार्रवाई की है वह महज कागजी खानापूरी के अलावा कुछ नहीं। अधिकांश शत्रु संपत्तियों पर दशकों से लोग काबिज हैं। न कोई जांचने वाला है और न ही कोई पूछने वाला। न जाने कितनी ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें भू माफिया गटक गए।