प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। एम्स रायपुर के पीआरओ लक्ष्मीकांत चौधरी ने उनेके निधन की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि शुक्ल का निधन शाम 4:58 बजे हुआ। मृत्यु का कारण कई अंगों में संक्रमण की वजह से काम न करना था। उन्हें 2 दिसंबर को भर्ती कराया गया था।

पीएम मोदी ने जताया दुख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने लिखा- “ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।”

बेटे शाश्वत शुक्ल ने दी जानकारी

विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत शुक्ल ने भी अपने पिता के निधन के बारे में जानकारी दी है। शाश्वत ने बताया है कि सांस लेने में समस्या होने के कारण 2 दिसंबर को विनोद कुमार शुक्ल को रायपुर एम्स में भर्ती कराया गया था। यहां मंगलवार को शाम 4.48 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। बता दें विनोद कुमार शुक्ल के परिवार में उनकी पत्नी, बेटा शाश्वत और एक बेटी है।

शाश्वत शुक्ल की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, विनोद कुमार शुक्ल के पार्थिव शरीर को पहले उनके निवास स्थान पर ले जाया जाएगा। इसके बाद जल्द ही उनके अंतिम संस्कार के बारे में जानकारी साझा की जाएगी। बीते अक्तूबर महीने में विनोद कुमार शुक्ल को रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब उनकी तबीयत में सुधार हुई तो उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। तब से उनका इलाज घर पर ही हो रहा था। बीते दो दिसंबर को विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत फिर से बिगड़ गई जिसके बाद उन्हें रायपुर एम्स ले जाया गया। यहीं उनका इलाज किया जा रहा था।

शुक्ल को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से किया गया था सम्मानित

इस वर्ष की शुरुआत में शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले लेखकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है।

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प्रसिद्ध हिंदी लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल छत्तीसगढ़ से यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बने। उनकी रचनाएं सरल, भावनात्मक और अलग तरह की शैली के लिए जानी जाती हैं। वे आधुनिक हिंदी साहित्य में नए प्रयोग करने वाले लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताओं की पहली किताब ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में आई थी। उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज़’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। उनकी कविताएँ और कहानियाँ साधारण लोगों के रोज़मर्रा के जीवन को आसान भाषा में दिखाती हैं।

शुक्ल ने उस समय कहा था कि मैंने जीवन में बहुत कुछ देखा है, बहुत कुछ सुना है और बहुत कुछ महसूस किया है, लेकिन मैं बहुत कम लिख पाया हूं। जब मैं सोचता हूं कि मुझे कितना कुछ लिखना बाकी था… तो ऐसा लगता है कि बहुत कुछ अभी बाकी है। जब तक मैं जीवित हूं, मैं अपनी बची हुई रचनाएं पूरी करना चाहता हूं, लेकिन शायद मैं अपना काम पूरा न कर पाऊं… इसी वजह से मैं एक बड़ी दुविधा में हूं। मैं लेखन के माध्यम से अपना जीवन जीना चाहता हूं, लेकिन मेरा जीवन तेजी से अपने अंत की ओर बढ़ रहा है, और मुझे नहीं पता कि इतनी जल्दी कैसे लिखूं, इसलिए मुझे थोड़ा अफसोस हो रहा है। उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “मैं यह नहीं कह सकता कि (पुरस्कार) मीठा है क्योंकि मैं मधुमेह रोगी हूं।”

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