Electoral Bonds Data: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गुरुवार को इलेक्शन कमीशन ने इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी बेवसाइट पर सार्वजनिक कर दिया। आयोग ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बॉन्ड खरीदने वाले और खरीद गए इन बॉन्ड को कैश कराने वाली राजनीतिक और अन्य तमाम कंपनियों के नाम अपनी बेवसाइट पर अपलोड कर दिए। अब इनको लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
साल 2019 से 2024 के बीच राजनीतिक दलों को चंदा देने वाली शीर्ष पांच कंपनियों में से तीन ने चुनावी बॉन्ड उस वक्त खरीदे जब उनके ईडी और इनकम टैक्स की जांच चल रही थी। इनमें लॉटरी कंपनी फ्यूचर गेमिंग,इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म मेघा इंजीनियरिंग और खनन की दिग्गज कंपनी वेदांता शामिल हैं।
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत के खनन और इस्पात समूह के दिग्गजों मे – वेदांता लिमिटेड, रूंगटा संस प्राइवेट लिमिटेड, जिंदल स्टील एंड पावर (जेएसपीएल), एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (ईएमआईएल) और डेम्पो ने मिलकर 825 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे।
इन कंपनियों में रूंगटा संस प्राइवेट लिमिटेड ने 100 करोड़ रुपये, वेदांता लिमिटेड ने 376 करोड़ रुपये, ईएमआईएल ने 224.5 करोड़ रुपये, जेएसपीएल ने 123 करोड़ रुपये और डेम्पो ने 1.5 करोड़ रुपये खर्च किए।
वेदांता लिमिटेड द्वारा दान किए गए 376 करोड़ रुपये में से 98 करोड़ रुपये के बांड की एक किश्त जनवरी 2022 में खरीदी गई थी। यह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनावों से ठीक पहले था। समूह की सेसा गोवा कंपनी देश की सबसे बड़ी लौह अयस्क खनन कंपनियों में से एक है और इसके ओडिशा में भी महत्वपूर्ण खनन हित हैं। वेदांता की रुचि लौह अयस्क, तेल और गैस, तांबा, एल्युमीनियम और स्टील में है।
जेएसपीएल के खनन, बिजली और इस्पात हित बड़े पैमाने पर छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में केंद्रित हैं। कंपनी ने अपना पूरा चंदा अक्टूबर 2022 और नवंबर 2023 के बीच दिया। आदित्य बिड़ला समूह की ईएमआईएल को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में बंदर डायमंड परियोजना के लिए वैधानिक मंजूरी मिलनी बाकी है। 2019 और 2022 के बीच ईएमआईएल ने 224.5 करोड़ रुपये के चुनावी बांड खरीदे। जिसमें 2019 में 50 करोड़ रुपये, 2020 में 20 करोड़ रुपये, 2021 में 104.5 करोड़ रुपये, 2022 में 50 करोड़ रुपये।
देश की सबसे बड़ी निजी कोयला खनिजों में से एक ईएमआईएल ने 2019 में छिंदवाड़ा जिले में बंदर डायमंड परियोजना के लिए खनन पट्टा हासिल किया। मजबूत स्थानीय विरोध के कारण यह परियोजना शुरू होने में विफल रही है।
2020 में पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण मंजूरी के लिए परियोजना के आवेदन को वापस कर दिया और पन्ना बाघ अभयारण्य के पास खदानों की निकटता के कारण ईएमआईएल को पहले वन और वन्यजीव मंजूरी सुरक्षित करने के लिए कहा गया। इसके बाद, पर्यावरण मंत्रालय ने वन मंजूरी के लिए ईएमआईएल के प्रस्ताव के खिलाफ कई सवाल उठाए जो लंबित है।
ऐसा एक और उदाहरण एमएसपीएल लिमिटेड है, जो नोएडा स्थित बाल्डोटा समूह की प्रमुख कंपनी है, जिसकी “लौह अयस्क खनन में विभिन्न रुचियां और निवेश हैं”, जिसने अप्रैल 2019 में 1 करोड़ रुपये और अप्रैल 2023 में 3 करोड़ रुपये के बांड खरीदे। जनवरी 2022 में, एमएसपीएल ने कर्नाटक के बेल्लारी जिले में 26.44 हेक्टेयर से अधिक के 5 एमटीपीए लौह अयस्क प्रसंस्करण संयंत्र और 3 एमटीपीए पेलेट प्लांट के लिए नवंबर 2021 में प्राप्त टीओआर (संदर्भ की शर्तों) में कुछ बदलाव की मांग की।
मांगे गए बदलावों में लगभग दोगुनी उत्पादन क्षमता, धूल उत्सर्जन मानदंडों में छूट, भूजल के उपयोग की अस्थायी अनुमति, प्रस्तावित संयंत्र और तुंगभद्रा नदी के बीच की दूरी को 200 मीटर से 22.6 किमी तक तर्कसंगत बनाकर हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन की आवश्यकता को कम करना आदि शामिल हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने फरवरी 2022 में निकासी शर्तों में संशोधन किया गया।
स्पेक्ट्रम के निचले सिरे पर नोएडा स्थित एक अन्य कंपनी जीएचसीएल लिमिटेड है, जिसने 2019 में 50 लाख रुपये के बांड खरीदे। सितंबर 2017 में जीएचसीएल ने गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में अपनी सोडा ऐश फैक्ट्री और कैप्टिव पावर प्लांट के आधुनिकीकरण के लिए पर्यावरण मंजूरी मांगी थी। पर्यावरण मंत्रालय ने नवंबर 2019 में इस टिप्पणी के साथ प्रस्ताव छोड़ दिया कि कंपनी ने मंत्रालय के सवालों का जवाब नहीं दिया।
