Assembly Elections Result: चुनाव के दौरान ‘NOTA’ शब्द आप लोगों ने कई बार सुना होगा। लेकिन नोटा क्या है और इसका इस्तेमाल कब और क्यों करते हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी हर वो बात जो आपको जानना जरूरी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में रविवार को वोटों की गिनती से पता चला कि हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में एक प्रतिशत से भी कम मतदाताओं ने नोटा (NOTA) का इस्तेमाल किया। इस बात की जानकारी चुनाव आयोग ने दी।

अभी हाल ही में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में वोटों की गिनती रविवार को हुई, जबकि मिजोरम में वोटों की गिनती सोमवार को होगी।

मध्य प्रदेश में कुल 77.15 प्रतिशत मतदान में से 0.99 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में 76.3 फीसदी मतदान हुआ। यहां 1.29 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया।

तेलंगाना में 0.74 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। दक्षिण राज्य में 71.14 प्रतिशत मतदान हुआ। इसी तरह राजस्थान में 0.96 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यहां 74.62 फीसदी मतदान हुआ था।

नोटा विकल्प पर पीटीआई से बात करते हुए एक्सिस माई इंडिया के प्रदीप गुप्ता ने कहा कि नोटा का इस्तेमाल .01 फीसदी से लेकर अधिकतम दो फीसदी तक हुआ है। उन्होंने कहा कि यदि कुछ भी नया पेश किया जाता है, तो उसकी प्रभावशीलता उसके परिणाम या प्रदर्शन पर निर्भर करती है।
उन्होंने कहा, ”मैंने सरकार को लिखा था कि अगर नोटा को सही मायनों में प्रभावी बनाना है तो अगर सबसे ज्यादा लोग इस विकल्प का इस्तेमाल करते हैं तो नोटा को विजेता घोषित किया जाना चाहिए।”

गुप्ता भारत में अपनाए जाने वाले ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ सिद्धांत का जिक्र कर रहे थे, जहां सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों को जनता ने खारिज कर दिया है, उन्हें ऐसी स्थिति में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां नोटा दूसरों पर हावी हो।

2013 में पहली बार हुआ नोटा का प्रयोग-

2013 में पेश किए गए, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर नोटा विकल्प का अपना प्रतीक है। एक मतपत्र जिसके पार एक काला क्रॉस है। सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, चुनाव आयोग ने वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम पर नोटा बटन जोड़ा।

शीर्ष अदालत के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं थे, उनके पास फॉर्म 49-ओ भरने का विकल्प था, लेकिन चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता से समझौता हो गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया था कि यदि अधिकांश मतदाता मतदान के दौरान नोटा विकल्प का प्रयोग करते हैं तो नए सिरे से चुनाव कराएं।

क्या है नोटा?

नोटा यानी ‘नन ऑफ द एबव’। यानी इन में से कोई नहीं। वोटिंग के दौरान भी लोगों को इसका विकल्प मिलता है। यानी आपको अगर किसी सीट पर खड़े प्रत्याशियों में से कोई भी पसंद नहीं है तो आप नोटा का विकल्प चुन सकते हैं। ईवीएम में ही आपको नोटा का बटन मिलता है।

क्यों की गई नोटा की व्यवस्था-

जब देश में नोटा का विकल्प नहीं था तब कई जगह वोटर्स उम्मीदवार के पसंद न आने पर मतदान नहीं करते थे। ऐसे में वोटिंग पर्सेंटेज गिर जाता था। इसको ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प देने का फैसला किया। वैसे ईवीएम से पहले बैलेट पेपर के वक्त में भी ऐसा ही एक विकल्प होता था। तब मतदाता बैलेट पेपर को खाली छोड़कर अपना विरोध दर्ज करा सकते थे। इससे स्पष्ट हो जाता था कि उन्हें कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आया।