गोवा में 40 विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है। सत्ता संग्राम में कुर्सी किसके हिस्से आएगी, यह तो नजीते बताएंगे। पर फिलहाल सियासी गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि क्या यह सूबा जाने-माने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके के लिए “वाटरलू” (Battle of Waterloo) बनेगा।

हमारे सहयोगी अंग्रेजी अखबार “दि इंडियन एक्सप्रेस” में छपे अपने “इनसाइड ट्रैक” कॉलम में पत्रकार कूमी कपूर लिखती हैं, “क्या गोवा पीके के वाटरलू का अभियान बन जाएगा? दरअसल, किशोर के संगठन आई-पैक (I-PAC Indian Political Action Committee) के पास पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) के अभियान का पूरा काम/प्रभार है। टीएमसी गोवा प्रभारी महुआ मोइत्रा की जिम्मेदारी काफी हद तक मीडिया से बातचीत करने तक ही सीमित है।”

उन्होंने इसी लेख के जरिए आगे बताया कि गोवा के उन नेताओं की लिस्ट बढ़ती ही जा रही है, जो टीएमसी में शामिल हुए लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्रों से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद छोड़ने पर मजबूर हुए। कांग्रेस (Congress) के पूर्व विधायक एलेक्सो रेजिनाल्डो लौरेंको अब निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। एमजीपी (Maharashtrawadi Gomantak Party : MGP) के पूर्व विधायक लवू मामलेदार कांग्रेस के टिकट पर खड़े हैं। गोवा टीएमसी के संस्थापक सदस्य यतीश नाइक ने टिकट न मिलने पर इस्तीफा दे दिया।

बकौल कपूर, “बाकी जिन प्रमुख टीएमसी समर्थकों का मोहभंग हो गया है, उनमें साहित्य क्षेत्र से जुड़ी शख्सियत दामोदर घनेकर, फुटबॉलर डेन्ज़िल फ्रेंको और टेनिस प्लेयर लिएंडर पेस हैं। पूर्व सीएम लुइज़िन्हो फलेरियो (जो टीएमसी की पहली भर्ती थी) पार्टी से राज्यसभा सीट के बाद फतोर्दा से चुनाव लड़ने से पीछे हट गई। कम जाने-पहचाने नाम कहते हैं कि शुरू में उन्हें केवल इसलिए लुभाया गया था, ताकि आई-पैक को उनके कॉन्टैक्ट नंबरों तक पहुंच मिल सके।

वैसे, टीएमसी ने गोवा में भारी निवेश किया है। दीदी के दल के विशाल होर्डिंग बाकी सभी पार्टियों के होर्डिंग्स से कहीं अधिक हैं। पर होर्डिंग्स में सिर्फ ममता बनर्जी की तस्वीर नजर आती है, जबकि उम्मीदवारों के फोटो गायब हैं।

बता दें कि वाटरलू एक नगर है, जो कि बेल्जियम में है। यहीं पर ऐतिहासिक जंग हुई थी, जिसमें नेपोलियन बोनापार्ट को हार का मुंह देखना पड़ा था। इसी युद्ध के कारण इसका नाम प्रसिद्ध हो गया था और आज हम इसे बैटल ऑफ वाटरलू के नाम से भी जानते हैं।

इस बीच, सूबे में भाजपा के गलत चुनावी प्लान के लिए संगठन मंत्री निशाने पर आ गए। कपूर के कॉलम के मुताबिक, सीएम प्रमोद सावंत (अप्रभावी) से ज्यादा बीजेपी के संगठन सचिव सतीश धोंड को गोवा में पार्टी की गुमराह करने वाली चुनावी रणनीति के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। धोंड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक प्रचारक भी हैं। जब मनोहर पर्रिकर थे, तब उनका तबादला महाराष्ट्र में कर दिया गया था। पर्रिकर के बीमार होने पर वे गोवा लौट आए और विकल्पों की कमी के कारण उन्हें पूरी छूट दी गई।