भाजपा सरकार द्वारा लायी गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का चुनाव आयोग विरोध करेगा। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग और केन्द्र सरकार का आमना-सामना हो सकता है। दरअसल गुरूवार को चुनाव आयोग की बैठक हुई, जिसमें आयोग ने फैसला किया कि वह सरकार द्वारा लायी गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का विरोध जारी रखेगा।

इससे पहले 25 मार्च 2019 को भी चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दिए शपथ पत्र में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का विरोध किया था। जिस पर आयोग अभी भी कायम है।

बता दें कि चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था एडीआर ने केन्द्र सरकार द्वारा लायी गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। अब फरवरी के पहले सप्ताह में चुनाव आयोग को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है।

खबर है कि राजनैतिक दलों द्वारा सीलबंद लिफाफे में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत दी गई जानकारी भी चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के साथ साझा करेगा। चुनाव आयोग ने मई 2017 में कानून मंत्रालय को एक पत्र लिखकर इलेक्टोरल बॉन्ड पर अपना रुख साफ किया था। अब आयोग सुप्रीम कोर्ट में इस पत्र को भी पेश करेगा।

बता दें कि जन प्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 29 के तहत 20 हजार रुपए से अधिक चंदा देने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना नाम, पैन नंबर और अन्य विवरण देना जरूरी होता था। लेकिन वित्त कानून 2017 के जरिए केन्द्र सरकार ने इसमें संशोधन किया और इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए राजनैतिक पार्टियों को चंदा देने का प्रावधान किया गया।

इसके चलते एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपए तक का चंदा देने वाले व्यक्ति को अपनी और चंदा लेने वाली पार्टी की पहचान गोपनीय रखी जाती है। चुनाव आयोग का मानना है कि इससे राजनैतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही खत्म हो गई है।

गौरतलब है कि इस इलेक्टोरल चंदे से सत्ताधारी भाजपा को ही अभी तक सबसे ज्यादा फायदा मिला है। इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए अभी तक आधे से ज्यादा धन अकेले सत्तारुढ़ भाजपा को ही मिला है। यही वजह है कि अन्य राजनैतिक दल भी इसका विरोध कर रहे हैं।