इलेक्शन बॉन्ड स्क्रीम पर सुप्रीम कोर्ट आज बुधवार को अहम फैसला सुनाने जा रहा है। ये योजना कितनी सही है और कितनी गलत, इसका निर्णय होने वाला है। असल में 2018 में केंद्र सरकार ने इलेक्शन बॉन्ड स्कीम शुरू की थी। तब तर्क दिया गया था कि राजनीतिक पार्टियों को जो चंदा मिलता है, उसमें पारदर्शिता की कमी है, बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता है। ऐसे में उसे खत्म करने के लिए इस योजना को शुरू किया गया।

लेकिन इन्हीं दावों को चुनौती दी गई और कहा गया कि इससे उल्टा भ्रष्टाचार बढ़ा है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट बेंच ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। बेंच में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि पहली बार 2017 में केंद्रीय बजट सत्र के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की घोषणा की गई थी। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कंपनी, कारोबारी और आम लोग बिना अपनी पहचान बताए राजनीतिक दलों को चंदा दे सकते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम भारतीय नागरिकों या भारत में निगमित निकायों, दोनों को बॉन्ड खरीदने की अनुमति देते हैं।

आमतौर पर 1000 रुपये से एक करोड़ रुपये तक के मूल्यवर्ग में बेचे जाने वाले, इन बॉन्डों को केवाईसी मानदंडों का अनुपालन करने वाले खातों के माध्यम से अधिकृत एसबीआई शाखाओं से खरीदा जा सकता है। बांड प्राप्त करने के 15 दिनों के भीतर राजनीतिक दल उसे अपनी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते में ट्रांसफर कर सकते हैं।