भारत सकल घरेलू उत्पाद यानी (जीडीपी) के मामले में ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत ने मार्च 2022 के अंत में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है। यह एक शानदार स्थिति लग रही है, लेकिन ये भारतीय रिजर्व बैंक के साथ-साथ, कई शोध संस्थाओं के अनुमान से कम हैं। कई मोर्चे पर चुनौतियां बरकरार हैं।
अहम सवाल कुपोषण को लेकर उठते हैं। भारत की तकरीबन 19 करोड़ आबादी यानी ब्रिटेन की कुल आबादी की तकरीबन तीन गुनी आबादी कुपोषित है। पोषण के मानकों के आधार पर उसे पोषण नहीं मिल रहा। ढंग का खाना नहीं मिल रहा। स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के मानकों को जोड़कर ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स तैयार किया जाता है। इस मानक पर ब्रिटेन दुनिया के 189 देशों के बीच 13 वें पायदान है और भारत दुनिया के 189 देशों के बीच 131 वें पायदान पर है।
प्रति व्यक्ति आय
ब्रिटेन की आबादी करीब पौने सात करोड़ है और भारत की आबादी इस समय करीब 138 करोड़ है। विश्लेषकों के मुताबिक, भारत समृद्धि के मामले में ब्रिटेन से बीस गुना पीछे हैं। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आय 45 हजार डालर से ऊपर है, भारत में अभी भी करीब दो हजार डालर प्रति वर्ष ही है।प्रति व्यक्ति आय के मामलें में भारत दुनिया के 194 देशों के बीच 144 वें पायदान पर मौजूद है।
प्रति व्यक्ति आय में भारत एशिया के देशों के बीच भारत 33 वें पायदान पर है। दुनिया के अमीर देशों के मुकाबले भारत की प्रति आय 60 गुना कम है।अभी पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट हैं। उसका भी फायदा भारत को हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी आगे बढ़ रही है। अगर अगले चार-पांच साल तक भी भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रही तब भी प्रति व्यक्ति आय के पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने में अभी बहुत वक्त लगेगा।
आर्थिक असमानता
जानकारों के मुताबिक, भारत की आबादी ब्रिटेन से करीब बीस गुना ज्यादा है। भारत प्रति व्यक्ति आय में उनसे बीस गुना पीछे हैं। 2019-20 से पहले ही यह सोचा जा रहा था भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पार कर जाएगी, लेकिन फिर कोविड महामारी आ गई और अर्थव्यवस्था में गिरावट आ गई। अब सरकार अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के आंकड़े पेश कर रही है।
सात-साढ़े सात फीसद वृद्धि दर है। लेकिन ये आंकड़ें सिर्फ संगठित क्षेत्र पर आधारित हैं। इनमें असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं हैं। भारत में 94 फीसद कर्मचारी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और देश का 45 फीसद उत्पादन इसी में होता है। साल 2021 का आंकड़ा कहता है कि भारत के 10 फीसद अमीर लोगों के पास देश की कुल आय का तकरीबन 57 फीसद हिस्सा है और 50 फीसद गरीब लोगों के पास देश की कुल आय का महज 13 फीसद हिस्सा।
रोजगार का सवाल
कोविड महामारी के बाद से भारत में रोजगार का संकट गंभीर हुआ है। सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी के मुताबिक, जुलाई 2022 में भारत में बेरोजगारी की दर 6.80 फीसद थी। जून में ये दर 7.80 फीसद थी। बेरोजगारी के हिसाब से देखें तो भारत में रोजगार दर 40 फीसद के आसपास है। मतलब भारत की काम करने वाले आबादी 90 करोड़ बीच तकरीबन 36 करोड़ आबादी के पास किसी न किसी तरह का काम रहता है।
44 करोड़ आबादी के पास किसी तरह का काम नहीं है। यह आबादी ही ब्रिटेन की कुल आबादी के छह गुना है। जानकारों के मुताबिक, भारत के श्रम बाजार में औरतों की भागीदारी दुनिया के अनुपात के मुकाबले सबसे कम में आती है। सिर्फ 19 फीसद औरतें ही ऐसी हैं जो नौकरी के बाजार में हैं। यूपी और बिहार जैसे राज्यों में ये दस फीसद से भी कम है। जब तक अर्थव्यवस्था में औरतों की भागीदारी नहीं बढ़ेगी, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां रहेंगी। भारत के श्रम पोर्टल पर साढ़े सत्ताइस करोड़ लोगों ने पंजीकरण किया है। इनमें से 94 फीसद ने बताया कि वो हर महीने दस हजार रुपए से कम कमाते हैं।
आंकड़ों में कहां खड़ा भारत
आइएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में भी भारत को इस साल सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बताया। पहली तिमाही में भारत की विकास दर 13.5 फीसद रही है। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की पहले तिमाही के विकास दर से तुलना करने पर भारत बहुत आगे दिखाई देता है। इस तिमाही में बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में रूस (3.5 फीसद), जापान (2.2 फीसद ), फ्रांस (0.5 फीसद),चीन (0.4 फीसद) और जर्मनी (0.1फीसद) शामिल रहे हैं। वहीं ब्रिटेन और अमेरिका की अर्थव्यवस्थाओं ने नकारात्मक ग्रोथ दिखाई है। पहली तिमाही में यूके की विकास दर नकारात्मक में 0.6 फीसद और अमेरिका की ऋणात्मक 0.1 फीसद रही है।
क्या कहते हैं जानकार
भारत के सामने चुनौतियां जरूर हैं लेकिन यह कह सकते हैं कि भारत सही दिशा में काम कर रहा है। प्रति व्यक्ति आय में मामले में अभी हम बहुत पीछे हैं और हमें बहुत लंबा फासला तय करना है लेकिन यहां भी सकारात्मक बात ये है कि हमारे पास करने के लिए बहुत कुछ हैं।
-जयति घोष, वरिष्ठ अर्थशास्त्री
अभी पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट हैं। उसका भी फायदा भारत को हुआ है। भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी आगे बढ़ रही है। अगर अगले चार-पांच साल तक भी भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रही तब भी प्रति व्यक्ति आय के पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने में अभी बहुत वक्त लगेगा।
- वृंदा जागीरदार, वरिष्ठ अर्थशास्त्री