भारत और चीन के बीच तनाव में कुछ नरमी नजर आ रही है। पूर्वी लद्दाख में गोगरा-हाटस्प्रिंग्स के गश्ती बिंदु 15 से दोनों देशों की सेनाएं हटी हैं। दोनों देशों की ओर से इस बारे में जारी बयान में कहा गया है कि सुनियोजित ढंग से पीछे हटना, दोनों देशों की सीमाओं पर शांति के लिए सही कदम है। दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में बने गतिरोध के बीच यह एक अहम घटना है।
करीब दो साल से भारत और चीन इस इलाके में आमने-सामने हैं। यह समूची कवायद अगले सप्ताह उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से पहले आया है। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हिस्सा लेंगे।
बैठक पर निगाहें
अगले हफ्ते समरकंद में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन को लेकर चर्चा तेज है कि क्या इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात होगी? सीमा पर जारी गतिरोध के संदर्भ में इसे लेकर आशंकाएं जताई जा रही थीं। अब जबकि सेनाएं पीछे हट रही हैं तो उम्मीद जताई जा रही है कि दोनों नेता एक सकारात्मक सोच के साथ मिलें। जानकारों के मुताबिक, चीन व भारत के बीच तनाव भरे रिश्ते थे। रिश्ते खराब हो रहे थे। साथ ही चीन के दूसरे कई देशों जैसे ताइवान, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ भी गतिरोध चल रहे हैं। ऐसे में चीन की निगाह भारत और भारतीय उपमहाद्वीप की ओर गई है।
एससीओ का एजंडा
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, समरकंद के एससीओ सम्मेलन में हिस्सा लेने के अलावा प्रधानमंत्री मोदी कुछ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे। ऐसे में अब सबकी नजरें भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संभावित मुलाकात पर लग गई हैं। दोनों नेताओं के बीच आपसी मुलाकात और द्विपक्षीय बातचीत होती है तो सीमा विवाद के बाद ऐसा पहली बार होगा जब दोनों नेता आमने सामने होंगे और बातचीत करेंगे।
मोदी और शी जिनपिंग के संभावित बातचीत से भारत-चीन के संबंधों में आए तनाव को भी कम करने में मदद मिलेगी। सम्मेलन के दौरान पिछले दो दशकों में एससीओ के कार्यों की समीक्षा के साथ साथ भविष्य में बहुद्देशीय सहयोग पर भी चर्चा होगी। क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के मसलों पर भी बैठक में चर्चा होगी।
सैन्य जमावड़ा और तनाव
जानकारों के मुताबिक, सीमा से सैनिकों के पीछे हटने की वार्ता दो साल से ज्यादा समय से चल रही है और जिन क्षेत्रों में सैनिक पीछे हटे भी हैं, वहां भी रत्तीभर तनाव कम नहीं हुआ है। इसका नतीजा है कि हर तरफ से उतनी ही तादाद में 50-60 हजार भारतीय सैनिक और 50-60 हजार चीनी सैनिक उन्हीं ऊंचाइयों पर मौजूद हैं अपने पूरे असलहे के साथ। उन इलाकों में ड्रोन का भी प्रयोग हो रहा है, लड़ाकू विमान भी उड़ाए जा रहे हैं।
कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि राजनीतिक तौर पर यह तय हुआ है कि सैनिकों को पीछे हटाना है, क्योंकि एससीओ में शी जिनपिंग आ रहे हैं और वो चाहेंगे कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात हो जाए। जानकार इसे अस्थाई कदम मान रहे हैं। पूर्वी लद्दाख में कम से कम तीन ऐसी जगहें हैं, जहां से सैनिकों को पीछे हटाने को लेकर विवाद अभी जारी है। अगर चीन ने सीमा पर निर्माण किया है तो भारत ने भी निर्माण किया है।
देपसांग और डेमचोक का मुद्दा
भारत देपसांग और डेमचोक के टकराव वाले शेष बिंदु क्षेत्रों में लंबित मुद्दों के समाधान के लिए दबाव बनाए रखेगा। पैंगोंग झील क्षेत्र से पीछे हटने की प्रक्रिया पिछले साल फरवरी में हुई थी, जबकि गोगरा में गश्ती बिंदु 17 (ए) क्षेत्र से सैनिकों और उपकरणों की वापसी पिछले साल अगस्त में हुई थी। सोलहवें दौर की सैन्य वार्ता जयशंकर के अपने चीनी समकक्ष वांग यी से बाली में मुलाकात के 10 दिन बाद हुई थी। दोनों पक्षों में से प्रत्येक ने सीमा पर संवेदनशील क्षेत्र में 50,000 से 60,000 सैनिकों की तैनाती कर रखा है। ऐसे में सैन्य जमावड़े को पीछे करना एक व्यापक प्रक्रिया है जो पुख्ता और बड़ी होती है। इसके शुरू होने से ये इशारा मिलता है कि हालात पहले की तरह सुधर रहे हैं।
अहम लद्दाख
सीमा पर भारत और चीन के बीच कई सालों से कम-से-कम 12 जगहों पर विवाद रहा है। अप्रैल 2020 में शुरू हुआ विवाद, जब चीन ने पूर्वी लद्दाख में विवादित एलएसी पर सैन्य मोर्चाबंदी की। गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा-हाटस्प्रिंग्स जैसे इलाको में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आईं।
15 जून को गतिरोध हिंसक हुआ। गलवान में हुए खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए। फरवरी 2021 में दोनों देशों ने पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर चरणबद्ध और समन्वित तरीके से तनाव को कम करने की घोषणा की। जून 2020 के बाद दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर पर 16 दौर की बातचीत हो चुकी है।
क्या कहते हैं जानकार
एससीओ की बैठक में भारत और चीन के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात को लेकर हो सकता है कि रूस की ओर से भी सुझाव दिया गया हो। लेकिन चीन की नरमी का कदम गौरतलब है। चीन फूंक-फूंककर चल रहा है। उसे डर है कि कहीं भारत पूरी तरह से चीन-विरोधी पलड़े की ओर ना चल जाए।
- राकेश सूद, कई देशों के पूर्व राजदूत
ताजा बयान इसी 16वें राउंड की बातचीत के बाद जारी किया गया है.जमीन पर स्थिति बहुत खतरनाक है और यह नियंत्रण से बाहर हो सकती है। सैन्य वार्ताओं में अहम यह होता है कि क्या दोनों पक्ष अस्थिर स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम हैं या नहीं। मुझे नहीं लगता है चीन बड़े संघर्ष का हिमायती है, लेकिन वह तनाव बनाए रखेगा।
- लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा