सात साल से लटके तलाक के एक मामले को देखकर कर्नाटक हाईकोर्ट का पारा चढ़ गया। जस्टिस ने कहा कि ऐसे मामलों को जल्दी से जल्दी निपटाए जाने की जरूरत है। तलाक होगा तभी तो नए जीवन की शुरुआत होगी। तलाक ही नहीं होगा तो दोनों पक्ष एक जगह पर ठहरे रहेंगे।

जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने आदेश में कहा कि अदालत इस बात से सहमत है कि शादी से जुड़े मामलों का जल्दी निपटारा इस वजह से जरूरी है, क्योंकि मानव जीवन छोटा होता है। इतिहासकार थॉमस कार्लाइल का जिक्र कर कोर्ट ने कहा कि जीवन बेकार की जीचों और भावनाओं पर समय गंवाने के लिए बहुत छोटा है। जब शादी से जुड़े किसी मामले में शादी को समाप्त करने का अनुरोध शामिल हो तो अदालतों को एक साल की सीमा के भीतर इसका निपटारा करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे संबंधित पक्ष नये सिरे से अपने जीवन की शुरुआत कर सकें।

जस्टिस बोले- ऐसे मामलों में देरी से दोनों पक्ष होते हैं प्रभावित

हाईकोर्ट ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि जिंदगी जीने में बीत जाती है। ऐसे मामलों के निपटारे में देरी से दोनों पक्षों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। जस्टिस ने फैमिली कोर्ट को सात साल पुराने मामले को तीन महीने के भीतर निपटाने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से फैसले को सभी पक्षों तक पहुंचाने को कहा। जस्टिस का कहना था कि इस तरह के मामले हाईकोर्ट तक न आए ये ही बेहतर रहेगा।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2016 में अपनी शादी को अमान्य घोषित करने के अनुरोध को लेकर अपने पास आने वाले एक युवक की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित न्याय के अधिकार को अनुच्छेद-21 के तहत संवैधानिक गारंटी के रूप में मान्यता दी है। इसलिए मामले के जल्द निपटारे के लिए एक आदेश जारी किया जाना चाहिए।