संजीव
हरियाणा के गोहाना के जलेब जहां पूरे देश में प्रसिद्ध है, वहीं हरियाणा की राजनीति में भी इस शहर का महत्व कम नहीं है। विधानसभा का उपचुनाव भले ही बरौदा में हो रहा है लेकिन राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बिंदु गोहाना बन चुका है। हरियाणा गठन से लेकर आजतक हरियाणा के राजनीतिक दलों में जींद व गोहाना में रैलियां करने की परंपरा बनी रही है। सितंबर माह के दौरान बरौदा में उपचुनाव होने जा रहा है, लेकिन गोहाना की सक्रियता अभी से बढ़ गई है। गोहाना चारों तरफ से बरौदा विधानसभा क्षेत्र से घिरा हुआ है।

एक नवंबर 1966 को हरियाणा बनने के बाद हुई हदबंदी में बरौदा विधानसभा क्षेत्र को अनुसूचित जाति आरक्षित विधानसभा क्षेत्र का दर्जा दिया गया। 1967 में जब पहली बार चुनाव हुए, तो यहां से कांग्रेस के आरन डाहरी ने भारतीय जनसंघ के डी सिंह को हराया। वर्ष 2008 में जब नए सिरे से हदबंदी हुई तो बरौदा को आरक्षित हलके से बाहर कर सामान्य श्रेणी की सूची में डाला गया।

इस विधानसभा क्षेत्र में आजतक कुल 13 चुनाव हुए हैं। अब तक हुए चुनावों में सबसे अधिक कांग्रेस पांच बार, इनेलो तथा लोकदल के विधायक दो-दो बार विजयी हुए हैं। बरौदा के मतदाताओं का मिजाज शुरू से राजनीतिक दलों के साथ चलने का नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष के साथ रहने का रहा है। यहां के मतदाताओं ने लंबे समय से स्वर्गीय ताऊ देवीलाल का साथ दिया और उनके बाद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम की यहां राजनीति होती रही है।

हरियाणा में दूसरी बार सत्ता संभाल रही भाजपा के लिए बरौदा हमेशा सूखा रहा है। एक समय ऐसा था जब ताऊ देवीलाल की पार्टी से इक्का-दुक्का विधायक जीत दर्ज करते थे, तो उनमें एक बरौदा होता था। व्यक्ति विशेष की राजनीति का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि बरौदा हलके में कुछ चुनाव ऐसे भी हुए हैं, जब नेता दलबदल करके दोबारा मैदान में आए और जनता ने उन्हें फिर से चुन लिया।

ऐसे ही हालात कुछ इस बार बनते जा रहे हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने गढ़ को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं तो ताऊ देवीलाल की राजनीति को आगे बढ़ा रहे अभय चौटाला को उम्मीद है कि बरौदा के लोग फिर से वापसी करेंगे और जिस तरह से पहले उन्होंने विकट परिस्थितियों में साथ दिया है वैसे ही अब देंगे।

हरियाणा के राजनीतिक विशलेषक डॉ. सतीश त्यागी का मानना है कि बरौदा समेत कई हलके ऐसे हैं जहां लंबे समय से राजनीतिक दलों के बजाए व्यक्ति विशेष की राजनीति चलती रही है। बरौदा जाट बहुल विधानसभा क्षेत्र है। जहां सभी विपक्षी दलों की नजर भाजपा द्वारा उतारे जाने वाले प्रत्याशी पर रहेगी। पिछले चुनाव में भाजपा गैर जाट प्रत्याशी उतारकर देख चुकी है।

चौटाला के जेल जाने के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा की छवि जाट नेता के रूप में उभरी है। लोगों ने पार्टी पॉलिटिक्स से हटकर भी हुड्डा को जाट नेता के रूप में स्वीकार किया है। दूसरी तरफ इनेलो भी यहां अभी से सक्रिय हो गई है। इनेलो नेता अभय चौटाला के अनुसार यह क्षेत्र लंबे समय तक उनके परिवार के साथ रहा है। अभय के अनुसार उनके बेटे व वह खुद बरौदा के गावों का दौरा करके पुराने लोगों व कार्यकर्ताओं को लामबंद कर रहे हैं।

बरौदा के लोग बदलाव करके देख चुके हैं। उनका जो विकास ताऊ देवीलाल व चौधरी ओमप्रकाश चौटाला के समय में हुआ है, वह कभी नहीं हुआ है।

किस किसके सिर बंधा ताज
साल विजयी नेता दल
1967 आर.डाहरी आइएनसी
1968 श्याम चंद वीएचपी
1972 श्याम चंद आइएनसी
1977 भाले राम जेएनपी
1982 भाले राम एलकेडी
1987 किरपा राम एलकेडी
1991 रमेश कुमार जेपी
1996 रमेश कुमार एसएपी
2000 रमेश कुमार आइएनएलडी
2005 रामफल आइएनएलडी
2009 श्रीकृष्ण आइएनसी
2014 श्रीकृष्ण आइएनसी
2019 श्रीकृष्ण आइएनसी