कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के गुड़गांव जमीन सौदे की जांच कर रहे न्यायाधीश एसएन ढींगड़ा आयोग की तय सीमा में रिपोर्ट आने की संभावना क्षीण है। ऐसे में ढींगड़ा आयोग के कार्यकाल में एक और बढ़ोतरी की संभावना है। आयोग को अपनी रिपोर्ट मई तक देनी थी। रिपोर्ट तय समय-सीमा में ही सौंपने के सरकारी दबाव के बावजूद देरी की आशंका इसलिए भी है क्योंकि ढींगड़ा आयोग को लगता है कि उसके कार्यक्षेत्र में और बढ़ोतरी होनी चाहिए। ध्यान रहे, शुरू में आयोग को वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को 2008 में 2.70 एकड़ भूमि पर दिए गए व्यावसायिक लाइसेंस की जांच के लिए बिठाया गया था।

राज्य में 2014 में चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने बढ़-चढ़ कर वाड्रा जमीन सौदे की जांच कराने का वादा किया था। मौजूदा सरकार के कई मंत्री वाड्रा के खिलाफ काफी कड़वा बोलते रहे हैं। शुरू में अपेक्षा की गई थी कि आयोग जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट दे और यह समय-सीमा छह महीने से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। आयोग को पिछली दिसंबर तक रिपोर्ट दे देनी थी। लेकिन जल्दी ही आयोग का कार्यक्षेत्र गुड़गांव के सेक्टर 83 जहां कि वाड्रा की विवादित जमीन थी, से बढ़ा कर गुड़गांव के सेक्टर 36 ए, 75, 75 ए, 76, 77, 78, 79, 79ए, 81, 81ए, 81बी, 82, 83, 84, 85 तक कर दिया गया।

यह माना जाता है कि इन सेक्टरों में प्रदेश की पूर्व भूपिंदर सिंह हुड्डा सरकार ने 200 के करीब लाइसेंस जारी किए थे। न्यायमूर्ति ढींगड़ा को दिल्ली के हरियाणा भवन के दो कमरों में उनका कार्यालय दिया गया। सूत्रों का कहना है कि आयोग का अब तक की जांच के बाद यह निष्कर्ष है कि उसकी जांच का दायरा और बढ़ना चाहिए। हुड्डा के कार्यकाल में व्यावसायिक लाइसेंस जारी करने की होड़ सी लगी थी। इन्हीं सीएलयू के कारण सरकार को बदनामी भी झेलनी पड़ी थी। कांग्रेस के मंत्रियों समेत छह नेताओं के सीएलयू जारी कराने के नाम पर सौदा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने एक स्टिंग आपरेशन भी कर दिया था, जिसके आधार पर कुछ नेताओं के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज हुई। अब अगर सरकार आयोग के कार्यक्षेत्र में बढ़ोतरी करती है तो उसकी रिपोर्ट में देरी स्वाभाविक है।

सूत्रों का यह भी कहना है कि आयोग ने बड़े बिल्डरों को भी अपने सवाल-जवाब के दायरे में लाने को कदम उठा दिए हैं। एक नामी बिल्डर जिसका नाम ‘पनामा पेपर्स’ में भी आ चुका है के लिए नोटिस भेजा गया है। इसी तरह कुछ और बिल्डर भी निशाने पर हैं। ध्यान रहे, आयोग का दायरा बढ़ने से कई और बड़ी मछलियां भी इसकी गिरफ्त में आ सकती हैं। जबकि पहले यह माना जा रहा था कि इसका मकसद वाड्रा के जमीन सौदे को ही बेनकाब करना है। वाड्रा की यह विवादित जमीन गुड़गांव के शिकोहपुर गांव में थी। सरकार ने आयोग को जमीन के हस्तांतरण, निजी लाभ पहुंचाने और आबंटियों की योग्यता परखने को कहा था।

वाड्रा की जमीन का विवाद हरियाणा के आइएएस अफसर अशोक खेमका के निदेशक चकबंदी की हैसियत से उनकी जमीन की म्यूटेशन रद्द करने से उछला था। करीब साढ़े तीन एकड़ भूमि का यह टुकड़ा वाड्रा ने डीएलएफ को बेचा था। हालांकि तत्कालीन हुड्डा सरकार ने उसकी जांच के लिए जो एक समिति बनाई थी उसका कहना था कि इस जमीन पर कार्रवाई खेमका ने अपने अधिकारतंत्र से बाहर जाकर की थी। इसके बाद खेमका खुल कर सामने आ गए थे और यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था।

आयोग ने इस बारे में हुड्डा को स्वयं पेश होकर अपनी सफाई पेश करने को कहा था। लेकिन हुड्डा आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। उन्होंने अपने वकील के माध्यम से भेजे जवाब में कहा कि यह नोटिस कानून के खिलाफ है और इसका दायरा स्पष्ट नहीं है। अब यह देखना है कि बिल्डर जिनसे अभी तक कुछ पूछताछ नहीं की गई थी इस पर क्या रुख अपनाते हैं। लेकिन यह तय है कि इस जांच के दायरे को जितना बढ़ाया जाएगा उतना ही इसकी रिपोर्ट आने में समय लगेगा।

आयोग ने बड़े बिल्डरों को भी अपने सवाल-जवाब के दायरे में लाने के कदम उठा दिए हैं। एक नामी बिल्डर जिसका नाम ‘पनामा पेपर्स’ में भी आ चुका है के लिए नोटिस भेजा गया है। आयोग का दायरा बढ़ने से कई और बड़ी मछलियां भी इसकी गिरफ्त में आ सकती हैं। जबकि पहले यह माना जा रहा था कि उसका मकसद वाड्रा के जमीन सौदे को ही बेनकाब करना है।