कई दशकों तक डाकुओं की शरण स्थली रही चंबल घाटी अब पर्यटन का एक आकर्षक केंद्र बन रही है। अब यहां पर्यटक बीहड़ों की भूल भुलैया में जाकर पुरानी दस्यु संस्कृति को टटोल सकेंगे। इसके साथ ही बदनाम रही इस घाटी का नजदीक से नजारा भी देख सकेंगे। रविवार को चंबल नदी में मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक सुरेंद्र सिंह ने नौकायन कर चंबल के बदलते चेहरे को देखा।

पूर्व में मुरैना के पुलिस अधीक्षक रहे सिंह ने माना कि कभी डाकुओं की शरण स्थली रही चंबल घाटी में अब शांति और संपन्नता है। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 1979 में चंबल घाटी के तटीय 425 वर्ग किलोमीटर लंबे क्षेत्र को वन्य प्राणी अभयारण्य घोषित किया था।
डाकुओं के आतंक के लिए कुख्यात चंबल के बीहड़ हमेशा से आम आदमी के लिए कौतुहल का विषय रहे हैं। कभी डाकुओं के आतंक से थर्राने वाली यह घाटी अब पूर्णत शांत है। मध्यप्रदेश के डीजीपी सिंह वर्ष 1987 में मुरैना के एसपी थे, तब चंबल घाटी में डाकुओं की बंदूकों से निकलने वाली गोलियों से चारों और दहशत का वातावरण था।

तब पुलिस डाकुओं के आतंक के खात्मे के लिए यहां आती-जाती थी। रविवार प्रदेश के डीजीपी चंबल पुलिस के पूरे अमले के साथ चंबल घाटी पहुंचे। नौकायन करते उनका चंबल नदी के घुमावदार बीहड़ के उन घाटों से दीदार हुआ जहां कभी चंबल के डाकू वारदातें कर मध्यप्रदेश से राजस्थान आया जाया करते थे।

सिंह ने नौकायन कर यहां के संरक्षित जलीय जीव घड़ियाल, मगर एवं डाल्फिन के जीवन को नजदीक से देखा तथा चंबल नदी तट पर भारी संख्या में आए प्रवासी पक्षियों के झुंडों को भी निहारा। चंबल घाटी से लौटने के बाद सिंह ने स्वीकार किया कि अब चंबल घाटी का रूप बदल गया है और अब यह शीघ्र ही सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने लगेगी।

उन्होंने कहा, ‘अब चंबल घाटी दस्युविहीन हो गई है। चारों और शांति एवं संपन्नता है।’ सिंह ने चंबल अभयारण्य विभाग द्वारा शुरू किए गए नौकायन पर्यटन के प्रयासों की सराहना की है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 1979 में चंबल घाटी क्षेत्र को चंबल वन्य प्राणी अभयारण्य घोषित किया था।

कुल 425 वर्ग किलोमीटर लंबाई में फैले इस अभयारण्य में विशेष तौर पर घड़ियालों का संरक्षण किया जाता है। वैसे डाल्फिन, मगर, ऊदबिलाव, कछुआ एवं अन्य प्रवासी पक्षी यहां का मुख्य आकर्षण है। सर्दियों के मौसम में यहां 200 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अपना बसेरा बनाते हैं और गर्मी शुरू होते ही अपने देशों को लौट जाते है।