Delhi to Kashmir Train: जम्मू कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 और 35(A) हटाया गया तो केंद्र सरकार ने दावा किया कि देश के अन्य हिस्सों से कश्मीर की बरसों पुरानी दूरियां अब खत्म हो गई हैं, लेकिन उस फैसले के 5 साल बाद नरेंद्र मोदी सरकार अब दिल्ली से कश्मीर को डायरेक्टर रेलवे नेटवर्क से कनेक्ट करने वाली है। इस रेलवे प्रोजेक्ट को एक बड़ी भौगोलिक विजय के तौर पर देखा जा रहा है।
इस प्रोजेक्ट के उद्धघाटन के साथ ही आजादी के सात दशकों बाद आखिरकार भारतीय रेल दिल्ली से डायरेक्ट घाटी तक जाएगी। पहली बार इस प्रोजेक्ट का वादा 1994 में किया गया था लेकिन आतंकवाद चरम पर होने के चलते दस साल तक यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में रहा था। अटल बिहारी वाजपयी वाजपयी की सरकार ने कश्मीर में सुधार के लिए ट्रेन की एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित की, जिसका पूरा खर्च केंद्र सरकार को वहन करना था।
तीन भागों में बांटा गया प्रोजेक्ट
साल 2002 में शुरू होने के चलते 2004 तक रेल लाइन उधमपुर तक पहुंची थी, जो कि जम्मू में आता है। इसके बाद की कनेक्टिविटी सबसे मुश्किल थी, जिसके लिए इस प्रोजेक्ट को तीन भागों में बांटा गया। पहला उधमपुर से कटरा, कटरा से बनिहाल और तीसरा बनिहाल से बारामुला।
यूपीए सरकार के दौरान साल 2008 में तीसरे चरण का पहला खंड यानी दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से बारामुला के मजहामा तक के रेल ट्रेक को खोला गया था। एक साल बाद, मजहामा-बारामुल्ला और अनंतनाग-काजीगुंड खंड भी खोल दिए गए थे, जिससे कश्मीर और जम्मू के बीच कनेक्टिविटी मजबूत हुई थी।
18 गुना से ज्यादा बढ़ गई प्रोजेक्ट की लागत
2013 में पहली ट्रेन उत्तरी कश्मीर के बारामुला से जम्मू के बनिहाल तक चली, जिसने दोनों क्षेत्रों को जोड़कर एक मील का पत्थर साबित किया। बनिहाल और कटरा के बीच 112 किलोमीटर की दूरी तय करने में 10 साल और लगेंगे, क्योंकि भौगोलिक चुनौतियां बहुत बड़ी हैं, जिसमें एक संक्षिप्त विचार यह भी है कि संरेखण को बदला जाना चाहिए।
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2002 तक इस परियोजना की लागत 2,000 करोड़ रुपये आंकी गई थी। पहले यह तीन गुना बढ़कर 6000 करोड़ हुई, अब जब पीएम मोदी इस परियोजना का उद्घाटन करने वाले हैं तो यह प्रोजेक्ट 37000 करोड़ से ज्यादा का हो गया है।
पीएम मोदी ने जताई आर्थिक समृद्धि की संभावना
परियोजना में शामिल रेलवे इंजीनियर्स की तारीफ और बेहतरीन उपलब्धियों को लेकर पीएम ने कहा था कि यह परियोजना जम्मू और कश्मीर की शेष भारत के साथ कनेक्टिविटी को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगी आर्थिक प्रगति और समृद्धि लाएगी।
एक तरफ जहा इस प्रोजेक्ट को लेकर खुशी है तो दूसरी ओर घाटी के कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं. उन्हें इस बात का डर है कि कश्मीर में अधिक पर्यटकों को लाने और इसके उत्पादों के लिए नए बाजार खोलने के अलावा, रेल नेटवर्क विस्तार कश्मीर के लिए की बीजेपी की एक जनाधार बढ़ाने की योजना है।
कश्मीर के लोगों की क्या हैं चिंताएं?
जब जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया था, तो जनसांख्यिकीय परिवर्तन के आशंका थी। हालांकि ये बाद में निराधार ही साबित हुईं। देश के साथ घनिष्ठ एकीकरण के बारे में तीसरी और सबसे बड़ी आशंका यह है कि मुख्य भूमि से कश्मीर की दूरी कुछ समय की रह जाएगी, जिसके चलते घाटी में नौकरियां और आजीविका प्रभावित हो सकती है।
इतना ही नहीं, इस मामले में बातचीत के दौरान पीडीपी नेता वहीद पारा ने कहा कि कुछ लोग शोपियां और कुपवाड़ा जैसी जगहों तक रेल नेटवर्क को आगे बढ़ाने की योजना पर भी सवाल उठाते हैं। प्रस्तावित रेलवे लाइनें उपजाऊ भूमि से होकर गुजरेंगी, और उनके लिए कोई सार्वजनिक मांग नहीं है। पारिस्थितिकी संबंधी चिंताएं हैं। हम एक और जोशीमठ नहीं बनना चाहते। हम अपने वनस्पतियों और जीवों, अपने जल निकायों और आर्द्रभूमि को संरक्षित करना चाहते हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने किया रेल कनेक्टिविटी का स्वागत
भले ही विपक्षी दल पीडीपी इसका विरोध कर रही है लेकिन सत्ता पर काबिज नेशनल कॉन्फ्रेंस ने रेल संपर्क का स्वागत किया है और जनसांख्यिकी परिवर्तन की बात को महज एक आशंका बताया है। पार्टी प्रवक्ता इमरान नबी ने कहा कि हमारे सामने ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस बात की ओर इशारा करता हो। संपर्क महत्वपूर्ण है। कश्मीर के लोगों ने लंबे समय से इसका इंतजार किया है, हमारे दो प्रमुख आर्थिक आधार पर्यटन और बागवानी हैं, और दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
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कृषि भूमि पर कब्जे की आशंका पर एनसी नेता नबी ने कहा कि उन्होंने संबंधित अधिकारियों के समक्ष इस मुद्दे को उठाया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि कुपवाड़ा जैसे छोटे स्थानों तक रेलवे लाइन की कोई मांग नहीं है। लोग जो मांग कर रहे हैं, वह यह है कि उनकी उपजाऊ भूमि पर कब्जा न किया जाए और इसके बजाय रेल लाइनें अनुपजाऊ क्षेत्रों से गुजरें।
बीजेपी ने क्यों कही सर्दियों में कटने की बात
कश्मीर के दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक का हिस्सा बनने का स्वागत करते हुए बीजेपी के प्रवक्ता साजिद यूसुफ ने कहा कि अगर वास्तविक एकीकरण हुआ, तो ट्रेन उसका दूसरा पहलू है। यह एक सही काम है जो किया गया है। सर्दियों के दौरान घाटी मुख्य भूमि से कट जाती है, पर बीजेपी नेता ने ध्यान आकर्षित किया और कहा कि सड़कें बंद हो जाती हैं और हवाई किराए आसमान छू जाते हैं, जिससे पर्यटकों के लिए यह महंगा हो जाता है। ट्रेनों के साथ, हम बहुत सारे पर्यटकों को आते देखेंगे और घाटी के लोग, जिनमें व्यवसायी भी शामिल हैं, देश के किसी भी हिस्से की यात्रा कर सकते हैं।
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जम्मू के लिए भी हैं कई आशंकाएं
हालांकि, आशंकाएं सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि जम्मू में भी कुछ लोगों को चिंता है कि इससे प्रांत में पर्यटन को एक और झटका लगेगा, क्योंकि पर्यटक सीधे घाटी की ओर चले जाएंगे। जम्मू की ओर से दरबार मूव के खत्म होने का असर पहले से ही महसूस किया जा रहा है, जब सर्दियों में प्रशासन श्रीनगर से जम्मू में स्थानांतरित हो जाएगा। जम्मू हमेशा से घाटी के अधिकांश आने-जाने वाले यातायात के लिए एक पारगमन बिंदु रहा है, और अन्य आर्थिक गतिविधियों के अलावा इसका होटल और परिवहन उद्योग काफी हद तक इस पर निर्भर है।
जम्मू के चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने हाल ही में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के समक्ष इन चिंताओं को उठाया, जबकि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के तेजी से विकास” की भी प्रशंसा की। बैठक के बाद चैंबर द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया कि श्रीनगर से बारामुला तक ट्रेन पहुंचने से जम्मू के व्यापार, पर्यटन, परिवहन क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ने वाला है।
चेंबर पर कॉमर्स ने अपने प्रेस नोट में कहा कि इस कमी को पूरा करने के लिए, हम सुझाव देते हैं कि जम्मू-कश्मीर में अपने प्राणों की आहुति देने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सम्मान में, पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अहमदाबाद स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की तर्ज पर जम्मू में एक प्रतिष्ठित और सुंदर परियोजना स्थापित की जाए। जम्मू कश्मीर की अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।