रिंग रेलवे को दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाने की फिर घोषणा इस बार के रेल बजट में की गई है। 1982 के एशियाड के समय दिल्ली का आजादी के बाद सही मायने में पहला विस्तार हुआ था और तभी 21 स्टेशनों का रिंग रेलवे बनाया गया था। कुछ समय बाद वह उन स्टेशनों के पास रहने वालों का ही परिवहन साधन बन कर रह गया था। 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित बताती हैं कि उन्हें यही बताया जाता रहा कि इसके यात्रियों की संख्या नहीं बढ़ पा रही है इसलिए इसके विस्तार का कोई बड़ा लाभ नहीं होने वाला है। जबकि उनके शुरुआती शासन के समय मुख्य सचिव रहे ओमेश सहगल का कहना था कि रिंग रेलवे ही दिल्ली में कम लागत में सबसे ज्यादा उपयोगी सार्वजनिक परविहन प्रणाली बन सकता है।
उन्होंने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार के रेल मंत्री नीतीश कुमार ने दिल्ली रिंग रेलवे को बेहतर करने के लिए एक अध्ययन करवाने के लिए एक करोड़ रूपए मंजूर किए थे लेकिन रेल मंत्रालय ने उस पर आगे कोई कारवाई नहीं की। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को ठीक किए बिना दिल्ली की सड़कों से निजी वाहनों को कम करने के अनोखे प्रयोग में लगी आम आदमी पार्टी(आप) की सरकार न तो वायदे के मुताबिक 11 हजार बसों को सड़कों पर ला पाई और न ही रिंग रेलवे को कारगर बनाने के लिए कोई प्रयास करने के संकेत दिए हैं। जबकि 2005 में पहले राईड्स ने दिल्ली सरकार के कहने पर एक सर्वे किया था जिसमें कहा गया था कि दिल्ली की सार्वजनिक परविहन प्रणाली तभी कारगर होगी जब एक से अधिक तरह के सार्वजनिक परिवहन प्रणाली चलाए जाएं। इसके लिए उन्होंने 575 किलोमीटर लंबे 46 कोरिडोर बनाने का सुझाव दिया था।
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हालात यह हैं कि न तो 1483 वर्ग किलोमीटर की दिल्ली का भविष्य में कोई विस्तार होता दिख रहा है और न ही करीब 33 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों को बढ़ने के आसार दिखते हैं। उसमें मेट्रो रेल तो तय से इलाकों में चलने लगी और सफल साबित हो रही है लेकिन उसकी एक सीमा है। मेट्रो बनाना मंहगा होने,किराया ज्यादा होने और उसे दिल्ली या एनसीआर में हर इलाके में न पहुंचा पाने के चलते वह बस जैसा मुख्य परिवहन का साधन कभी भी नहीं बन सकता है।
दिल्ली में एसडीएम से मुख्य सचिव तक पदों पर काम करने वाले ओमेश सहगल सालों से यही कहते हैं कि रिंग रेलवे के 21 स्टेशनों और फरीदाबाद,बल्लभगढ़, पलवल, गाजियाबाद और दादरी तक के कुल 50 स्टेशनों को फिर से ठीक करके उन्हें सही तरीके से जोड़ा जाए और उसे जगह-जगह मेट्रो और बस सेवा से इंटर लिंक कर दिया जाए तो 80 फीसद से ज्यादा लोगों को बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली मिलने लगेगे। वे मेट्रो और रिंग रेलवे का तुलना करके बताते हैं कि रिंग रेलवे की पूरी परियोजना कम लागत में पूरी हो सकती है जबकि मेट्रो का औसत प्रति किलोमीटर का खर्चा करीब तीन सौ करोड़ रूपए आने लगा है। अगर इसे ठीक से लागू किया गया तो वह बस जितनी सस्ती और सर्वसुलभ हो जाएगी।
कभी दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करने वालों में बस के सवारियों का अनुपात 60 फीसद था। वह अब घटकर 40 फीसद रह गया है अगर यही हाल रहा तो यह अनुपात 2020 में घटकर 20 फीसद रह जाने का खतरा है। इसीलिए जिस तरह से जरूरी बसों की संख्या बढ़ाने और उन्हें सड़कों पर सही गति से चलवाने का लिए बीआरटी कोरिडोर बनाने की है उसी तरह रिंग रेलवे को व्यवस्थित करके चलवाने की है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी कहती हैं कि अगर केन्द्र सरकार रिंग रेलवे को उपयोगी बनाने को तैयार है तो वास्तव में यह मेट्रो जैसा उपयोगी परिवहन प्रणाली बन जाएगा। अगर यह व्यवस्था हो जाए कि उसे मेट्रो और डीटीसी से जोड़ दिया जाए तो इसकी उपयोगिता बढ़ जाएगी। वे भी मानती हैं कि सड़कों पर से वाहनों की भीड़ जबरन नहीं हटाई जा सकती है लोगों को सार्वजनिक परिवहन का बेहतर विकल्प देकर ही ऐसा किया जा सकता है।