दिल्ली-एनसीआर में एक बार फिर जहरीली हवा ने अपनी दस्तक दे दी है। बारिश के बाद जो मौसम अचानक से सुहावना लगने लगा था, अब फिर उस मौसम में काले धुएं की एक मोटी परत चढ़ चुकी है। आलम ये चल रहा है कि सांस लेना मुश्किल है, आंखों में जलन है और लगातार आ रही खांसी है। अब समाज का एक धड़ा, राजनीति का बड़ा तबका इस दमघोंटू हवा के लिए दिल्ली में हुई आतिशबाजी को जिम्मेदार मान रहा है। उसकी नजर में जो पटाखे फोड़े गए, उसने ही राजधानी को फिर धुंआ-धुंआ करने का काम किया है।
आंकड़ों में छिपी सच्चाई जानिए
अब पटाखों से धुंआ होता है, प्रदूषण फैलता है, इस तथ्य को कोई नहीं नकार सकता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये पटाखे इतना प्रदूषण कर रहे हैं कि इन्हें पूरी तरह दिल्ली-एनसीआर की दमघोंटू हवा के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाए? अब इस सवाल का जवाब निजी विचारों से ऊपर उठकर आंकड़ों के जरिए समझना ज्यादा जरूरी है। इसका सबसे सटीक आंकड़ा दिल्ली का वो AQI है जो बताता है कि पर्यावरण में कितना प्रदूषण दर्ज किया जा रहा है।
दिवाली के बाद दोपहर में क्यों प्रदूषण?
दिल्ली में इस बार कुछ इलाकों में दिवाली की आतिशबाजी के बाद AQI 999 तक जा पहुंचा था, लेकिन जितनी तेजी से ये 1000 के करीब पहुंचा, सोमवार शाम तक वो 200 के करीब भी पहुंच गया। यानी कि स्थिति नियंत्रण में रही और जैसा अनुमान लगाया जा रहा था, हवा उतनी खराब नहीं हुई। लेकिन फिर भी सोमवार की सुबह जितनी धुंध नहीं दिखी, उससे ज्यादा दोपहर के समय आसमान में देखी गई। इस वजह से ये सवाल उठना लाजिमी हो जाता है कि क्या सिर्फ पटाखों की वजह से दिल्ली की हवा दमघोंटू हुई? सोमवार सुबह या दोपहर में तो कहीं पटाखे नहीं जले, ऐसे में धुंध का क्या कारण रहा?
आतिशबाजी या सड़क पर चल रही गाड़ियां?
CPCB के आंकड़े बताते हैं कि दिवाली के अगले दिन यानी कि सोमवार सुबह को दिल्ली का AQI 300 के आसपास रहा। कुछ जगहों पर तो इससे भी कम दर्ज किया गया। लेकिन जैसे ही दिन ढलना शुरू हुआ, प्रदूषण बढ़ गया। जानकार मानते हैं कि वाहनों से निकलने वाले धुएं ने इस प्रदूषण को ज्यादा बढ़ाने का काम किया है। इसके ऊपर हवा की धीमी रफ्तार ने भी मौसम के मिजाज को कुछ बिगाड़ा है।
दूसरी जगह पटाखे फटे, प्रदूषण क्यों नहीं बढ़ा?
बड़ी बात ये भी है कि दिल्ली-मुंबई को अगर दरकिनार कर दिया जाए तो कई बड़े शहरों में पटाखे जलने के बाद भी वैसा प्रदूषण नहीं फैला जैसा राजधानी में देखने को मिला। उदाहरण के लिए नवाबों की नगरी लखनऊ में पटाखे जलाने के बावजूद भी AQI 100 से 290 के बीच में दर्ज किया गया। वहीं पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में प्रदूषण का स्तर 192 दर्जा रहा। ये समझना जरूरी है कि दिवाली की रात इन दोनों ही जगहों पर जमकर आतिशबाजी हुई थी। ऐसे में दिल्ली की हालत खस्ता और बाकी जगहों पर स्थिति सामान्य सवाल उठाती है।
गोपाल राय का आरोप कितना सही?
वैसे इस बार दिवाली पर आतिशबाजी के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने दो टूक इस प्रदूषण के लिए बीजेपी की सरकारों जिम्मेदार बता दिया है। यहां तक कहा गया है कि दिल्ली में लाकर पटाखे फोड़े गए हैं। अब उनके इस बयान के बीच एक आंकड़ा ये भी है कि दिवाली के अगले दिन दर्ज किया गया प्रदूषण पिछले पांच सालों में सबसे कम रहा है। इसे इस टेबल के जरिए आसानी से समझा जा सकता है-
साल | दिवाली से पहले प्रदूषण | दिवाली वाले दिन प्रदूषण | दिवाली के अगले दिन प्रदूषण |
2018 | 338 | 281 | 390 |
2019 | 287 | 337 | 368 |
2020 | 339 | 414 | 435 |
2021 | 314 | 382 | 462 |
2022 | 259 | 312 | 303 |
2023 | 224 | 202 | 283 |
प्रदूषण का असल कारण, आंकड़े जारी
अब पटाखों को लेकर सियासत तो हो रही है, लेकिन राजधानी को धुंआ करने में जो दूसरे पहलू जिम्मेदार हैं, उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। ये नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली में 20 फीसदी प्रदूषण के लिए तो पराली जिम्मेदार रहती है, गाड़ियों की वजह से 30 फीसदी प्रदूषण फैलता है। इसी तरह फैक्ट्रियों की वजह से 15 प्रतिशत तक हवा खराब होती है और कंस्ट्रक्शन के कारण 20 फीसदी पॉल्यूशन फैलता है। अब इन सभी का अगर टोटल किया जाए तो ये राजधानी में प्रदूषण का 85 फीसदी है। ऐसे में अकेले पटाखों को जिम्मेदार बता देना, दूसरे राज्यों पर आरोप मढ़ देना कहां तक जायज है?