उच्चतम न्यायालय ने हाल में दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को सड़कों और गलियों से हटाकर आश्रय स्थलों में भेजने के निर्देश दिए हैं। इसका कारण लोगों पर कुत्तों के बढ़ते हमले हैं। यह सच है कि कुछ स्थानों पर कुत्तों के समूह बच्चों को निशाना बनाते हैं। यहां तक कि गलियों में घूम रहे कुत्ते वयस्क और बुजुर्गों पर भी हमला कर उन्हें घायल कर देते हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए निश्चित रूप से प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। यह भी सही है कि भारत में कुत्तों के काटने से रेबीज फैलने के आंकड़े वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक हैं। दुनिया भर में कुत्तों से फैलने वाले रेबीज के कारण हर वर्ष अनुमानित 59,000 लोगों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, रेबीज के कारण विश्व भर में होने वाली मौतों में से 36 फीसद भारत में होती हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र की बात करें, तो रेबीज के कारण होने वाली 65 फीसद मौतें भारत में होती हैं। यानी भारत में स्थिति चिंताजनक है।

दिल्ली में कुत्ते के काटने से एक मासूम बच्चे की जान चली गई

सड़कों और गली-मोहल्लों में कुत्तों के हमलों की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं। हाल में दिल्ली में कुत्ते के काटने से एक मासूम बच्चे की जान चली गई। यह बहुत दुखद और भयानक स्थिति है। पहले भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं और इसी के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखने का निर्देश दिया है। मगर, सवाल यह है कि क्या कुत्तों को सड़क, गली-मोहल्ले से हटा देना ही एकमात्र विकल्प है? न्यायालय का फैसला जनहित में है, मगर एक पक्ष पशु प्रेमियों का भी है, जो कुछ अलग मत रखते हैं।

पशु क्रूरता के विरोध में काम करने वाले लोगों के भी अपने मत हैं। सभी पक्षों के मत पर गौर किया जाए तो एक नया नजरिया सामने आता है।

सबसे पहले ऐसे स्थानों को चिह्नित किया जाना चाहिए, जहां इंसानों पर कुत्ते हमला कर रहे हैं। ऐसे कुत्तों को बिना देर किए आश्रय गृह में भेजा जाना चाहिए और उनका इलाज भी करवाया जाना चाहिए। दूसरा, गली के कुत्तों का बंध्याकरण किया जाए और इनके लिए टीकाकरण भी सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। इस तरह से इनकी आबादी पर तो रोक लगेगी ही, साथ ही इनके बीमार होने या इंसानों को नुकसान पहुंचाने की समस्या को भी सुलझाया जा सकेगा। इसके अलावा, आश्रय स्थलों की हालत में सुधार करना भी एक अहम पहलू है।

दिल्ली में 10 लाख आवारा कुत्तों पर लगाम लगाना बड़ी चुनौती, संसाधनों के अभाव में टीकाकरण और नसबंदी में आ रही समस्या

यहां यह भी याद रखा जाना जरूरी है कि आजादी हर प्राणी के लिए अधिकार की श्रेणी में आती है। आश्रय स्थल एक अस्थायी पनाहगाह या शरणस्थली होते हैं। ये निवास स्थान नहीं होते और अगर वहां जरूरी सुविधाओं का अभाव हो तो यह किसी प्राणी की आजादी को छीनने जैसा है। छोटी सी जगह में बड़ी संख्या में कुत्तों को लंबे समय तक रखना पशु क्रूरता ही कहलाएगा। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के लिए सरकारी आश्रय स्थल है ही नहीं। यदि इन बेजुबान प्राणियों को सड़कों और मोहल्लों से हटाया जाना ही एकमात्र उपाय है, तो इनके लिए सुरक्षित स्थान सुनिश्चित करना सबसे पहली आवश्यकता है।

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जिस स्थान पर किसी कुत्ते का जन्म होता है, वह गली-मोहल्ला उसकी रिहाइश होता है। उसे पालतू बनाने अथवा गोद लिए जाने पर स्थान परिवर्तन किया जा सकता है। एक सवाल यह भी है कि अगर दिल्ली-एनसीआर से कुत्तों को एक बार हटा भी दिया जाए तो इस बात की क्या गारंटी है कि भविष्य में आसपास के इलाकों से अन्य कुत्ते यहां नहीं आएंगे?

अगर बाहरी इलाकों से कुत्ते यहां आ जाते हैं, तब क्या यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती रहेगी? हमें इस बात को भी याद रखना होगा कि गलियों में रहने वाले कुत्ते दरअसल हमारे सफाई कर्मचारी भी हैं, जो बिना मोल के हमारी सुविधा का जरिया बनते हैं। इनकी अनुपस्थिति में जहां-तहां फेंक दिए गए भोजन के सड़ने से बीमारियां फैलने का जोखिम बढ़ सकता है।

आवारा कुत्तों पर छिड़ी नई बहस, इंसानी जान और बेजुबानों के प्रति सहानुभूति में कैसे हो तालमेल?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुत्ते हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का जरूरी अंग हैं। जिस जीव की आवश्यकता नहीं होती, प्रकृति उसे स्वयं नष्ट कर देती है। कुत्ते की तरह बिल्ली, बंदर आदि से भी रेबीज का खतरा उतना ही है।

बंदरों द्वारा के इंसान को काट लेने की घटनाएं भी अकसर सामने आती रहती हैं। ऐसे में बंदरों को भी पकड़ कर आश्रय स्थलों पर रखा जाना चाहिए। इसी तरह गाय पालक अपनी गायों को दुधारू नहीं रहने की स्थिति में सड़कों पर छोड़ देते हैं। इन पशुओं के कारण आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। कभी-कभी ये पशु भी इंसानों पर हमला कर देते हैं। क्या उन्हें भी आश्रय गृह में भेजा जाना सुनिश्चित किया जाएगा?

बेजुबान प्राणी अपने हक की आवाज नहीं उठा सकते, इसीलिए इंसानों को इनके प्रति थोड़ी संवेदना दर्शानी होगी। याद रखा जाना चाहिए कि कुत्ते, इंसान के सबसे अच्छे और विश्वासपात्र मित्र होते हैं। ये अपनी जान पर खेलकर वफादारी निभाते हैं। कुत्ते हमारे लिए सुरक्षा कर्मचारी की भी भूमिका निभाते हैं। कहीं भी बचा हुआ भोजन फेंक कर गंदगी का माहौल बनाने वाले यह समझते होंगे कि कुत्ते कैसे उन्हें खाकर थोड़ी सफाई का वाहक बनते हैं। देश के ज्यादातर इलाकों में स्थित सरकारी अस्पतालों का हाल देखा जा सकता है।

कई बार कतार में अपनी बारी की प्रतीक्षा में मरीज दम तोड़ देते हैं। अगर इंसान इस तरह का कुप्रबंधन झेलने को मजबूर है, तो सोचने की बात है कि मूक जानवर का क्या हाल होगा।

कुत्ते में समझदारी, खतरा भांपने के अद्भुत गुण और अनुशासन पालन के गुर को देखते हुए इन्हें सुरक्षा बलों में शामिल किया गया है। जहां-जहां इंसान और तकनीक काम नहीं कर पाती, वहां कुत्तों की मदद ली जाती है। सेना और पुलिस के लिए कुत्ते जांच एवं रक्षा प्रणाली में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में यह मान लेना भी सही नहीं होगा कि सड़कों पर टहलने वाले तमाम कुत्ते खतरे का सबब बन गए हैं। जाहिर है, सबसे आसान उपाय की ओर कदम बढ़ाने से बेहतर होगा कि दूरदृष्टि से सोच-विचार कर असरदार काम किया जाए।

एक और अहम बात है कि पशु प्रेमियों और पशु कल्याण संस्थाओं को भी सही मायने में अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। सिर्फ सवाल उठाने से मसला हल नहीं हो जाता, सरकार के साथ-साथ पशु कल्याण संगठनों और आम नागरिकों को सामूहिक रूप से बेजुबान प्राणियों की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति ध्यान देना होगा। अगर कुत्तों या अन्य पशु-पक्षियों की वजह से कहीं कोई दिक्कतें पैदा हो रही हैं तो उन्हें कानून और संवेदनशीलता के दायरे में सुलझाने का मिलकर प्रयास करना चाहिए।

हर बात को सरकारों के ऊपर छोड़ देने की मानसिकता से निकलना चाहिए। विदेशी नस्ल का कुत्ता पालने के बजाय हम देसी नस्ल के कुत्तों को अपने घर ला सकते हैं, जो हमारे देश की गर्म-शुष्क और ठंड झेलने में सक्षम हैं। जो पशु-पक्षी लोगों के बीच और आसपास रहते हैं, वे वास्तव में हमारे समाज का ही हिस्सा हैं। ऐसे में इन बेजुबान प्राणियों के प्रति हमारी एक सामाजिक जिम्मेदारी भी बनती है।