अपनी नेतागिरी
भाजपा में नए अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने अपने जिलों के चेहरों की घोषणा कर दी है। इसके बाद से ही दवाब की राजनीति का दौर भाजपा में शुरू हुआ है। इसका असर बीते दिनों पार्टी कार्यालय के बाहर भी देखने को मिला। जहां पार्टी के फैसले से नाराज होकर लोगों ने पार्टी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया और नाराजगी में इस्तीफे तक सौंपने की चेतावनी दी। हालांकि बाद में सामने आया कि इस दबाव की राजनीति में लोग केवल नेतागिरी ही चमकाने के लिए पहुंचे थे। पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता ने पार्टी छोड़ने की कोई चिट्ठी पार्टी को नहीं दी थी।

सब चलता है
राजनीति की मौजूदा गति चाहे जो हो लेकिन संवैधानिक पद की अपनी एक गरिमा है और उस पद पर बैठे व्यक्ति को पार्टी लाइन से उपर उठकर रहना चाहिए। बीते दिनों एक प्रदर्शन को कवर कर रहे पत्रकारों में यह कानाफुसी तब होती दिखी जब मौके पर प्रदर्शनकारियों के बीच दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष दिखे। दरअसल निगम के सफाई कर्मचारियों के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की ओर से भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन आहुत था। पूर्वी दिल्ली के मेयर के खिलाफ चल रही नारेबाजी में दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष मौजूद थे। हद तो तब हो गई जब वे मेयर का पुतला फुंकने भी पहुंचे। बस क्या था, जिसको मौका लगा बड़बड़ाने लगा। मीडिया के एक साथी ने कहा-भई, यह पार्टी का काम और भी लोग कर सकते थे। कम से कम अध्यक्ष महोदय को अपने संवैधानिक पद का ख्याल तो रखना ही चाहिए था। भले ही वे ‘आप’ के नेता हैं, विधायक भी हैं लेकिन अब तो वे सदन में सबके अध्यक्ष महोदय हैं। दूसरे ने कहा-राजनीति है, सब चलता है।

तोंद से रिश्ता
दिल्ली पुलिस में अधिकारियों को कब तोंद आ जाए पता ही नहीं चलता। हाल में डिपुटेशन पर नगर निगम में उपायुक्त के पद पर तैनात एक दानिक्स अधिकारी सामान्य कद काठी के दिखते थे। लेकिन जैसे ही वे दिल्ली पुलिस में वापस लौटे वैसे ही उनकी तोंद दिखने लगी। बेदिल ने जब इसकी तहकीकात की तो पता चला कि निगम और दिल्ली पुलिस में यही तो अंतर है। वैसे आपको बता दें कि कुछ साल पहले पुलिस के स्थापना दिवस पर तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने हंसते हुए कहा भी था कि पुलिस का पेट मोटा होना ठीक नहीं होता है।

असली मुद्दा गायब
कोरोना के दौरान पूरे देश के साथ दिल्ली की सफाई के मामले में रैंकिंग की घोषणा हुई तो नगर निगम औंधे मुंह गिर गया। फिर शुरू हुआ सरकार और निगम में आरोप-प्रत्यारोप। निगम का आरोप है कि सरकार से फंड नहीं मिल रहा इसलिए सफाई व्यवस्था भी चरमरा गई, जबकि सरकार का आरोप है कि भाजपा निगम को चलाने में असमर्थ है और अधिकारियों से अलग चुने गए नेता अपने हिसाब से निगम को चलाना चाहते हैं। लिहाजा स्थिति खराब हो गई है और दिल्ली गंदगी का शहर के रूप में जाने जाना लगा है। इस आरोप प्रत्यारोप में रैंकिंग का मुद्दा गायब हो गया है।

दलालों की मौज
कोरोना काल में जहां सरकारी कार्यालयों में संक्रमण से बचाव के लिए आम आदमी का प्रवेश प्रतिबंधित कर आॅनलाइन दस्तावेजों को भेजने का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। वहीं, नोएडा प्राधिकरण के मुख्य प्रशासनिक कार्यालय में दलालों की पूरी मौज चल रही है। रोजाना दिन भर प्राधिकरण में मौजूद रहकर दलाली करने वाले अघोषित रूप से खुद को प्राधिकरण कर्मी बताकर जब मर्जी गेट से अंदर और बाहर आते-जाते रहते हैं। प्रवेश द्वार पर खड़े होने वाले सुरक्षाकर्मी इन्हें जाने से नहीं रोकते हैं। नतीजतन वास्तविक आबंटी या काम कराने वाले को कार्यालय में जाने से रोक का भरपूर लाभ ऐसे दलाल उठा रहे हैं। लगता है जैसे किसी की शह पर यह गोरखधंधा चल रहा है।

हाय रे मास्क
मास्क आजकल फायदे के साथ पुलिस के लिए घाटे का सौदा बनता जा रहा है। कोरोना महामारी की वजह से मास्क पहनना सभी के लिए अनिवार्य है। पर यही मास्क असमाजिक तत्वों के लिए सुनहरा मौका लेकर आया है। खासकर चोरी और सेंधमारी की वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों के लिए यह पहचान छुपाने का एक आसान साधन बन गया है। पहले जहां चोरों को अपनी पहचान छुपाने के लिए नकाब पहनना पड़ता था। वहीं, अब वे मास्क लगाकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। हालात ये हैं कि सीसीटीवी फुटेज में आने के बाद भी पुलिसकर्मियों के लिए चोरों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण बन गया है। बीते दिनों कई ऐसे मामले सामने आए, जिसे सुलझाने के लिए पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।
-बेदिल