स्मृति ईरानी ने साल 1991 में दसवीं और सा 1993 में 12वीं परीक्षा पास की थी या नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीएसई को आरटीआई के तहत यह जानकारी देने के निर्देश देने वाले आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया। यह फैसला सुनाते वक्त न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि विवादित आदेश में सीआईसी का पूरा दृष्टिकोण पूरी तरह से गलत था।
उन्होंने अपने फैसले में कहा, “यह निष्कर्ष कि किसी व्यक्ति विशेष की डिग्री/अंक/परिणाम से संबंधित जानकारी ‘सार्वजनिक सूचना’ की प्रकृति की है, यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, भारत के सर्वोच्च न्यायालय बनाम सुभाष चंद्र अग्रवाल मामले में दिए गए निर्णय का प्रत्यक्ष और पूर्णतः उल्लंघन है।”
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि उनकी शैक्षणिक योग्यता किसी सार्वजनिक पद पर आसीन होने या आधिकारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए किसी वैधानिक आवश्यकता वाली प्रकृति की नहीं हैं। परिणामस्वरूप, अदालत ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की वह याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें सीआईसी के 17 जनवरी, 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
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आदेश में उसे “संबंधित अभिलेखों के निरीक्षण की सुविधा प्रदान करने और अपीलकर्ता द्वारा चुने गए दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां निःशुल्क प्रदान करने का निर्देश दिया गया था, सिवाय प्रवेश पत्र और अंकपत्र के व्यक्तिगत विवरण के…।”
CIC के आदेश को RTI के प्रावधानों से बाहर बताया
सीआईसी के आदेशों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के प्रावधानों के दायरे से बाहर बताया गया। न्यायमूर्ति दत्ता ने अपने 175 पृष्ठों के फैसले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री के मामले पर भी फैसला सुनाया। प्रधानमंत्री के मामले में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनसे उनकी स्नातक की डिग्री से संबंधित विवरण का खुलासा करने को कहा गया था।
अदालत ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री मामले में सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया और इसे “व्यक्तिगत जानकारी” माना और इसमें किसी भी “अंतर्निहित सार्वजनिक हित” की संभावना को खारिज कर दिया।
ईरानी के मामले में भी हाईकोर्ट ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के माध्यम से मांगी गई जानकारी के संबंध में “कोई अंतर्निहित जनहित” नहीं पाया। अदालत ने कहा, “संबंधित शैक्षिक योग्यताएं किसी सार्वजनिक पद पर आसीन होने या आधिकारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए किसी वैधानिक आवश्यकता की प्रकृति की नहीं हैं।” (इनपुट – भाषा)