दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में इंडियन आर्मी को एक रिटायर्ड ऑफिसर को प्रमोशन देने पर विचार करने को कहा। अदालत ने 1 जुलाई को भारतीय सेना को आदेश दिया कि वह रिटायर्ड मेजर जनरल की लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नति पर पुनर्विचार करे। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने निर्देश दिया है कि 31 जनवरी, 2024 को सेवानिवृत्त होने वाले मेजर जनरल एच धर्मराजन को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रमोशन देने पर पुनर्विचार किया जाएगा। ऑफिसर के लैपटॉप से गोपनीय और ऑपरेशन संबंधी जानकारी मिस होने के कारण उन्हें प्रमोशन देने से मना कर दिया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ” याचिकाकर्ता जो अब सेवानिवृत्त हो चुका है, उसे अगर लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रमोट किए जाने के योग्य पाया जाता है तो प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे उसे नोशनल प्रमोशन (Notional Promotion) और रैंक प्रदान करें और नोशनल सीनियोरिटि (Notional Seniority) के आधार पर पेंशन के लिए उसके वेतन का पुनर्निर्धारण करें, हालांकि वेतन का कोई बकाया नहीं होगा।”
SSB ने रीप्रूफ के आधार पर प्रमोशन से इनकार किया
पीठ ने अपने आदेश में पाया कि सेना विशेष चयन बोर्ड (SSB), जिसने लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रमोशन के लिए अधिकारी पर विचार किया था, ने उसे दिए गए रीप्रूफ को ध्यान में रखने में गलती की थी। पीठ ने कहा, “रिकॉर्ड करने योग्य न होने के कारण रीप्रूफ को एसएसबी के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना था। चयन बोर्ड को केवल उसके समक्ष प्रस्तुत सामग्री पर ही विचार करना चाहिए था न कि रीप्रूफ का रिकॉर्ड मंगवाना चाहिए था, जो नीति के अनुसार उसके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाना था। केवल रीप्रूफ के आधार पर प्रमोशन से इनकार करना अनुचित और मनमाना है।”
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मेजर जनरल के आधिकारिक लैपटॉप से साइबर चोरी होने का आरोप
मेजर जनरल धर्मराजन को 20 दिसंबर, 1986 को 3 इंजीनियर रेजिमेंट में कमीशन मिला था। उन्होंने दिसंबर 2018 में जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) के रूप में जम्मू-कश्मीर में 25 इन्फैंट्री डिवीजन की कमान संभाली। जून 2020 में उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर पदोन्नति के लिए विचार किया जाना था। अधिकारी को 25 जुलाई, 2019 को एक कारण बताओ नोटिस मिला, जिसमें साइबर सुरक्षा नीति के उल्लंघन और उसके परिणामस्वरूप उनके आधिकारिक लैपटॉप से साइबर चोरी होने का आरोप लगाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप गोपनीय डेटा का नुकसान हुआ।
कारण बताओ नोटिस में कहा गया है कि मेजर जनरल सैन्य संचालन महानिदेशालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने में विफल रहे और उन्होंने अपने कार्यालय में स्थापित आधिकारिक लैपटॉप को भारत ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशंस (BOSS) के बजाय विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करना जारी रखने की अनुमति दी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने SSB की कार्यवाही पर उठाए सवाल
इसमें आगे कहा गया है कि 21 फरवरी, 2019 को उन्होंने एक अवांछित फ़िशिंग ईमेल, ‘ईओएमए पोस्ट रिपब्लिक डे गैलेंट्री अवार्ड्स 2019’ खोला, जो उनके पर्सनल ईमेल पर एक संदिग्ध ईमेल पहचान से प्राप्त हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप उनके लैपटॉप पर मैलवेयर इंस्टॉल हो गया और फंक्शनल डीटेल्स का नुकसान हुआ। सक्षम प्राधिकारी ने जनरल के उत्तर पर विचार करते हुए उन्हें कुछ मामूली प्रक्रियात्मक मुद्दों के लिए दोषी ठहराया और सभी गंभीर आरोपों को खारिज करते हुए परिणामस्वरूप, 17 सितंबर 2019 को एक पत्र में रीप्रूफ के रूप में उन्हें दिया।
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हाई कोर्ट ने कहा कि रीप्रूफ एक चेतावनी है, जिसे संबंधित अधिकारी के सेवा दस्तावेजों में दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “हम यह भी ध्यान दें कि फटकार और निंदा अनुशासनात्मक उपाय हैं, जिनका उपयोग कर्मियों की सेवा में मामूली कदाचार या कमियों को दूर करने के लिए किया जाता है। ये सक्षम प्राधिकारी द्वारा दोषी अधिकारी को अस्वीकृति या सुधार के क्षेत्रों के बारे में सूचित करने का एक तरीका है। रीप्रूफ का आशय स्पष्ट है कि यह किसी मामूली प्रकृति की कार्रवाई, मामूली लापरवाही या वास्तविक गलती के लिए जारी किया जाता है, जिसके लिए किसी अन्य जांच की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार, यह किसी अधिकारी के सर्विस डोक्यूमेंट में नहीं दिखाया जाता है।
अदालत ने आर्मी से रिटायर्ड मेजर जनरल को प्रमोट करने पर पुनर्विचार करने कहा
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि एसएसबी कार्यवाही के मूल रिकॉर्ड देखने से यह साफ है कि याचिकाकर्ता की योग्यता को मुख्य रूप से कम कर दिया गया था क्योंकि बोर्ड के सदस्यों ने उस कारण या कारण के पीछे जाना जारी रखा जिसके लिए उसे रीप्रूफ दिया गया था जबकि उन्होंने लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता की समग्र प्रोफ़ाइल पर विचार किया था। पढ़ें- देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स
