दिल्ली सरकार द्वारा घर लौटने के इच्छुक प्रवासी मजदूरों के रजिस्ट्रेशन के लिए जो लिंक दिया गया है, वह खुल ही नहीं रहा है। 9 मई को जब जनसत्ता.कॉम ने इस बारे में जानकारी हासिल करनी चाही तो बिहार सरकार के जरिये पता चला कि ऐसा किसी तकनीकी दिक्कत के चलते है, जिसे दूर करने पर काम चल रहा है। यह भी बताया गया कि शनिवार रात तक पोर्टल काम करने लगेगा। लेकिन, रविवार सुबह जब हमने चेक किया तो भी पोर्टल काम नहीं ही कर रहा था। जबकि, विदेश में फंसे जो दिल्लीवासी भारत लौटना चाह रहे हैं, उनके रजिस्ट्रेशन के लिए जो लिंक दिया गया है, वह सही काम कर रहा है।
रजिस्ट्रेशन में आने वाली मुश्किल और स्थानीय प्रशासन से मदद नहीं मिलने की कई मजदूरों की शिकायत के बाद शनिवार को पूरे दिन हमने कोशिश की कि दिल्ली में फंसे बिहार के मजदूरों के लिए बिहार सरकार क्या कर रही है, इस पर जानकारी ली जाए। बिहार सरकार द्वारा नोडल अफसर नियुक्त किए गए प्रत्यय अमृत के दफ्तर कई बार फोन करने के बावजूद उनसे बात नहीं हो पाई। हर बार यही कहा गया, ‘साहब मीटिंग में हैं।’ संदेश छोड़ने के बावजूद उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

बता दें कि देश के करोड़ों प्रवासी मजदूर पहले लॉकडाउन के बाद से ही परेशान है। उनकी हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। दिहाड़ी मजदूरों का तो काम बंद है है, मासिक वेतन पर काम करने वाले लाखों मजदूरों को भी मार्च की पूरी तंख्वाह नहीं दी गई। अप्रैल का वेतन मिलने की तो कोई उम्मीद ही नहीं है। ऐसे में मजदूर किसी तरह अपने गाँव वापस लौटना चाह रहे हैं, लेकिन इसका साधन नहीं मिल रह।
कोई साधन नहीं देख लाखों की संख्या में मजदूर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर घर पहुंच रहे हैं। इस क्रम में करीब दो दर्जन मजदूरों की जान भी जा चुकी है। इसी हफ्ते महाराष्ट्र के औरंगाबाद में 16 मजदूर मालगाड़ी की चपेट में आकर जान गंवा बैठे थे। 10 मई को भी मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक ट्रक के पलट जाने से उसमें सवार 5 मजदूरों की मौत हो गई। कई मजदूर चलते-चलते रास्ते में ही दम तोड़ चुके हैं।
मजदूरों का दर्द जब मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये लगातार दुनिया के सामने आने लगा तब नेताओं की बयानबाजी भी तेज होती गई और अंततः उनके लिए विशेष श्रमिक ट्रेन चलाने की भी घोषणा हुई। लेकिन, इस पर भी राजनीति होती रही। जाने वाले मजदूरों की संख्या लाखों में है, लेकिन ट्रेनें दर्जनों में ही चल रही हैं।
चप्पल घिस गई तो पैर में बांध ली पानी की बोतल। मजदूर बेइंतहा दर्द झेलकर घर जा रहे हैं। फोटो सोर्स – ट्विटरव्यवस्था के मुताबिक लौटने के इच्छुक मजदूर ऑनलाइन संबन्धित सरकार के यहाँ अपना नाम पंजीकृत कराएंगे। सरकार यह लिस्ट रेलवे को देगी और इसी के आधार पर रेलवे ट्रेन चलाएगा। एक ट्रेन में 1000-1200 यात्री बैठेंगे और करीब 90 फीसदी सीट भरने पर ही ट्रेन चलेगी। किराया 85 फीसदी केंद्र सरकार और 15 प्रतिशत राज्य सरकार (जहां का मजदूर है) देगी। इसे लेकर भी कई राज्य सरकारों के द्वारा अलग-अलग तरह की राजनीति देखने को मिली।

मध्य प्रदेश के सेंधवा के एसडीपीओ तरुनेन्द्र सिंह बघेल ने अङ्ग्रेज़ी अखबार ‘द हिन्दू’ को बताया है कि बीती 22 मार्च से अब तक अकेले उनके इलाके की सीमा को ही 10 लाख मजदूरों ने पार किया है। ऐसे में देशभर में पलायन कर रहे मजदूरों की संख्या का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
ट्रेनों की कम संख्या, रजिस्ट्रेशन की मुश्किलें और राशन-पानी का अभाव, पैसे खत्म हो जाना जैसी समस्याओं के चलते लाखों की तादाद में मजदूर अभी भी पैदल घर वापसी के लिए मजबूर हैं। चिलचिलाती धूप में तपती सड़क पर भूखे-प्यासे मजदूरों को जब पुलिस पकड़ने और भागने लगी तब वे रेल पटरियों के रास्ते पैदल चलने लगे। अब पुलिस उन्हें वहाँ भी रोक रही, लेकिन सरकार अभी भी उनका दुख-दर्द दूर करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है।