राष्ट्रीय हरित पंचाट(एनजीटी) की प्रदूषण फैलाने वाले ट्रकों पर सख्ती से वाहन चालक और दिल्ली सरकार सकते में है। एनजीटी ने हर रोज दिल्ली में आने वाले ट्रकों से पर्यावरण शुल्क बसूलने के निर्देश दिए हैं। यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की टिप्पणी कि दिल्ली में प्रदूषण के चलते उनका पोता भी मास्क लगाने पर मजबूर हुआ है, से मामला ज्यादा गंभीर हो गया।
सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई चल रही है और सोमवार को इस पर आगे सुनवाई होगी।ट्रांसपोर्टर उन पर सख्ती होने पर बार-बार हड़ताल पर जा रहे हैं, वे अपनी रोजी-रोटी के लिए अदालत में गुहार लगा रहे हैं। एनजीटी पहले ही दस साल पुराने डीजल वाहनों के परिचालन पर रोक लगाने के आदेश दे चुकि है। ठीक इसी तरह की अफरा-तफरी मार्च 2001 में दिखी थी जब सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2001 से दिल्ली में केवल सीएनजी से चलने वाले बसों को इजाजत देने के आदेश दिए थे। हालात ऐसे हो गए थे कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ठप्प सी होती देख तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने हाथ खड़े कर दिए थे। पांच अप्रैल 2002 के अदालत के सख्त आदेश के बाद केन्द्रऔर राज्य सरकार सक्रिय हुए लेकिन सभी व्यवसायिक वाहनों को सीएनजी पर लाने का काम तो कई सालों में पूरा हो पाया।
यह हालात न तो एक दिन में आए हैं और न ही पहली बार अदालत ने इस तरह का आदेश दिया है। अदालत के वाहन के प्रदूषणों के बारे में अगाह करने से पहले ही दिल्ली से बाहर पेरिफेरियल सड़क बनाने की घोषणा हुई थी। तब से लगातार हर केन्द्र सरकार इसकी घोषमा करती है और दिल्ली सरकार इसके लिए आग्रह करती है। हर रोज हजारों ट्रक दिल्ली की सीमा में केवल इसलिए आ जाते हैं कि उन्हें एक पड़ोसी राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए दिल्ली से बाहर रास्ता नहीं है। 1993 में दिल्ली में बनी भाजपा सरकार ने इसका वायदा किया था और 1996 में दिल्ली के मुख्यमंत्री साहिब सिंह ने इसकी शुरूवात की लेकिन सड़क बनने से पहले ही उसका नक्शा लीक हो गया और सड़क के आसपास की जमीन खरीदने के लिए बिल्डरों में होड़ लग गई। अब इसकी शुरूवात हो चुकि है लेकिन पूरा कब होगा यह कहा नहीं जा सकता है और तब तक दिल्ली की आबोहबा इस कदर खराब हो जाएगी कि लोगों का जीना दूभर हो जाएगा।
सालों दिल्ली के परिवहन मंत्री और केन्द्र सरकार के अनेक विभागों के मंत्री रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि अदालत का जो आदेश होगा वह तो सरकारों को मानना होगा लेकिन केवल ट्रकों को जुमार्ना लगाने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। बीस साल से विभिन्न अदालतें इस तरह के आदेश दे रही हैं औरविज्ञान और पर्यावरण केन्द्र(सीएसशी) जैसी अनेक संस्थाएं लोगों को खतरों से अगाह कर रही है बावजूद इसके इस पर गंभीरता से काम क्यों नहीं हुआ।
क्यों पेरिफेरियल सड़क पूरी नहीं हुई। वाहनों पर कारवाई करने से पहले रिफायनरी पर कारवाई हो जहां से पेट्रौल और डीजल अच्छी क्वालिटी की उपलब्ध हो पाए। वाहन बनाने वाली कंपनियों पर दबाव बनानी चाहिए ताकि वे बेहतर इंजन बनावें। वाहनों को फिटनेश फ्रमाण पत्र देने में सख्ती की जानी चाहिए। वाहन प्रदूषण तो केवल ट्रक तो कर नहीं रहे हैं दिल्ली में 80 लाख से ज्यादा वाहन पंजीकृत हैं । कई लाख वाहन हर रोज पड़ोसी राज्यों से आते हैं। उनकी संख्या कम करने के लिए गंभीरता से काम किया जाना चाहिए। दिल्ली विधान सभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता का कहना है कि वाहनों का आना तो रूक नहीं सकता। जिन वाहनों को दिल्ली में आना जरूरी नहीं है उनके लिए जितना जल्दी हो वैकल्पिक रास्ता देनी पड़ेही और जो वाहन दिल्ली आने हैं उनको आने से रोकने से दिल्ली में संकट खड़ा हो जाएगा। साग-सब्जी, खाने पीने के सामान आदि हर रोज टनों में दिल्ली को चाहिए।
दिल्ली में लगातार 15 साल मंत्री रहे डा. अशोक कुमार वालिया का कहना है कि हालात खराब होने के कई कारणों में एक कारण आबादी है। वे लंबे समय तक स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्री भी रहे । उनका कहना था कि वाहन प्रदूषण कम करने के लिएहर संभव प्रयास किए गए। सारे व्यवसायिक वाहनों को सीएनजी पर लाया गया। प्रदूषण जांच पर लगातार सख्ती की गई। मेट्रो की शुरूवात हुई और आज तीस लाख लोग हर रोज मेट्रो से सफर कर रहे हैं। सभी बसें सीएनजी से चल रही है।
वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई। इसके लिए सरकार लगातार अभियान चलाती रही।सड़कों पर से जाम खत्म करने के लिए सौ से ज्यादा फ्लाई ओवर और अंडर पास बनाए गए और सड़कें चौड़ी की गई। लेकिन वे मानते हैं कि निजी वाहनों की संख्या कम नहीं हो पाई और न ही दिल्ली में रोजगार और बेहतर सुविधा पाने का आकर्षण से लोगों का दिल्ली आना कम हुआ। बावजूद इसके उनका मानना है कि अगर लगातार कोशिश की जाए तो दिल्ली में प्रदूषण कम हो सकता है । ऐसा कांग्रेस के शासन में हुआ था।दिल्ली की आम आदमी पार्टी(आप) के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने भी वाहन प्रदूषण कम करने के अलावा सड़कों से वाहनों की भीड़ कम करने के लिए गेभीरता से प्रयास शुरू किया है। हर महीने की 22 तारीख को दिल्ली में कार फ्री दिवस मनाने की घोषणा की है।सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए भी कई प्रयाय किए जा रहे हैं।
अदालत की सख्ती ने ही दिल्ली में सभी व्यावसायिक वाहनों को सीएनजी पर लाने के लिए सरकार को मजबूर किया था। इस बार भी अदालत के रूख से लगता है अदालत लोगों के जान की कीमत पर किसी को छूट नहीं देने वाली है। यह भी सही है कि सख्ती से लोगों को तात्कालिक परेशानी भी होगी लेकिन दिल्ली के जो हालात बन गए हैं उसमें इसके बिना कोई चारा भी नहीं है।दिल्ली के एक आला अधिकारी की टिप्पणी थी कि जब तक केवल सार्वजनिक वाहनों और आम आदमी को ध्यान में रख कर योजनाएं नहीं बनाई जाएंगी दिल्ली में वाहनों की भीड़ न कम होगी और न ही वाहन प्रदूषण कम होंगे।
मनोज मिश्र