दिल्ली में अगले तीन से चार महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस बीच दिल्ली के बजट को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। पिछले कुछ सालों में दिल्ली का Fiscal Surplus (जब सरकार की आय खर्च से अधिक हो, उसे Fiscal Surplus कहते हैं) का इतिहास रहा है। लेकिन वर्तमान में दिल्ली संभावित रूप से गंभीर वित्तीय संकट के कगार पर है। अगर हम दिल्ली सरकार की फाइनेंसियल समरी पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2017-18 से लेकर 2024-25 के बीच अनुमानित बजट में Fiscal Surplus बढ़ता रहा है।

दिल्ली सरकार को हो सकता घाटा

अगर हम पिछले सात सालों पर नजर डालें तो दिल्ली सरकार की आय लगातार उसके व्यय से अधिक रही है। 2017-18 में दिल्ली सरकार 4913.25 करोड़ रुपये Surplus में थी। 2022-23 में यह बढ़कर 14456.91 करोड़ रुपये पहुंच गई। वहीं 2023-24 के लिए 6462.39 करोड़ रुपये का अनुमान जताया गया है। हालांकि सरप्लस के लिए 2024-25 के लिए जो पूर्वानुमान जताया गया है, वह दिल्ली सरकार के सामने एक चुनौती पेश करेगा। हालांकि प्रारंभिक बजट अनुमान में 3231.19 करोड़ रुपये का सरप्लस दिखाया गया है। लेकिन चुनावी साल में अतिरिक्त मांग के कारण सरकार को 1495.48 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है।

कई विभागों ने अतिरिक्त संसाधनो की आवश्यकताओं पर दिया जोर

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के कई विभागों ने अतिरिक्त संसाधनो की आवश्यकताओं पर जोर दिया है। इससे बजट पर और दबाव बढ़ेगा। वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट अनुमान के अनुसार दिल्ली सरकार की वित्तीय स्थिति बढ़ती राजकोषीय मांगों के बीच सतर्कता बरतने का सुझाव दे रही है। हालांकि दिल्ली विधानसभा ने 61000 करोड़ रुपये के अनुमानित बजट को मंजूरी दे दी है। यह धनराशि मुख्य रूप से सरकार चलाने, ऑपरेशनल कॉस्ट, बुनियादी ढांचे को बनाए रखने और कल्याणकारी योजनाओं को सब्सिडी देने के लिए आवंटित की गई है।

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किस विभाग को कितना अतिरिक्त जरूरत?

दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार पेंशन और भत्तों के वित्त पोषण के लिए कानून विभाग को 141 करोड़ रुपये की अतिरिक्त जरूरत है। वहीं बिजली विभाग ने डिस्कॉम के माध्यम से उपभोक्ता सब्सिडी के लिए 512 करोड़ रुपये अतिरिक्त मांगे हैं। इस बीच परिवहन विभाग ने भी इलेक्ट्रिक बसों की क्षमता बढ़ाने के लिए 941 करोड़ रुपये अधिक मांगे हैं।

अगर हम विभागों की अतिरिक्त मांगों पर नजर डाले तो इसमें सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग ने बहाली कार्यों के लिए 447 करोड़ रुपये की मांग की है। तो वहीं दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के लिए 3271 करोड़ रुपये की अतिरिक्त जरूरत है। कोरोना महामारी से घाटे और जापान इंटरनेशनल के लोन के कारण मेट्रो को अतिरिक्त धनराशि की जरूरत है। वहीं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अंतर्गत यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस के अधिग्रहण के लिए भी 250 करोड़ रुपये की जरूरत है। अगर हम अतिरिक्त मांगों की धनराशि पर नजर डालें तो यह करीब 7362 करोड़ रुपये बैठती है।

अगले 2 महीनों में कैसे रहेगी स्थिति?

दिल्ली सरकार को वेतन, मजदूरी और ब्याज भुगतान पर 2240 करोड़ रुपये महीने का खर्च आता है। जबकि उसका नकदी भंडार 4471 करोड़ का है। ऐसे में अगर हम इन आंकड़ों पर नजर डालें तो आने वाले 2 महीनों में ही दिल्ली सरकार को मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। अब आतिशी सरकार इन समस्याओं से कैसे निपटती है, इस पर ध्यान देने वाली बात होगी क्योंकि चुनाव भी आ रहा है और घोषणा पत्र में कई बड़े वादे भी किए जाएंगे।

AAP-BJP ने एक दूसरे पर लगाए आरोप

कुछ दिन पहले ही दिल्ली के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आरोप लगाया था कि बिना किसी नई योजना की घोषणा के ही आप सरकार बजट को घाटे में ले आई। वीरेंद्र सचदेवा ने कहा था कि 1994-95 से ही मदनलाल खुराना ने दिल्ली में सरप्लस बजट दिया था। इसके बाद यह 2023 तक सरप्लस रहा लेकिन आज हालात यह है कि चालू योजनाओं के लिए भी सरकार के पास पैसा नहीं है।

हालांकि भाजपा के आरोपों पर मुख्यमंत्री आतिशी ने जवाब दिया था। आतिशी ने कहा कि भाजपा 22 राज्यों में अपने दम पर या फिर गठबंधन के साथ सरकार चलाती है लेकिन वह एक भी राज्य का नाम बता दे, जहां उसकी सरकार मुनाफे में हो। आतिशी ने कहा कि दिल्ली सरकार के आंकड़े हम रख देंगे और भाजपा भी किसी एक राज्य के आंकड़े रखें।