भाजपा को 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) के हाथों लगातार हार का सामना करना पड़ा था, जिसमें 18 ग्रामीण सीटों पर निराशाजनक प्रदर्शन भी शामिल था। इस बार भाजपा ने उलटफेर करते हुए न केवल 27 साल के अंतराल के बाद राजधानी में सत्ता में वापसी की, बल्कि ग्रामीण सीटों पर भी आप को हराया, जहां जाट और गुज्जर आबादी अधिक है और जो ज्यादातर राजधानी के बाहरी इलाकों में उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम जिलों में केंद्रित है।

दिल्ली भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रमुख सुनील यादव ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी ने एक अलग रणनीति अपनाई और इन क्षेत्रों में ओबीसी वोटों का लगभग आधा हिस्सा हासिल किया। उन्होंने कहा, “हमने जाट, गुज्जर, यादव, सैनी, प्रजापति और रामगढ़िया जैसे 52 ओबीसी समूहों के 24 समूह बनाए। यह आबादी का लगभग 50% है और प्रत्येक समुदाय की चिंताओं को संबोधित किया गया।”

इस तरह दिल्ली चुनाव से पहले लाखों लोगों तक पहुंची बीजेपी

यादव ने कहा कि सम्मेलनों के अलावा 10-10 लोगों की बैठक के ज़रिए करीब 24,000 लोगों तक पहुँचा गया। भाजपा नेता ने कहा, “करीब 65,000 लोगों ने इन बैठकों को अपलोड किया और ये अनुमानतः 1 लाख लोगों तक पहुँचे।” चुनावों से पहले भी भाजपा को उस समय बल मिला जब दिल्ली के 360 गांवों के नेताओं ने पिछले साल 22 दिसंबर को मंगोलपुरी कलां में एक महापंचायत में चुनावों के बहिष्कार के अपने पहले के रुख से हटकर उस पार्टी का समर्थन करने का फैसला किया जो उनकी मांगों को पूरा करेगी।

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5 फरवरी को होने वाले मतदान से कुछ दिन पहले, 1 फरवरी को “पालम 360” के प्रमुख सुरेन्द्र सोलंकी जो सभी 360 गांवों और उनमें रहने वाले 36 समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और भाजपा को समर्थन दिया।

भाजपा की संशोधित रणनीति और “पालम 360” के समर्थन से पार्टी को सफलता मिली और उसने 18 में से 13 सीटें जीत लीं, जिनमें से छह सीटों पर उसे 50% से अधिक अंतर से जीत मिली, जबकि पांच साल पहले उसे केवल एक सीट मिली थी।

ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ा बीजेपी का वोट शेयर

वोट शेयर के मामले में भी, भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्र में काफी बेहतर प्रदर्शन किया, जहां उसे 5 साल पहले मिले 37.93% वोटों की तुलना में 44.68% वोट मिले। इसके विपरीत, AAP ने इन सीटों पर अपनी संख्या 17 से घटाकर पाँच कर ली, जबकि उसका वोट शेयर 2020 में 56.23% से गिरकर 43.03% हो गया।

भाजपा के उम्मीदवारों के चयन में भी उसकी बदली हुई रणनीति झलकती है। पार्टी के दिग्गज और जाट चेहरे प्रवेश वर्मा, जिन्होंने नई दिल्ली से आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हराया था और सीएम पद के लिए सबसे आगे माने जा रहे हैं, इसी इलाके से आते हैं। वे पहले पश्चिमी दिल्ली के सांसद रह चुके हैं, जिसमें मादीपुर, मटियाला और नजफगढ़ जैसी ग्रामीण सीटें शामिल हैं।

2013 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में पड़ने वाली एक और सीट महरौली से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा था। परवेश के पिता और दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा ने भी 1999 से 2004 के बीच बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था, जो ग्रामीण क्षेत्र में आता है।

पार्टी ने एक और जाट चेहरे और दिल्ली के पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत को बिजवासन सीट से मैदान में उतारा है, जिन्होंने चुनाव से कुछ महीने पहले आप छोड़ दी थी। उन्होंने अपने पूर्व पार्टी सहयोगी सुरेंद्र भारद्वाज को 11,000 से अधिक मतों से हराया, जबकि एससी-आरक्षित मादीपुर सीट पर भाजपा के कैलाश गंगवाल ने पूर्व डिप्टी स्पीकर राखी बिड़ला को हराया। पढ़ें- सौरभ भारद्वाज अब बने ‘बेरोजगार नेता’, दिल्ली चुनाव में हार के बाद खोला YouTube चैनल